Highlights
- किंग अब्दुल्ला पैगंबर मोहम्मद के 41वें वंशज हैं, उनका परिवार 1400 साल से जॉर्डन पर राज कर रहा है।
- उनकी पत्नी रानिया दुनिया की सबसे खूबसूरत और मिलनसार महारानियों में से एक हैं।
- किंग अब्दुल्ला को दुनिया के सबसे अमीर राजाओं में गिना जाता है, उनके पास 12 महल और 6,750 करोड़ की संपत्ति है।
- उन्हें कार रेसिंग, स्कूबा डाइविंग और स्काईडाइविंग जैसे एडवेंचर गेम्स का शौक है।
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने जॉर्डन (Jordan) के किंग अब्दुल्ला द्वितीय (King Abdullah II) से हुसैनिया पैलेस (Husseinia Palace) में मुलाकात की। किंग अब्दुल्ला पैगंबर मोहम्मद (Prophet Muhammad) के 41वें वंशज हैं और उनकी पत्नी दुनिया की सबसे खूबसूरत रानियों में गिनी जाती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 और 16 दिसंबर को मध्य पूर्व के महत्वपूर्ण देश जॉर्डन के दौरे पर थे। इस दौरे का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करना था।
यह महत्वपूर्ण मुलाकात सोमवार शाम को किंग अब्दुल्ला द्वितीय के आलीशान हुसैनिया पैलेस में हुई, जहां पीएम मोदी का गर्मजोशी और शाही अंदाज में स्वागत किया गया।
जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय: एक ऐतिहासिक वंश और आधुनिक नेतृत्व
किंग अब्दुल्ला द्वितीय को इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगंबर मोहम्मद की 41वीं पीढ़ी का सीधा वंशज माना जाता है। यह एक ऐसा गौरव है जो उनके शाही परिवार को 1400 से अधिक वर्षों से जॉर्डन पर शासन करने का अधिकार देता है।
उनका परिवार हाशेमाइट राजवंश से संबंधित है, जो इस्लामी दुनिया में सबसे पुराने और सबसे सम्मानित शाही परिवारों में से एक है।
अब्दुल्ला का नाम दुनिया के सबसे धनी और प्रभावशाली राजाओं में शुमार है, जबकि उनकी पत्नी, रानी रानिया, को उनकी सुंदरता और सामाजिक कार्यों के लिए दुनिया की सबसे खूबसूरत रानियों में से एक माना जाता है।
यह लेख जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय के जीवन, उनके नेतृत्व और उनसे जुड़े कई रोचक किस्सों पर गहराई से प्रकाश डालेगा, जो उनके व्यक्तित्व और शाही जीवन को उजागर करते हैं।
किंग अब्दुल्ला द्वितीय का प्रारंभिक जीवन, शिक्षा और सैन्य करियर
अब्दुल्ला द्वितीय का जन्म 30 जनवरी 1962 को जॉर्डन की राजधानी अम्मान में हुआ था। वह तत्कालीन किंग हुसैन और उनकी दूसरी पत्नी, ब्रिटिश मूल की प्रिंसेस मुना अल-हुसैन की पहली संतान थे।
किंग हुसैन ने अपने सम्माननीय दादा, अब्दुल्ला प्रथम के नाम पर अपने नवजात बेटे का नाम अब्दुल्ला द्वितीय इब्न अल हुसैन रखा, जो शाही परंपरा का एक हिस्सा था।
जन्म से ही, अब्दुल्ला द्वितीय को क्राउन प्रिंस का दर्जा प्राप्त था, क्योंकि उस समय शाही नियमों के अनुसार राजा का सबसे बड़ा बेटा ही स्वाभाविक उत्तराधिकारी होता था।
हालांकि, जब वह केवल तीन साल के थे, तब 1965 में मध्य पूर्व में गंभीर राजनीतिक उथल-पुथल और क्षेत्रीय अस्थिरता का दौर शुरू हो गया। इस चुनौतीपूर्ण माहौल के कारण, किंग हुसैन ने एक रणनीतिक निर्णय लिया।
उन्होंने अपने छोटे भाई, हसन बिन तलाल को क्राउन प्रिंस बना दिया, ताकि उत्तराधिकार की रेखा को अधिक स्थिर किया जा सके और राज्य को संभावित खतरों से बचाया जा सके।
क्राउन प्रिंस वह पद होता है जो राजा की मृत्यु या उनके पद त्यागने के बाद देश के अगले शासक को सुनिश्चित करता है।
शिक्षा और सैन्य प्रशिक्षण का प्रभाव
अब्दुल्ला की शुरुआती शिक्षा अम्मान के प्रतिष्ठित इस्लामिक एजुकेशनल कॉलेज में हुई, जहां उन्होंने अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों को समझा।
इसके बाद, उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा के लिए इंग्लैंड के सेंट एडमंड्स स्कूल और संयुक्त राज्य अमेरिका के डियरफील्ड एकेडमी जैसे प्रसिद्ध संस्थानों में अध्ययन किया, जिससे उन्हें एक वैश्विक दृष्टिकोण मिला।
बचपन से ही अब्दुल्ला की गहरी रुचि सेना और हथियारों में थी, जो उनके शाही परिवार की सैन्य परंपराओं से प्रेरित थी।
इसी जुनून को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने 1980 में इंग्लैंड की प्रतिष्ठित ब्रिटिश रॉयल मिलिट्री एकेडमी सैंडहर्स्ट में गहन प्रशिक्षण लिया और वहां से अपनी स्नातक की डिग्री सफलतापूर्वक हासिल की।
सैंडहर्स्ट से स्नातक होने के बाद, उन्होंने कुछ समय तक ब्रिटिश आर्म्ड फोर्सेस में अपनी सेवाएं दीं, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय सैन्य अनुभव प्राप्त हुआ।
इसके बाद, वह अपने गृह देश लौट आए और जॉर्डन आर्म्ड फोर्सेस में शामिल हो गए, जहां उन्होंने अपनी मातृभूमि की सेवा की शपथ ली।
जॉर्डन आर्म्ड फोर्सेस में उन्होंने अपनी योग्यता और नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन करते हुए तेजी से तरक्की की। 1993 में, उन्हें स्पेशल फोर्सेस के डिप्टी कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया।
और अगले ही साल, 1994 में, उनकी असाधारण क्षमताओं को देखते हुए उन्हें स्पेशल फोर्सेस के कमांडर के प्रतिष्ठित पद पर पदोन्नत किया गया।
एक शाही प्रेम कहानी: किंग अब्दुल्ला और रानी रानिया
यह किस्सा साल 1992 के आखिरी महीनों का है, जब एक शाम अब्दुल्ला एक डिनर पार्टी में गए थे। वे अपने साथियों के साथ उस शाम का आनंद ले रहे थे, जब उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया।
तभी वहां एक बेहद खूबसूरत फिलिस्तीनी मूल की लड़की ने प्रवेश किया, जिसका नाम रानिया अल-यासीन था। उनकी उपस्थिति ने पार्टी में एक अलग ही चमक ला दी।
31 साल के अब्दुल्ला को 23 साल की रानिया से पहली ही नजर में गहरा प्यार हो गया। रानिया को भी अब्दुल्ला की शख्सियत और आकर्षण पसंद आया, और दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई।
उनकी शुरुआती बातचीत जल्द ही दोस्ती में बदल गई, और फिर यह दोस्ती धीरे-धीरे एक गहरे और अटूट प्रेम संबंध में विकसित हो गई।
पहली मुलाकात के ठीक छह महीने बाद, अब्दुल्ला और रानिया ने सगाई कर ली, जो उनके रिश्ते की गंभीरता को दर्शाती थी।
इसके बाद, 10 जून 1993 को अम्मान के शाही जहरान पैलेस में दोनों ने भव्य तरीके से शादी कर ली, जो एक ऐतिहासिक घटना बन गई।
शादी के वक्त अब्दुल्ला ने अपनी पूरी सैन्य वर्दी पहनी हुई थी और कमर पर एक तलवार लगाई हुई थी, जो उनके सैन्य सम्मान और शाही रुतबे का प्रतीक थी।
वहीं, रानिया ने सोने की किनारी वाला एक छोटी आस्तीन का गाउन पहना था, जो उनकी सादगी और सुंदरता को दर्शाता था। उन्होंने सुनहरे बेल्ट, सफेद जैकेट और दस्ताने भी पहने हुए थे, जिससे उनकी शाही आभा और भी निखर कर आ रही थी।
रानी रानिया: गैर-शाही पृष्ठभूमि से शाही सिंहासन तक
यह उल्लेखनीय है कि रानिया किसी शाही परिवार से संबंधित नहीं थीं, फिर भी अब्दुल्ला का परिवार इस शादी के लिए खुशी-खुशी राजी हो गया। यह शाही परिवार की प्रगतिशील सोच को दर्शाता है।
रानिया का जन्म 31 अगस्त 1970 को वेस्ट बैंक के एक फिलिस्तीनी परिवार में हुआ था। उनके पिता फैजल पेशे से एक सम्मानित डॉक्टर थे।
बाद में, फैजल काम के सिलसिले में अपने परिवार के साथ कुवैत चले गए, लेकिन 1990 में खाड़ी युद्ध के कारण उन्हें कुवैत छोड़कर जॉर्डन आना पड़ा।
इस दौरान, रानिया मिस्र की राजधानी काहिरा स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई कर रही थीं, जहां उन्होंने अपनी अकादमिक उत्कृष्टता का प्रदर्शन किया।
पढ़ाई पूरी होने के बाद, वह जॉर्डन आईं और उन्होंने पहले एक बैंक में और फिर प्रतिष्ठित एपल कंपनी में काम किया, जिससे उन्हें कॉर्पोरेट अनुभव प्राप्त हुआ।
आज रानिया जॉर्डन की महारानी हैं और उनके चार बच्चे हैं: प्रिंस हुसैन, प्रिंसेस इमान, प्रिंसेस सलमा और प्रिंस हाशेम, जो शाही परिवार के भविष्य का प्रतिनिधित्व करते हैं।
रानी रानिया महिलाओं और बच्चों की शिक्षा, अधिकार और पोषण के लिए सक्रिय रूप से काम करती हैं। वह इन महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम चलाती हैं।
वह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और वैश्विक सम्मेलनों में भी काफी सक्रिय रहती हैं, जहां वह अपने विचारों और पहलों को दुनिया के सामने रखती हैं।
अक्सर वह अपने मॉडर्न लुक, डिजाइनर कपड़ों, ज्वेलरी और मेकअप के लिए सुर्खियों में छाई रहती हैं, जो उन्हें एक फैशन आइकॉन भी बनाता है।
रानिया को दुनिया की सबसे सुंदर, मिलनसार और प्रभावशाली महारानियों में से एक माना जाता है, जो उनकी वैश्विक पहचान और सम्मान का एक बड़ा कारण है।
जॉर्डन की गद्दी पर अब्दुल्ला द्वितीय का आरोहण और उत्तराधिकार के विवाद
जनवरी 1999 का महीना जॉर्डन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया। 63 वर्षीय किंग हुसैन, जिन्होंने 46 साल तक जॉर्डन की गद्दी संभाली थी, कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे।
एक दिन अचानक उनकी तबीयत बहुत बिगड़ गई और उन्हें तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके बचने की उम्मीदें दिन-ब-दिन कम होती जा रही थीं, जिससे पूरे देश में चिंता का माहौल था।
फिर एक दिन अस्पताल से एक अप्रत्याशित चिट्ठी आई, जिसने पूरे देश में राजनीतिक हंगामा मचा दिया। यह चिट्ठी तत्कालीन क्राउन प्रिंस हसन बिन तलाल के लिए थी।
चिट्ठी में स्पष्ट रूप से लिखा था कि किंग हुसैन अपने छोटे भाई, क्राउन प्रिंस हसन बिन तलाल से काफी नाराज हैं। उन्होंने तलाल पर सत्ता के गलत इस्तेमाल और शाही परिवार के प्रति वफादारी में कमी का आरोप लगाया था।
इसके परिणामस्वरूप, हसन बिन तलाल को क्राउन प्रिंस के पद से हटा दिया गया, जिससे उत्तराधिकार की स्थिति में एक बड़ा बदलाव आया।
कहा गया कि किंग हुसैन को अपने जीवन के अंतिम दिनों में यह महसूस हुआ कि अपने सबसे बड़े बेटे को ही अपना उत्तराधिकारी बनाना सही रहेगा, ताकि शाही वंश की निरंतरता बनी रहे।
ऐसे में, उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे अब्दुल्ला द्वितीय को दोबारा क्राउन प्रिंस बनाया। 'दोबारा' इसलिए, क्योंकि अब्दुल्ला जन्म से ही क्राउन प्रिंस थे, लेकिन तीन साल की उम्र में राजनीतिक उठापटक के कारण उन्हें इस पद से हटा दिया गया था।
1965 में, किंग हुसैन ने अपने छोटे भाई हसन बिन तलाल को क्राउन प्रिंस बना दिया था, लेकिन अब यह निर्णय पलट दिया गया।
अब्दुल्ला के क्राउन प्रिंस बनने के ठीक दो हफ्ते बाद, 7 फरवरी 1999 को किंग हुसैन का निधन हो गया, जिससे एक युग का अंत हो गया।
इसी दिन, अब्दुल्ला जॉर्डन के नए राजा बने और उन्होंने अपने पिता की विरासत को संभाला। हालांकि, उनका औपचारिक राज्याभिषेक चार महीने बाद, 9 जून 1999 को हुआ, जिसमें शाही रीति-रिवाजों का पालन किया गया।
प्रिंस हमजा का शाही परिवार में विवादित स्थान
अब्दुल्ला ने सत्ता संभालते ही अपने सौतेले भाई प्रिंस हमजा को क्राउन प्रिंस बनाया। शुरुआत में इस कदम को शाही परिवार में भाईचारे और एकता का प्रतीक माना गया, लेकिन इसके पीछे एक गहरी राजनीतिक कहानी थी।
दरअसल, किंग हुसैन ने चार शादियां की थीं और प्रिंस हमजा उनकी चौथी बेगम, नूर अल-हुसैन के बेटे थे। रानी नूर की महत्वाकांक्षा थी कि किंग हुसैन के बाद हमजा राजा बने और वे खुद राजमाता का पद संभाले।
किंग हुसैन को अपनी 11 संतानों में से प्रिंस हमजा सबसे ज्यादा प्यारे थे। वे उन्हें अपनी 'आंखों का सुकून' कहते थे, जिससे हमजा के प्रति उनका विशेष स्नेह स्पष्ट होता है।
अपने चहेते बेटे के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए, किंग हुसैन ने मरते वक्त अब्दुल्ला से कहा था कि राजा बनते ही वे हमजा को क्राउन प्रिंस बनाएं। अब्दुल्ला ने अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए ठीक वैसा ही किया।
लेकिन यह व्यवस्था केवल पांच साल तक ही चली और नवंबर 2008 में सब कुछ बदल गया। अब्दुल्ला ने हमजा को क्राउन प्रिंस के पद से हटा दिया।
अब्दुल्ला ने हमजा को एक चिट्ठी भी लिखी, जिसमें उन्होंने कहा, 'इस पद के कारण से तुम कुछ जरूरी जिम्मेदारियां नहीं उठा पा रहे हो। जॉर्डन को तुम्हारी जरूरत है।
ऐसे में, मैंने तुम्हें क्राउन प्रिंस के पद से हटाने का फैसला किया है। उम्मीद है तुम राजा के प्रति वफादार बने रहोगे।’
चिट्ठी में लिखे गए शब्द तो अच्छे थे, लेकिन इस निर्णय का असली मकसद कुछ और ही था। दरअसल, अब्दुल्ला हमजा को हटाकर अपने बेटे हुसैन के लिए शाही गद्दी का रास्ता साफ कर रहे थे।
जुलाई 2009 में, उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे हुसैन को क्राउन प्रिंस बना भी दिया, जिससे भविष्य के उत्तराधिकारी की स्थिति स्थायी रूप से तय हो गई।
फिर अप्रैल 2021 में, चौंकाने वाली खबरें आईं कि पूर्व क्राउन प्रिंस हमजा को उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया है।
उनकी सुरक्षा हटा ली गई थी और उन्हें घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। किसी से मिलने, बात करने, फोन और इंटरनेट के इस्तेमाल पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी।
उस समय जॉर्डन के डिप्टी पीएम ऐमान सफादी ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि प्रिंस हमजा जॉर्डन की सुरक्षा और स्थिरता के खिलाफ काम कर रहे थे, इसलिए उन्हें हिरासत में लिया गया है।
हमजा पर तख्तापलट की कोशिश का गंभीर आरोप लगा, जिससे शाही परिवार के भीतर एक बड़ा राजनीतिक संकट खड़ा हो गया।
ISIS के खिलाफ 'वॉरियर किंग': एक राष्ट्र का बदला
साल 2015 और तारीख 2 फरवरी, एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरी दुनिया को झकझोर दिया। आतंकी संगठन ISIS ने एक भयानक 22 मिनट का वीडियो जारी किया।
इस वीडियो में जॉर्डन के बहादुर पायलट लेफ्टिनेंट मुआथ अल-कसासबह से पहले क्रूरतापूर्वक पूछताछ की गई और फिर उसे एक पिंजरे में बंद करके जिंदा जला दिया गया।
दरअसल, पिछले साल दिसंबर में 27 साल के मुआथ का F-16 फाइटर जेट सीरिया में ISIS के खिलाफ एक मिशन के दौरान क्रैश हो गया था। इसके बाद ISIS ने उन्हें पकड़ लिया था।
मुआथ की बर्बर मौत का वीडियो देखकर पूरे जॉर्डन में जबरदस्त गुस्सा फूट पड़ा। लोग सड़कों पर उतर आए और ‘बदला लो!’ के नारों से आसमान गूंज उठा।
उस वक्त किंग अब्दुल्ला संयुक्त राज्य अमेरिका में थे। जैसे ही उन्हें इस जघन्य घटना की खबर मिली, वह फौरन अपने देश जॉर्डन लौट आए।
अम्मान एयरपोर्ट से सीधे, अब्दुल्ला मुआथ के शोक संतप्त परिवार से मिलने गए। वहां उन्होंने दृढ़ता से कहा, ‘ये कायरों की हरकत है। ISIS न सिर्फ जॉर्डन से लड़ रहा है, बल्कि इस्लाम और इंसानियत से भी।
हम इसका जवाब इतना जोरदार देंगे कि धरती हिल जाएगी और हमारे दुश्मनों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।’
अगले ही दिन, जॉर्डन ने ISIS के दो आतंकियों को फांसी दे दी, जो इस क्रूरता का पहला जवाब था। इसके तुरंत बाद, किंग अब्दुल्ला ने ‘ऑपरेशन शहीद मुआथ’ लॉन्च किया।
तीन दिन तक चले इस भीषण ऑपरेशन में, जॉर्डन की एयर फोर्स ने सीरिया में मौजूद ISIS के ठिकानों पर जोरदार बमबारी की। इस जवाबी कार्रवाई में 56 आतंकी मारे गए, जिससे ISIS को भारी नुकसान हुआ।
इस बीच, किंग अब्दुल्ला की एक फोटो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुई, जिसमें वह पूरी सैन्य वर्दी में नजर आ रहे थे।
सोशल मीडिया पर यह चर्चा होने लगी कि किंग खुद फाइटर जेट उड़ा रहे हैं और ISIS पर बम बरसा रहे हैं। अब्दुल्ला को तुरंत ‘वॉरियर किंग’ का खिताब दे दिया गया।
हालांकि, कुछ देर बाद यह साफ हो गया कि यह सब अफवाह थी और अब्दुल्ला ने खुद जेट नहीं उड़ाया था।
उन्होंने केवल ऑपरेशन की कमान संभाली थी और अपनी सेना का नेतृत्व किया था, लेकिन इस घटना ने किंग अब्दुल्ला की छवि को और भी मजबूत कर दिया।
वह एक ऐसे नेता के रूप में उभरे जो अपने देश और सैनिकों के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं, जिससे उनकी लोकप्रियता और सम्मान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
दुनिया के सबसे अमीर राजाओं में शुमार: संपत्ति, महल और शाही जीवनशैली
किंग अब्दुल्ला की अनुमानित व्यक्तिगत संपत्ति करीब 750 मिलियन डॉलर है, जो भारतीय रुपए में लगभग 6,750 करोड़ रुपए के बराबर है।
इस विशाल संपत्ति में उनकी विरासत में मिली संपत्तियां, रियल एस्टेट निवेश, विभिन्न कंपनियों में शेयर और अन्य आय के स्रोत शामिल हैं।
यह उन्हें दुनिया के सबसे अमीर राजाओं में से एक बनाता है, हालांकि उनकी आधिकारिक सैलरी के बारे में कोई सार्वजनिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
अब्दुल्ला के पास जॉर्डन और विदेशों में कुल 12 आलीशान महल हैं, जिनका इस्तेमाल शाही परिवार अपने निवास और आधिकारिक कार्यालयों के तौर पर करता है।
उनके शाही परिवार और इन भव्य महलों के रखरखाव पर सालाना 35 मिलियन डॉलर यानी 300 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च किए जाते हैं, जो उनकी अत्यंत भव्य जीवनशैली को दर्शाता है।
शाही वाहनों का संग्रह और आधुनिक राजा की छवि
इसके अलावा, उनके पास एक विशेष रॉयल ऑटोमोबाइल म्यूजियम है, जिसमें 80 से ज्यादा अनोखी और महंगी कारें और बाइक शामिल हैं।
इस संग्रह में रोल्स-रॉयस, बुगाटी वेरोन, पोर्श, एस्टन मार्टिन, मर्सिडीज जैसी दुनिया की सबसे लग्जरी कारें शामिल हैं, जो उनके कारों के प्रति गहरे जुनून को दर्शाती हैं।
वहीं, हार्ले-डेविडसन, BMW, Zundapp KS जैसी आलीशान बाइक भी उनके संग्रह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
इन वाहनों के अलावा, उनके पास तीन निजी एयरक्राफ्ट और एक शानदार यॉट भी है, जिनका उपयोग वे अपनी यात्रा और अवकाश के लिए करते हैं, जिससे उनकी शाही सुविधाएँ और भी बढ़ जाती हैं।
अब्दुल्ला को अक्सर सबसे मॉडर्न किंग भी माना जाता है, जो उनकी प्रगतिशील सोच, आधुनिक जीवनशैली और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण को दर्शाता है।
पैंडोरा पेपर्स और स्विस सीक्रेट्स: गुप्त संपत्तियों का खुलासा
अक्टूबर 2021 में, दुनिया भर में 'पैंडोरा पेपर्स' का सनसनीखेज खुलासा हुआ, जिसमें 1.19 लाख गोपनीय दस्तावेज और 2.9 टेराबाइट डेटा लीक हुआ था।
इस लीक से पता चला कि किंग अब्दुल्ला ने 2003 से 2017 के बीच गुप्त रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन में 14 लग्जरी संपत्तियां खरीदी थीं।
इन संपत्तियों की अनुमानित कीमत करीब 100 मिलियन डॉलर थी, जो भारतीय रुपए में लगभग 900 करोड़ रुपए के बराबर है।
इन संपत्तियों में कैलिफोर्निया के मालिबू बीच पर स्थित तीन आलीशान हवेलियां, वॉशिंगटन डीसी के तीन लक्जरी अपार्टमेंट, और लंदन व एस्कॉट के कई महंगे घर शामिल थे।
फरवरी 2022 में, स्विट्जरलैंड के प्रतिष्ठित 'क्रेडिट सुइस' बैंक के 18 हजार खातों का डेटा लीक हुआ, जिसे 'स्विस सीक्रेट्स' नाम दिया गया।
इस खुलासे में किंग अब्दुल्ला के छह गुप्त अकाउंट मिले, जिनमें करीब 250 मिलियन डॉलर यानी 2250 करोड़ रुपए जमा थे, जिससे उनकी गुप्त वित्तीय गतिविधियों पर सवाल उठे।
इन खुलासों पर रॉयल हाशेमाइट कोर्ट ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि यह पैसा राजा अब्दुल्ला का निजी है।
इसका इस्तेमाल राष्ट्रीय सुरक्षा, शाही परियोजनाओं, निजी खर्च और इस्लामी पवित्र स्थलों के रखरखाव के लिए किया जाता है, जिससे इन आरोपों का खंडन किया गया और शाही परिवार की वित्तीय पारदर्शिता पर जोर दिया गया।
पसंदीदा 'स्टार ट्रेक' सीरियल में अभिनय का अनोखा अनुभव
जब अब्दुल्ला 34 साल के थे, तब उन्हें अंतरिक्ष रोमांच, एलियंस और स्टारशिप में काफी गहरी दिलचस्पी थी। वे विज्ञान कथाओं के प्रति एक विशेष आकर्षण रखते थे।
इसी जुनून के चलते वे एक लोकप्रिय साइंस फिक्शन सीरियल ‘स्टार ट्रेक: वॉयजर’ के बहुत बड़े प्रशंसक बन गए थे, और इस शो को नियमित रूप से देखते थे।
एक बार जब वे इस शो की शूटिंग देखने कैलिफोर्निया के पैरामाउंट स्टूडियो पहुंचे, तो सीरियल के प्रोड्यूसर्स ने उन्हें एक छोटा सा रोल ऑफर किया।
अब्दुल्ला ने खुशी-खुशी यह ऑफर स्वीकार कर लिया, क्योंकि यह उनके पसंदीदा शो का हिस्सा बनने और एक अनोखा अनुभव प्राप्त करने का एक शानदार अवसर था।
13 मार्च 1996 को प्रसारित हुए शो के एक एपिसोड में अब्दुल्ला एक साइंस ऑफिसर के तौर पर नजर आए।
हालांकि, उन्होंने न तो कोई डायलॉग बोला और न ही उन्हें क्रेडिट में कोई नाम दिया गया। वे केवल कुछ ही सेकंड के लिए स्क्रीन पर दिखाई दिए, लेकिन यह अनुभव उनके लिए अविस्मरणीय था।
एक प्रशंसक के तौर पर अब्दुल्ला इतना खुश हुए कि उन्होंने शो के दो प्रमुख एक्टर्स - इथन फिलिप्स और रॉबर्ट पिकार्डो को जॉर्डन आने का न्योता दे दिया।
बाद में वे दोनों कलाकार जॉर्डन गए भी, जिससे किंग अब्दुल्ला की मेहमाननवाजी और उनके जुनून का पता चलता है, और यह घटना हॉलीवुड और शाही परिवार के बीच एक अनोखा संबंध बन गई।
एडवेंचर के शौकीन: किंग अब्दुल्ला की साहसिक रुचियां
1980 के दशक में स्पेशल फोर्सेस के एक प्रशिक्षित कमांडो रह चुके किंग अब्दुल्ला को एडवेंचर गेम्स और साहसिक गतिविधियों से बहुत प्यार है।
उनका कार रेसिंग से बहुत गहरा जुड़ाव है और वे इस खेल में अपनी महारत के लिए जाने जाते हैं। वे 1986 और 1988 में जॉर्डनियन डेजर्ट रैलियों में चैंपियन बने थे।
उन्होंने रेगिस्तान में आयोजित कई अन्य रैलियां भी जीतीं, जिससे उनकी ड्राइविंग क्षमता, गति और विपरीत परिस्थितियों में नियंत्रण का बेहतरीन प्रदर्शन होता है।
साल 2000 में, अब्दुल्ला ने जॉर्डन में बनी ‘ब्लैक आइरिस’ नामक रैली कार खुद चलाई, जिसे विशेष रूप से युवा और उभरते रैली ड्राइवरों के लिए एक सस्ती विकल्प के रूप में डिजाइन किया गया था।
आज भी वे बड़ी रैलियों से पहले ट्रैक की सुरक्षा और स्थिति की जांच करने वाली ‘जीरो कार’ चलाते हैं, जिससे उनका इस खेल के प्रति निरंतर समर्पण और सक्रिय भागीदारी दिखती है।
समुद्र की गहराइयों से लेकर आसमान की ऊंचाइयों तक
इसके अलावा, किंग अब्दुल्ला एक क्वालिफाइड फ्रॉगमैन यानी पेशेवर सैन्य गोताखोर भी हैं, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।
लाल सागर पर स्थित अकाबा शहर उनकी पसंदीदा स्कूबा डाइविंग जगह है, जहां वे अक्सर समुद्र की गहराइयों में जाकर समुद्री जीवन और प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेते हैं।
वे अपने बेटे क्राउन प्रिंस हुसैन के साथ मिलकर समुद्र की गहराई में जाकर कचरा साफ करने के लिए 'क्लीन-अप डाइव्स' भी करते हैं, जो उनके पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
किंग अब्दुल्ला को स्काईडाइविंग और पैराशूटिंग का भी जबरदस्त शौक है। वे एक कुशल फ्री-फॉल पैराशूटिस्ट हैं।
इसका मतलब है कि वे प्लेन से कूदकर कुछ समय तक बिना पैराशूट खोले हवा में स्वतंत्र रूप से गिरते हैं, और फिर एक तय ऊंचाई पर पैराशूट खोलकर सुरक्षित रूप से जमीन पर उतरते हैं।
राजा बनने से पहले वे नियमित रूप से स्काईडाइविंग करते थे, लेकिन अब सुरक्षा कारणों से वे इस रोमांचक शौक को पूरा नहीं कर पाते हैं।
हालांकि, वे स्पेशल फोर्सेस की ट्रेनिंग में 'जंप मास्टर' बनकर जवानों का हौसला बढ़ाते हैं और उन्हें इस कला में निपुण होने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे उनका नेतृत्व और साहस हमेशा बरकरार रहता है।
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