कालबेलिया की अस्मिता पर हमला: पर्यटन बनाम परंपरा: कालबेलिया की अस्मिता से खिलवाड़ कब तक?

पर्यटन बनाम परंपरा: कालबेलिया की अस्मिता से खिलवाड़ कब तक?
कालबेलिया की अस्मिता पर हमला
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Highlights

  • कालबेलिया नृत्य का अश्लील मनोरंजन के लिए दुरुपयोग।
  • जैसलमेर के रिसॉर्ट्स में सांस्कृतिक गरिमा का हनन।
  • पुलिस की कार्रवाई पर सवाल, पुराने वीडियो का बहाना।
  • सरकार से लोककलाओं के संरक्षण हेतु दिशानिर्देश की मांग।

जैसलमेर: राजस्थान (Rajasthan) की विश्व प्रसिद्ध कालबेलिया नृत्य (Kalbelia dance) कला, जिसे यूनेस्को (UNESCO) ने मान्यता दी है, जैसलमेर (Jaisalmer) के कुछ रिसॉर्ट्स में अश्लील मनोरंजन का माध्यम बन रही है। यह पर्यटन बनाम परंपरा का गंभीर सवाल उठाता है, जहां संस्कृति का व्यावसायिक शोषण हो रहा है।

राजस्थान की धरती अपनी अनूठी रंगत, समृद्ध संस्कृति और जीवंत लोककलाओं के लिए विश्वभर में विख्यात है। इन लोककलाओं में कालबेलिया नृत्य का अपना एक विशेष स्थान है, जिसे संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 'अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' (Intangible Cultural Heritage) के रूप में सम्मानित कर अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई है। यह नृत्य केवल एक कला प्रदर्शन नहीं, बल्कि राजस्थान की गौरवशाली पहचान, एक समुदाय की सदियों पुरानी परंपरा, उनके संघर्षों और गरिमा का जीवंत प्रतीक है।

कालबेलिया: एक विरासत, एक पहचान

कालबेलिया समुदाय, जिसे सपेरा समुदाय के नाम से भी जाना जाता है, अपनी कला के माध्यम से अपनी पहचान बनाए हुए है। उनके नृत्य में सांपों की चाल, उनके जीवन शैली और प्रकृति के प्रति सम्मान की झलक मिलती है। यह नृत्य न केवल उनके जीवन का अभिन्न अंग है, बल्कि यह उनकी आजीविका का भी एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। यूनेस्को की मान्यता ने इस कला को वैश्विक मंच पर लाकर इसके संरक्षण की आवश्यकता को और भी रेखांकित किया था।

लेकिन, यह अत्यंत दुखद है कि जिस कला को इतना सम्मान मिला, आज उसी को जैसलमेर के कुछ स्थानों पर विकृत कर अश्लील मनोरंजन का माध्यम बना दिया गया है। यह स्थिति राजस्थान की सांस्कृतिक गरिमा पर एक सीधा हमला है और कालबेलिया समुदाय की अस्मिता से खिलवाड़ है।

अश्लीलता की आड़ में परंपरा का अपमान

हाल ही में सामने आए कुछ वीडियो, भले ही उन्हें पुराना बताया जा रहा हो, एक गंभीर और विचारणीय प्रश्न उठाते हैं। क्या राजस्थान की समृद्ध संस्कृति अब केवल रिसॉर्ट्स में पैसा कमाने का एक आसान औजार बनकर रह गई है? इन वीडियो में जैसलमेर जिले के कुछ रिसॉर्ट्स में लड़के, जो लड़कियों का रूप धारण कर कालबेलिया की पवित्र वेशभूषा पहनते हैं, आइटम-सॉन्ग पर फूहड़ नृत्य करते हुए पर्यटकों को शराब परोसते दिख रहे हैं।

यह दृश्य न केवल कालबेलिया समाज का घोर अपमान है, बल्कि यह राजस्थान की उस सांस्कृतिक विरासत पर भी आघात है जिसने राज्य को वैश्विक मानचित्र पर एक विशिष्ट पहचान दिलाई है। जब संस्कृति को सोशल मीडिया फॉलोअर्स बढ़ाने और त्वरित कमाई के लालच में विकृत किया जाता है, तो ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं?

पुलिस और प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

जिले के पुलिस कप्तान का यह कहना कि वीडियो पुराने हैं, अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। यदि ये वीडियो पुराने हैं, तो अब तक इन पर कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की गई? क्या कानून केवल किताबों में पढ़ने के लिए ही होता है और इसे जमीनी स्तर पर लागू नहीं किया जा सकता?

सार्वजनिक अश्लीलता, भेष बदलकर सांस्कृतिक पोशाक का दुरुपयोग, और पर्यटकों को शराब परोसने जैसी गतिविधियाँ—ये सभी स्पष्ट रूप से अपराध की श्रेणी में आ सकती हैं। इसके बावजूद, प्रशासन और संबंधित विभागों की ओर से यह चुप्पी क्यों है? यह निष्क्रियता न केवल अपराधियों को बढ़ावा देती है, बल्कि सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति हमारी उदासीनता को भी दर्शाती है।

पर्यटन बनाम सांस्कृतिक संरक्षण

सच्चाई यह है कि पर्यटन को बढ़ावा देने की आड़ में कई बार परंपराओं को इस तरह से ढाला जाता है, जो न तो हमारी मूल संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है और न ही स्थानीय समुदाय की भावनाओं का। जिस कला को सम्मान और संरक्षण की आवश्यकता है, उसे मुजरे या कैबरे की तरह प्रस्तुत कर देना न केवल एक सांस्कृतिक अपराध है, बल्कि यह समाज और कलाकारों की पीढ़ियों की मेहनत, त्याग और समर्पण का भी अनादर है।

पर्यटन निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण जरिया है, लेकिन यह सांस्कृतिक पहचान को दांव पर लगाकर नहीं किया जा सकता। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक जैसलमेर और राजस्थान की असल, मूल और सच्ची पहचान देखने आते हैं—न कि बाजारू रूपांतर जो हमारी गौरवशाली परंपराओं का मज़ाक उड़ाते हों। हमें यह तय करना होगा कि हम पर्यटन बढ़ाकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना चाहते हैं, या परंपरा को बेचकर अपनी पहचान खोना चाहते हैं।

कालबेलिया समाज की चेतावनी और मांगें

कालबेलिया समाज की ओर से दी गई चेतावनी बिल्कुल उचित और समयोचित है। उनका स्पष्ट संदेश है कि यदि कला का सम्मान नहीं कर सकते, तो इसका व्यावसायिक शोषण बंद करो। अन्यथा, कानून और समुदाय, दोनों ही इसका जवाब मांगेंगे। यह केवल एक समुदाय की आवाज नहीं, बल्कि उन सभी लोगों की भावना है जो अपनी संस्कृति और विरासत को लेकर संवेदनशील हैं।

इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, राज्य सरकार और पर्यटन उद्योग को मिलकर स्पष्ट दिशानिर्देश बनाने की तत्काल आवश्यकता है। इन दिशानिर्देशों में निम्नलिखित बातों का समावेश होना चाहिए:

  • लोककलाओं की प्रस्तुति में पारंपरिक शील और गरिमा का पालन अनिवार्य हो।
  • कोई भी रिसॉर्ट या इवेंट आयोजक, संबंधित समुदाय की अनुमति व सहभागिता के बिना पारंपरिक वेशभूषा या नृत्य का उपयोग न करे।
  • संस्कृति को केवल "मनोरंजन पैकेज" की तरह पेश करने वालों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए।

आगे की राह: संतुलन और सम्मान

हमें पर्यटन से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन आपत्ति संस्कृति की नीलामी से है। कला सिर्फ नृत्य नहीं है, और वेशभूषा केवल एक कपड़ा नहीं—यह आत्मसम्मान, इतिहास और एक समृद्ध विरासत का प्रतीक है। विरासत बिकती नहीं, इसे सहेजा और बचाया जाता है।

यह समय है जब हम पर्यटन और परंपरा के बीच एक स्वस्थ संतुलन स्थापित करें। राजस्थान की पहचान उसकी मिट्टी, उसके लोगों और उसकी कला में निहित है। इस पहचान को बनाए रखना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। सरकार, प्रशासन, पर्यटन उद्योग और समाज—सभी को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि कालबेलिया जैसी अमूल्य विरासतें सुरक्षित रहें और अपनी मूल गरिमा के साथ फलती-फूलती रहें।

- गुलाबसिंह भाटी 

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