कविता नीलू शेखावत: ओल्ड लैंग साइन

ओल्ड लैंग साइन
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Highlights

कोविड के हालात पर नीलू शेखावत की एक कविता

किस तरह से यह बीमारी हमारे जीवन का अंग बन गई

कोविड पर कविता

▪️ओल्ड लैंग साइन▪️

खूंटियों पर लटकते मास्क
सहसा दिला देते हैं
विगत की स्मृति

बार बार साबुन से धुले खुरदरे 
ठंड में ठिठुरते हाथों को
नर्म और गर्म हथेलियों का संपुट
जिनकी यादें रच गई हो रेखाओं में

ये शब्द उन एक जोड़ी आंखों के लिए
जो देखती है डूबकर सुकून में
एकटक तुम्हारी ओर

सेनेटाइजर की शीशी के अलावा भी
कोई था जिसने इंतजार किया
तुम्हारा घर में कदम रखने का

ये शब्द उस शह के लिए
जिसने नहीं होने दिया दिल को दूर
दो गज की दूरी के बावजूद

यह प्यार उस कप के नाम
साल की आखिरी शाम
जो ख़त्म किया गया था

कि वक्त थम जाए
ओल्ड लैंग साइन को 
ऐसे ही गाया होगा किसी ने

पहली बार 
उंगलियां उलझाकर 
दिसंबर के अंतिम छोर पर

- नीलू शेखावत

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