Highlights
- प्रियंका गांधी ने वंदे मातरम पर बहस को जनता का ध्यान भटकाने वाला बताया।
- उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री तथ्यों के मामले में कमजोर पड़ जाते हैं।
- वंदे मातरम के इतिहास और संविधान सभा के निर्णय पर प्रकाश डाला।
- नेहरू के योगदानों को याद किया और सरकार पर वर्तमान मुद्दों से भागने का आरोप लगाया।
नई दिल्ली: वायनाड (Wayanad) से सांसद और कांग्रेस (Congress) की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) ने लोकसभा (Lok Sabha) में वंदे मातरम (Vande Mataram) पर सरकार पर जोरदार हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह बहस जनता का ध्यान भटकाने के लिए की जा रही है, जबकि देश बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याओं से जूझ रहा है।
लोकसभा में अपने जोरदार संबोधन में प्रियंका गांधी ने वंदे मातरम पर हो रही चर्चा के औचित्य पर गंभीर सवाल उठाए।
उन्होंने स्पष्ट किया कि यह बहस देश के ज्वलंत मुद्दों और वर्तमान की कड़वी सच्चाइयों से जनता का ध्यान हटाने का एक सुनियोजित प्रयास है।
उनका मानना था कि मौजूदा सरकार देश के वर्तमान की असलियत छिपाना चाहती है, क्योंकि वह बेरोजगारी, बेलगाम महंगाई, लगातार हो रहे पेपर लीक और अन्य गंभीर समस्याओं का समाधान खोजने में पूरी तरह विफल रही है।
यह सरकार सिर्फ दिखावे और इवेंट मैनेजमेंट की राजनीति में व्यस्त है, जबकि देश की जनता मूलभूत समस्याओं से त्रस्त है।
वंदे मातरम पर बहस: ध्यान भटकाने का प्रयास
प्रियंका गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत में ही इस बात पर जोर दिया कि आज जिस विषय पर हम चर्चा कर रहे हैं, वह केवल एक सामान्य विषय नहीं है, बल्कि यह भारत की आत्मा का एक अभिन्न हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि हमारा राष्ट्रगीत वंदे मातरम उस पवित्र भावना का प्रतीक है, जिसने गुलामी की नींद में सोए हुए भारत के लोगों को जगाया था।
इस गीत ने उन्हें वह अदम्य साहस और हिम्मत दी थी कि वे ब्रिटिश साम्राज्य के सामने खड़े होकर सत्य और अहिंसा के नैतिक हथियारों के साथ उनका सामना कर सकें।
वंदे मातरम केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक प्रेरणास्रोत है जिसने करोड़ों भारतीयों को एकजुट किया।
उन्होंने सवाल किया कि जब यह गीत पिछले 150 सालों से देशवासियों के दिलों में गहराई से बसा हुआ है और हमारे देश को आजादी मिले 75 साल से अधिक हो चुके हैं, तो फिर आज इस राष्ट्रीय महत्व के गीत पर बहस की क्या आवश्यकता है?
उन्होंने इस अनावश्यक बहस के पीछे दो मुख्य कारण बताए: पहला, पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव, जिसमें प्रधानमंत्री अपनी राजनीतिक भूमिका निभाना चाहते हैं; और दूसरा, स्वतंत्रता संग्राम के महान नेताओं पर नए आरोप लगाकर और अतीत के मुद्दों को उठाकर जनता का ध्यान वर्तमान के वास्तविक और ज्वलंत मुद्दों से भटकाना।
प्रियंका गांधी ने आरोप लगाया कि सरकार चाहती है कि देश अतीत की बातों में ही उलझा रहे, उसी की तरफ देखता रहे जो हो चुका है और बीत चुका है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह सरकार वर्तमान और भविष्य की ओर देखने में सक्षम ही नहीं रही है।
उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि आज प्रधानमंत्री मोदी वह प्रधानमंत्री नहीं रहे जो एक समय में थे। उनका आत्मविश्वास लगातार घट रहा है और उनकी नीतियां देश को आंतरिक रूप से कमजोर कर रही हैं।
उन्होंने यह भी दावा किया कि सत्ता पक्ष के कई सदस्य भी अंदरूनी तौर पर इस बात से सहमत हैं, लेकिन वे दबी जुबान में अपनी बात कह रहे हैं और सार्वजनिक रूप से चुप हैं।
देश के लोग आज खुश नहीं हैं, वे तमाम समस्याओं से घिरे हुए परेशान हैं, और सरकार उन समस्याओं का कोई हल नहीं निकाल रही है।
प्रधानमंत्री के भाषण पर प्रियंका का पलटवार
प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री के भाषण शैली की तारीफ करते हुए कहा कि वे भाषण तो बहुत अच्छा देते हैं, थोड़ा लंबा जरूर होता है, लेकिन अच्छा देते हैं।
हालांकि, उन्होंने तुरंत यह भी जोड़ा कि प्रधानमंत्री तथ्यों के मामले में बहुत कमजोर पड़ जाते हैं। उन्होंने कहा कि तथ्यों को किस तरह से जनता के सामने रखा जाए, यह भी एक कला होती है।
उन्होंने स्वयं को "नई-नई" प्रतिनिधि बताते हुए कहा कि वह कलाकार तो नहीं हैं, लेकिन सदन के सामने कुछ ठोस तथ्य रखना चाहती हैं, और वह भी केवल तथ्य के रूप में, बिना किसी लाग-लपेट के।
उन्होंने वंदे मातरम की सालगिरह पर आयोजित एक बड़े कार्यक्रम में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए भाषण का उदाहरण दिया।
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि 1896 में पहली बार गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने यह गीत एक अधिवेशन में गाया था। प्रियंका गांधी ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि वह कौन सा अधिवेशन था।
उन्होंने कटाक्ष किया कि क्या वह हिंदू महासभा का अधिवेशन था या आरएसएस का? प्रधानमंत्री किस बात से कतरा रहे थे कि यह कांग्रेस का अधिवेशन था?
यह तथ्यों की अधूरी प्रस्तुति है, जो जनता को भ्रमित कर सकती है।
वंदे मातरम का सच्चा इतिहास और विकास
प्रियंका गांधी ने वंदे मातरम की असली कालक्रम (क्रोनोलॉजी) को सदन के सामने विस्तार से रखा, ताकि सभी को इस गीत के ऐतिहासिक महत्व और विकास की सही जानकारी मिल सके।
- 1875: महाकवि बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने इस गीत के पहले दो अंतरे लिखे। ये वही अंतरे हैं जिन्हें बाद में हमारे राष्ट्रगीत के रूप में घोषित किया गया और जिन्हें हम आज भी गर्व से गाते हैं।
- 1882: इन दो अंतरों के लिखे जाने के सात साल बाद, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय का प्रसिद्ध उपन्यास 'आनंद मठ' प्रकाशित हुआ। इसी उपन्यास में उन्होंने यह कविता प्रकाशित की, लेकिन इसमें चार और अंतरे जोड़ दिए गए थे, जिससे यह एक लंबी कविता बन गई।
- 1896: कांग्रेस के अधिवेशन में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार यह गीत गाया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने इस गीत को राष्ट्रीय पहचान दिलाई।
उन्होंने आगे बताया कि 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ हुए शक्तिशाली आंदोलन के समय वंदे मातरम जनता की एकता और प्रतिरोध की गुहार बनकर गली-गली से गूंजा। गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी स्वयं इस गीत को गाते हुए बंगाल की सड़कों पर उतरे, जिससे जनता में अभूतपूर्व उत्साह का संचार हुआ। विद्यार्थियों से लेकर किसानों तक, व्यापारियों से लेकर वकीलों तक, समाज के हर वर्ग के लोग इस गीत को गाने लगे। यह गीत ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार बन गया था।
प्रियंका गांधी ने इस गीत की अदम्य शक्ति पर जोर दिया, जिसके कारण ब्रिटिश साम्राज्य थर-थर कांपता था।
उन्होंने कहा कि हमारे देशवासी इस गीत को सुनकर वह मन बनाते थे, वह हिम्मत बनाते थे कि इस भयंकर साम्राज्य के खिलाफ सत्य और अहिंसा के नैतिक हथियारों को लेकर शहीद होने की तैयारी कर सकें। यह गीत मातृभूमि के लिए मर मिटने की भावना को जगाता था और स्वतंत्रता संग्राम का एक अविभाज्य हिस्सा बन गया था। इस गीत का हमारे देश से जुड़ाव इतना गहरा और भावनात्मक है कि इसे किसी भी विवाद में घसीटना अनुचित है।
सांप्रदायिक राजनीति और गीत का विवादित होना
प्रियंका गांधी ने बताया कि 1930 के दशक में, जब हमारे देश में सांप्रदायिक राजनीति ने सिर उठाना शुरू किया, तब यह गीत विवादित होने लगा। कुछ तत्वों ने इस गीत के कुछ अंशों को सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया, जिससे इसकी सार्वभौमिक अपील पर आंच आने लगी। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण मोड़ था, क्योंकि इससे पहले यह गीत सभी धर्मों और समुदायों के लोगों को एकजुट करता था।
उन्होंने 1937 की एक महत्वपूर्ण घटना का उदाहरण दिया, जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में किया था, लेकिन गलत तथ्यों के साथ। प्रियंका गांधी ने कहा कि वह इस घटना के सच्चे तथ्यों को सदन के सामने रखना चाहती हैं, ताकि इतिहास को सही परिप्रेक्ष्य में समझा जा सके और किसी भी प्रकार की गलत सूचना से बचा जा सके।
बोस और नेहरू के पत्र व्यवहार का खुलासा
प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री के उस दावे का खंडन किया जिसमें उन्होंने 20 अक्टूबर के जवाहरलाल नेहरू के पत्र का जिक्र किया था, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस के 17 अक्टूबर के पत्र का उल्लेख जानबूझकर नहीं किया। उन्होंने बताया कि 1937 में, जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस कोलकाता में कांग्रेस अधिवेशन का आयोजन कर रहे थे, तो उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक महत्वपूर्ण चिट्ठी लिखी थी, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री ने सदन में नहीं किया। यह चिट्ठी वंदे मातरम से संबंधित थी और इसमें गहरे विचार-विमर्श की आवश्यकता पर बल दिया गया था।
उन्होंने नेताजी के शब्दों को उद्धृत किया, जो 17 अक्टूबर को लिखा गया था: "My dear Jawahar, reference Vande Mataram. We shall have a talk in Calcutta and also discuss the question in the working committee if you bring it up there. I have written to Dr. Tagore to discuss this matter with you when you visit Shantiniketan. Please do not forget to have a talk with him when you visit Shantiniketan." इस पत्र से स्पष्ट होता है कि नेताजी इस मुद्दे पर गंभीर चर्चा चाहते थे और उन्होंने टैगोर से भी बात करने का सुझाव दिया था।
प्रियंका गांधी ने बताया कि नेहरू ने 20 अक्टूबर को इस पत्र का जवाब दिया, जिसकी केवल एक पंक्ति प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में सुनाई। उन्होंने नेहरू के पत्र की शेष और महत्वपूर्ण पंक्तियों को पढ़ा, जिसमें नेहरू ने कहा था: "There is no doubt that the present outcry against Vande Mataram is to a large extent a manufactured one by the communalists. Whatever we do, we cannot pander to communalist feelings, but to meet real grievances where they exist. I have decided now to reach Calcutta on the 25th morning. This will give me time to see Dr. Tagore as well as other friends."
इन पंक्तियों से यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि पंडित नेहरू वंदे मातरम के खिलाफ उठाई जा रही आवाज को बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक तत्वों द्वारा गढ़ा हुआ मानते थे। उन्होंने यह भी कहा था कि वे सांप्रदायिक भावनाओं को बढ़ावा नहीं दे सकते, लेकिन जहां वास्तविक शिकायतें मौजूद हैं, उन्हें दूर करना आवश्यक है। नेहरू जी ने कलकत्ता जाकर डॉ. टैगोर और अन्य मित्रों से मिलने का निर्णय लिया था, ताकि इस संवेदनशील मुद्दे पर व्यापक विचार-विमर्श किया जा सके। प्रधानमंत्री द्वारा इन महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाना इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने जैसा है।
संविधान सभा का ऐतिहासिक निर्णय
प्रियंका गांधी ने बताया कि नेहरू जी कोलकाता गए और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से मिले। इस मुलाकात के अगले दिन गुरुदेव टैगोर ने एक महत्वपूर्ण चिट्ठी लिखी, जिसमें उन्होंने वंदे मातरम के स्वरूप पर अपनी राय दी।
उन्होंने कहा कि जो दो अंतरे हमेशा से गाए जाते थे, उनका महत्व इतना गहरा था कि उस हिस्से को कविता के शेष हिस्से और पुस्तक के उन अंशों से अलग करने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं थी।
गुरुदेव ने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता संग्राम में हमेशा से वही दो अंतरे ही गाए जाते थे, और सैकड़ों शहीदों के सम्मान के लिए, जिन्होंने इन दो अंतरों को गाते हुए अपनी कुर्बानी दी, उन्हें ऐसे ही गाना उचित रहेगा।
गुरुदेव टैगोर ने यह भी महत्वपूर्ण चेतावनी दी कि बाद में जोड़े गए अंतरों का सांप्रदायिक मायना निकाला जा सकता है, और उस समय के संवेदनशील माहौल में उनका इस्तेमाल अनुचित होगा। उनकी यह दूरदर्शिता आज भी प्रासंगिक है।
इसके बाद, 28 अक्टूबर 1937 को कांग्रेस की कार्य समिति ने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें वंदे मातरम के उन्हीं दो अंतरों को राष्ट्रगीत घोषित किया गया।
इस महत्वपूर्ण बैठक में महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, पंडित नेहरू, आचार्य नरेंद्र देव, सरदार पटेल, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर सहित देश के सभी प्रमुख महापुरुष मौजूद थे।
इन सभी ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति व्यक्त की थी, जो इस निर्णय की व्यापक स्वीकार्यता और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है।
भारत की आजादी के बाद, जब इसी गीत के इन्हीं दो अंतरों को 1950 में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान समिति में भारत का राष्ट्रगीत घोषित किया, तब भी लगभग यही महापुरुष मौजूद थे। उनके साथ-साथ संविधान निर्माता बी आर अंबेडकर और सत्ता पक्ष के आज के नेताओं के प्रेरणास्रोत श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी सभा में मौजूद थे।
उन्हीं दो अंतरों को राष्ट्रगीत घोषित किया गया और किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई।
यह तथ्य इस बात का प्रमाण है कि वंदे मातरम का जो स्वरूप आज हमारे पास है, वह गहन विचार-विमर्श और सर्वसम्मति का परिणाम है, न कि किसी विभाजनकारी सोच का।
महापुरुषों का अपमान और संविधान विरोधी मंशा
प्रियंका गांधी ने कड़े शब्दों में कहा कि वंदे मातरम के स्वरूप पर सवाल उठाना, जिसे संविधान सभा ने इतनी गंभीरता और सर्वसम्मति से स्वीकार किया था, न केवल उन महान महापुरुषों का अपमान है जिन्होंने अपने महान विवेक और दूरदर्शिता से यह ऐतिहासिक निर्णय लिया, बल्कि यह एक संविधान विरोधी मंशा को भी स्पष्ट रूप से उजागर करता है।
उन्होंने सवाल किया कि क्या सत्ता पक्ष के हमारे साथी इतने अहंकारी हो गए हैं कि वे खुद को महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर, राजेंद्र प्रसाद, बाबा साहब अंबेडकर, मौलाना आजाद, सरदार पटेल और सुभाष चंद्र बोस जैसे राष्ट्र निर्माताओं से भी बड़ा समझने लगे हैं? यह सरकार की मानसिकता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
मोदी जी का अपने भाषण में यह कहना कि राष्ट्रगीत को एक विभाजनकारी सोच द्वारा काटा गया, उन सभी महापुरुषों का घोर अपमान है जिन्होंने अपना पूरा जीवन इस देश की आजादी की लड़ाई में झोंक दिया। वंदे मातरम को विभाजित करने का आरोप लगाकर, सरकार पूरी संविधान सभा पर आरोप लगा रही है और उसके हर एक नेता को दोषी ठहरा रही है। प्रियंका गांधी ने इसे हमारी संविधान सभा और हमारे संविधान पर एक खुला और सीधा हमला बताया, जो देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
नेहरू का योगदान: देश निर्माण की नींव
प्रियंका गांधी ने जवाहरलाल नेहरू के योगदानों को याद करते हुए एक महत्वपूर्ण तुलना की। उन्होंने कहा कि जितनी देर प्रधानमंत्री मोदी देश के प्रधानमंत्री रहे हैं (लगभग 12 साल), उतनी ही देर जवाहरलाल नेहरू देश की आजादी के लिए जेल में रहे। उसके बाद वे 17 साल तक प्रधानमंत्री रहे और देश को आधुनिक भारत की नींव दी।
उन्होंने सरकार की नेहरू की आलोचना पर पलटवार करते हुए कहा कि अगर पंडित नेहरू ने इसरो (ISRO) नहीं बनाया होता तो आज आपका मंगलयान अंतरिक्ष में नहीं होता। अगर डीआरडीओ (DRDO) नहीं बनाया होता तो आज देश के पास तेजस जैसे उन्नत लड़ाकू विमान नहीं होते। अगर आईआईटी (IIT) और आईआईएम (IIM) जैसे उच्च शिक्षा संस्थान नहीं बनाए होते तो हम आज सूचना प्रौद्योगिकी (IT) के क्षेत्र में इतने आगे नहीं होते। अगर एम्स (AIIMS) जैसे विश्वस्तरीय चिकित्सा संस्थान नहीं बनाए होते तो हम कोरोना जैसी बड़ी और अभूतपूर्व चुनौती का सामना कैसे करते? ये सभी संस्थान नेहरू की दूरदृष्टि का परिणाम हैं।
उन्होंने आगे कहा कि अगर नेहरू ने बीएचईएल (BHEL), गेल (GAIL), सेल (SAIL), भाखड़ा नंगल जैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम और विशाल परियोजनाएं नहीं बनाई होतीं, जिन्हें आज की सरकार लगातार बेच रही है, तो यह विकसित भारत कैसे बनता? पंडित जवाहरलाल नेहरू इस देश के लिए जिए और देश की सेवा करते-करते उन्होंने दम तोड़ा। उनके योगदान को कम करके आंकना या नकारना देश के इतिहास और उसके निर्माण में उनके बलिदान का अपमान है।
वर्तमान मुद्दों से पलायन और सरकार की राजनीति
प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री को एक छोटी सी सलाह दी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री महोदय 12 सालों से इस सदन में हैं, जबकि वह स्वयं मात्र 12 महीनों से हैं। फिर भी, उनकी सलाह है कि प्रधानमंत्री नेहरू जी से जितनी भी शिकायतें हैं, जितनी भी गलतियां उन्होंने की हैं, जितनी भी गालियां देनी हैं, जितना भी अपमान करना है, उसकी एक विस्तृत सूची बना लें। उन्होंने कटाक्ष करते हुए 999 या 9999 अपमानों की सूची बनाने की बात कही।
उन्होंने सुझाव दिया कि फिर सदन में एक समय निर्धारित किया जाए, जैसे वंदे मातरम पर 10 घंटे बहस हुई, वैसे ही 10, 20 या 40 घंटे जितने घंटों में प्रधानमंत्री की यह शिकायत पूरी हो जाए, उस पर बहस कर ली जाए। उन्होंने कहा कि एक बार जब यह अध्याय हमेशा के लिए बंद हो जाए, जैसे अंग्रेजी में कहते हैं "Once and for all, let's close the chapter", तब देश सुन लेगा कि क्या-क्या शिकायतें हैं, किसने क्या किया, इंदिरा जी ने क्या किया, राजीव जी ने क्या किया, परिवारवाद क्या होता है, नेहरू जी ने कौन सी गलतियां कीं।
इसके बाद, उन्होंने जोर देकर कहा कि सदन के कीमती समय का उपयोग जनता की समस्याओं को हल करने के लिए किया जाना चाहिए। फिर देश बेरोजगारी, महंगाई, पीएमओ में हो रही समस्याओं, बैटिंग ऐप के बारे में, पेपर लीक, आरक्षण के साथ खिलवाड़, महिलाओं की स्थिति सुधारने जैसे वर्तमान और भविष्य के मुद्दों पर चर्चा कर सकेगा। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया कि उसकी राजनीति सिर्फ दिखावे की, इवेंट मैनेजमेंट की और चुनाव से चुनाव तक की राजनीति है, जो तरह-तरह के ध्यान भटकाने वाले मुद्दों को उठाती है, क्योंकि सरकार देश के वर्तमान की असलियत छिपाना चाहती है और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने से कतरा रही है।
प्रियंका गांधी ने कहा कि आज देश का युवा कितना परेशान है, कितनी मुश्किल में है। पेपर लीक होते रहते हैं, बेरोजगारी चरम पर है और महंगाई इतनी बढ़ चुकी है कि आम आदमी का जीना मुश्किल हो गया है। आरक्षण के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है, उसकी चर्चा सदन में क्यों नहीं हो रही है? महिलाओं की बात तो बड़े-बड़े ऐलान के रूप में होती है, मगर उनकी परिस्थितियों को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है? बड़े-बड़े शहरों में प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, लेकिन हम इस सदन में बैठकर सिर्फ अतीत की छोटी-छोटी बातों पर बहस कर रहे हैं।
उन्होंने सत्ता पक्ष को चुनौती दी कि अगर उनमें हिम्मत है तो वे भविष्य की बात करें, वर्तमान की असली समस्याओं की बात करें। हिम्मत है तो बात करें कि बेरोजगारी क्यों है, पेपर लीक क्यों होते हैं। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि इनका शासन दमन का शासन है, इनकी राजनीति दिखावे की राजनीति है।
वंदे मातरम: भारत की आत्मा का महामंत्र
अपने भाषण के अंत में प्रियंका गांधी ने जोर देकर कहा कि वंदे मातरम इस देश की उन्हीं उम्मीदों की पुकार है, जिन्हें वर्तमान शासन हर रोज ठुकरा रहा है। उन्होंने इस गीत के चिरस्थायी महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि सरहद पर आज भी जब हमारा जवान दुश्मन का सामना करता है, तो उसकी छाती में वंदे मातरम गूंजता है, जो उसे अदम्य साहस और प्रेरणा देता है।
आज भी जब हमारा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करने जाता है, तो उसके दिल की धड़कन में वंदे मातरम होता है, जो उसे जीत के लिए प्रेरित करता है। आज भी इस देश के करोड़ों देशवासी जब अपने राष्ट्रध्वज को शान से फहराते हुए देखते हैं, तो उनकी जुबान पर स्वतः ही वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम आता है। यह गीत केवल शब्द नहीं, बल्कि एक भावना है जो हर भारतीय के हृदय में बसती है।
उन्होंने बताया कि कांग्रेस के हर एक अधिवेशन में, 1905 से लेकर आज तक, सामूहिक तौर पर वंदे मातरम गाया जाता है। उन्होंने सत्ता पक्ष से सीधा सवाल किया कि क्या उनके अधिवेशनों में यह गाया जाता है? प्रियंका गांधी ने चेतावनी दी कि अपने देश की इस आत्मा के, इस महामंत्र को विवादित करके सरकार एक बहुत बड़ा पाप कर रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि कांग्रेस पार्टी इस पाप में किसी भी सूरत में शामिल नहीं होगी। यह राष्ट्रगीत वंदे मातरम हमेशा से कांग्रेस के लिए प्यारा रहा है, हमेशा से हमारे लिए पवित्र रहा है और हमेशा के लिए पवित्र रहेगा। धन्यवाद।
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