Highlights
- राजस्थान हाईकोर्ट के 39 जजों को जिलों और न्याय क्षेत्रों की गार्जियनशिप मिली।
- यह जिम्मेदारी न्यायिक अधिकारियों की दक्षता और सत्यनिष्ठा के आकलन के लिए है।
- जज अपने क्षेत्र का दौरा कर मुख्य न्यायाधीश को सलाह देंगे।
- सेवानिवृत्ति और स्थानांतरण के बाद नया आवंटन तत्काल प्रभाव से लागू।
जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने 39 जजों को विभिन्न जिलों और न्याय क्षेत्रों की गार्जियनशिप (Guardianship) की जिम्मेदारी सौंपी है। यह पुनर्व्यवस्था न्यायिक अधिकारियों की दक्षता और सत्यनिष्ठा की समीक्षा के लिए की गई है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य की न्यायिक व्यवस्था को और अधिक सुदृढ़ तथा पारदर्शी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है।
हाईकोर्ट के 39 माननीय न्यायाधीशों को विभिन्न जिलों और न्याय क्षेत्रों की 'गार्जियनशिप' यानी अभिभावकत्व की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
इस पुनर्व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य संबंधित क्षेत्रों में न्यायिक अधिकारियों की कार्यकुशलता, दक्षता और सत्यनिष्ठा के मापदंडों पर गहन समीक्षा करना है, ताकि न्याय प्रणाली में सुधार और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके।
पुनर्व्यवस्था का कारण और तत्काल प्रभाव
हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी आदेश के अनुसार, यह नया आवंटन तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। पूर्व में जारी आदेश को न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति और स्थानांतरण के परिणामस्वरूप निरस्त कर दिया गया था।
इस नए आदेश के माध्यम से, प्रत्येक गार्जियन जज को उनके आवंटित क्षेत्र में न्यायिक प्रशासन की देखरेख और मार्गदर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। यह पहल न केवल न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत करेगी बल्कि स्थानीय स्तर पर न्याय की गुणवत्ता में भी सुधार लाएगी।
गार्जियन जज की भूमिका और जिम्मेदारियां
गार्जियन जज की भूमिका केवल पर्यवेक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सक्रिय भागीदारी भी शामिल है। संबंधित न्यायाधीश अपने आवंटित जिले में न्यायिक अधिकारियों की दक्षता और सत्यनिष्ठा के आकलन के मामले में अपने क्षेत्र की गहन समीक्षा करेंगे। वे समय-समय पर मुख्य न्यायाधीश को महत्वपूर्ण सलाह और सुझाव देंगे।
इसके लिए, न्यायाधीशों को अपने क्षेत्र के दौरे की पूर्व सूचना भी मुख्य न्यायाधीश को देनी होगी, ताकि हाईकोर्ट के मुख्य कार्यों पर कम से कम प्रभाव पड़े और न्यायिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती रहे।
गार्जियनशिप का अर्थ और महत्व
न्यायक्षेत्र में 'गार्जियनशिप' का अर्थ है किसी बड़े न्यायालय, जैसे हाईकोर्ट, के एक न्यायाधीश को राज्य के अलग-अलग जिलों के अधीनस्थ न्यायालयों की 'देखरेख' और मार्गदर्शन की जिम्मेदारी सौंपना।
इसमें गार्जियन जज अदालतों के कामकाज, उनकी ईमानदारी और कार्यक्षमता पर पैनी नजर रखते हैं।
यदि किसी क्षेत्र में अदालतों से जुड़ी कोई समस्या आती है, या न्याय की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता होती है, तो गार्जियन जज वहां के अधिकारियों को सलाह देंगे और आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करेंगे।
वे महत्वपूर्ण जानकारी और अपनी सिफारिशें हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजेंगे। यह व्यवस्था पूरे राज्य की न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में अत्यंत सहायक सिद्ध होती है।
जजों द्वारा ध्यान रखी जाने वाली मुख्य बातें
- उनके इलाके का न्यायिक सिस्टम ठीक चल रहा है या नहीं, किसी तरह की दिक्कतें तो नहीं आ रही हैं।
- अगर किसी कोर्ट में अनुशासन, काम की गति या ईमानदारी से जुड़ी कोई दिक्कत है, तो जज उस पर विशेष ध्यान देंगे।
- अपने इलाके का नियमित दौरा करेंगे, न्यायिक अधिकारियों से मिलेंगे और जरूरत पड़ने पर सुझाव या सुधार बताएंगे।
किस जज को कहां की जिम्मेदारी मिली: विस्तृत सूची
इस नई व्यवस्था के तहत, 39 जजों को विभिन्न जिलों और न्याय क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह सूची न्यायिक प्रशासन के विकेंद्रीकरण और प्रभावी निगरानी को दर्शाती है:
- जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा: जयपुर मेट्रोपॉलिटन-I
- जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी: जयपुर मेट्रोपॉलिटन-II
- जस्टिस विनित कुमार माथुर: डूंगरपुर
- जस्टिस इंद्रजीत सिंह: जोधपुर मेट्रोपॉलिटन
- जस्टिस अरुण मोंगा: बालोतरा
- जस्टिस महेंदर कुमार गोयल: कोटा, जैसलमेर
- जस्टिस मुन्नुरी लक्ष्मण: अजमेर, फलौदी
- जस्टिस फरजंद अली: उदयपुर, सलूम्बर
- जस्टिस सुदेश बंसल: अलवर
- जस्टिस अनूप कुमार ढंड: भीलवाड़ा
- जस्टिस विनोद कुमार भारवानी: बीकानेर
- जस्टिस उमा शंकर व्यास: गंगानगर
- जस्टिस रेखा बोराणा: भरतपुर
- जस्टिस समीर जैन: सीकर
- जस्टिस कुलदीप माथुर: चित्तौड़गढ़, जयपुर जिला, पाली
- जस्टिस शुभा मेहता: हनुमानगढ़
- जस्टिस गणेश राम मीणा: दौसा
- जस्टिस अनिल कुमार उपमान: झुंझुनूं
- जस्टिस डॉ. नूपुर भाटी: टोंक
- जस्टिस अशोक कुमार जैन: बूंदी
- जस्टिस योगेंद्र कुमार पुरोहित: चूरू
- जस्टिस भुवन गोयल: झालावाड़
- जस्टिस प्रवीर भटनागर: बारां
- जस्टिस आशुतोष कुमार: कोटपुतली-बहरोड़
- जस्टिस चंद्र शेखर शर्मा: धौलपुर
- जस्टिस प्रमिल कुमार माथुर: मेड़ता
- जस्टिस चंद्र प्रकाश श्रीमाली: राजसमंद
- जस्टिस मनीष शर्मा: सवाई माधोपुर
- जस्टिस आनंद शर्मा: ब्यावर
- जस्टिस सुनील बेनीवाल: खैरथल-तिजारा
- जस्टिस मुकेश राजपुरोहित: करौली
- जस्टिस संदीप शाह: बाड़मेर
- जस्टिस संदीप टंडन: बांसवाड़ा
- जस्टिस बलजिंदर सिंह संधू: डीग
- जस्टिस बिपिन गुप्ता: जालोर
- जस्टिस संजीत पुरोहित: सिरोही
- जस्टिस रवि चिरानिया: डीडवाना-कुचामन
- जस्टिस अनुरूप सिंघी: जोधपुर जिला
- जस्टिस संगीता शर्मा: प्रतापगढ़
टूर प्रोग्राम की पूर्व सूचना और कार्यक्षमता
आदेश में सभी गार्जियन जजों से स्पष्ट रूप से अनुरोध किया गया है कि वे अपने टूर प्रोग्राम की सूचना मुख्य न्यायाधीश को अपने दौरे पर जाने से पहले दें। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि उनके दौरों की योजना इस तरह से बनाई जाए कि जहां तक संभव हो, हाईकोर्ट के नियमित न्यायिक कार्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। यह संतुलन बनाए रखना न्यायिक दक्षता और प्रशासनिक सुगमता दोनों के लिए आवश्यक है। यह व्यवस्था राजस्थान की न्यायपालिका को और अधिक सक्रिय और जन-केंद्रित बनाने में सहायक होगी, जिससे आम जनता को त्वरित और निष्पक्ष न्याय मिल सकेगा।
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