Rajasthan: राजस्थान हाईकोर्ट: विवादित गोशालाओं को नहीं मिलेगा सरकारी अनुदान

राजस्थान हाईकोर्ट: विवादित गोशालाओं को नहीं मिलेगा सरकारी अनुदान
विवादित गोशालाओं को अनुदान नहीं: हाईकोर्ट
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Highlights

  • राजस्थान हाईकोर्ट ने विवादित गोशालाओं को सरकारी अनुदान न देने के फैसले को सही ठहराया।
  • कोर्ट ने कहा कि जमीन या कार्यकारिणी विवाद होने पर अनुदान रोकना सार्वजनिक धन की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
  • चूरू की 'श्री गोशाला समिति' की जनहित याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया।
  • गोपालन विभाग की गाइडलाइन के क्लॉज-19 को कोर्ट ने उचित माना।

जोधपुर: राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) की जोधपुर (Jodhpur) पीठ ने फैसला सुनाया कि विवादित गोशालाओं (Gaushalas) को सरकारी अनुदान (Government Grant) नहीं मिलेगा। कोर्ट ने सार्वजनिक धन की सुरक्षा हेतु इस नियम को सही ठहराया।

राजस्थान हाई कोर्ट की जोधपुर पीठ ने बुधवार को गोशालाओं को अनुदान देने से जुड़े एक महत्वपूर्ण विवाद में राज्य सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्रसिंह भाटी और जस्टिस बिपिन गुप्ता की खंडपीठ ने यह निर्णय दिया।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जिन गोशालाओं की जमीन या कार्यकारिणी को लेकर अदालती विवाद चल रहा है, वे सरकारी अनुदान की हकदार नहीं होंगी। यह फैसला चूरू के सरदारशहर की 'श्री गोशाला समिति' की जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए 10 दिसंबर को सुनाया गया।

गोपालन विभाग की गाइडलाइन को मिली वैधता

हाईकोर्ट ने गोपालन विभाग की गाइडलाइन के उस नियम को सही ठहराया है, जिसके तहत अदालती विवाद सुलझने तक अनुदान रोकने का प्रावधान है। कोर्ट ने सार्वजनिक धन की सुरक्षा के लिए इस नियम को आवश्यक बताया।

याचिकाकर्ता की चुनौती और तर्क

याचिकाकर्ता 'श्री गोशाला समिति' ने गोपालन विभाग द्वारा 3 मार्च 2023 को जारी गाइडलाइन के क्लॉज-19 को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता के वकील ने इस नियम को मनमाना बताया।

वकील ने तर्क दिया कि कई गोशालाएं विधिवत पंजीकृत हैं, गोपालन विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त हैं और सभी पात्रता शर्तों का पालन कर रही हैं। उन्हें केवल क्लॉज 19 के कारण अनुदान से वंचित किया गया है।

उन्होंने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है। केवल प्रशासनिक विवाद के कारण अनुदान रोकने से गोशाला में रहने वाली गायों और बछड़ों के चारे, पानी और इलाज पर संकट खड़ा हो गया है, जो पशु क्रूरता के समान है।

राज्य सरकार का मजबूत पक्ष

राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने कोर्ट में तर्क दिया कि क्लॉज-19 को सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को रोकने के लिए शामिल किया गया है। यह प्रावधान पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।

उन्होंने बताया कि 22 मार्च 2023 को क्लॉज 19 को संशोधित किया गया था। इसमें स्वीकृति प्राधिकार को जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली जिला स्तरीय गोपालन समिति में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे अधिक तटस्थता और प्रशासनिक निरीक्षण सुरक्षित हो गया।

सरकार ने तर्क दिया कि जब किसी गोशाला की जमीन के मालिकाना हक या उसे चलाने वाली कमेटी को लेकर कोर्ट में केस चल रहा हो, तो यह तय नहीं होता कि असली प्रबंधन किसका है। ऐसी स्थिति में पैसा जारी करने से गबन या विवाद बढ़ने का खतरा रहता है।

वकील ने स्पष्ट किया कि यह रोक स्थायी नहीं है। जैसे ही विवाद सुलझ जाएगा, गोशाला अनुदान के लिए पात्र हो जाएगी।

कोर्ट का फैसला: सार्वजनिक धन की सुरक्षा जरूरी

कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने माना कि विवादित गोशालाओं को अनुदान न देना 'मनमाना' नहीं है, बल्कि एक 'एहतियाती कदम' है।

अपने फैसले में कोर्ट ने लिखा, "सार्वजनिक धन केवल उन्हीं हाथों में सौंपा जाना चाहिए जो कानूनी रूप से अधिकृत हों, प्रशासनिक रूप से स्थिर हों और उनके उचित उपयोग के लिए जिम्मेदार हों।" कोर्ट ने यह भी कहा कि क्लॉज-19 एक नियामक और अस्थायी प्रावधान है, जो विवाद सुलझने तक लागू रहता है।

जिला कलेक्टर की अहम भूमिका

फैसले में 22 मार्च 2023 को किए गए संशोधन का भी जिक्र किया गया। कोर्ट ने नोट किया कि अब अनुदान स्वीकृत करने का अधिकार जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी को दिया गया है।

चूंकि कलेक्टर जिले का सबसे बड़ा प्रशासनिक अधिकारी होता है, इसलिए वह निष्पक्षता से यह जांच सकता है कि विवाद की स्थिति क्या है। कोर्ट ने माना कि इससे प्रक्रिया में पारदर्शिता आई है और सार्वजनिक धन का सही उपयोग सुनिश्चित होता है।

क्या है क्लॉज 19 का प्रावधान?

गोसंरक्षण और संवर्धन निधि नियम, 2016 के तहत गोशालाओं के लिए एक समर्पित फंड बनाने का प्रावधान है। हालांकि, 3 मार्च 2023 की गाइडलाइन की धारा 19 में यह प्रावधान है कि यदि गोशाला की भूमि, कार्यकारिणी इत्यादि से संबंधित कोई विवाद कोर्ट में विचाराधीन है, तो ऐसी स्थिति में संबंधित गोशाला की सहायता राशि कोर्ट द्वारा निर्णय दिए जाने के उपरांत ही जिला स्तरीय गोपालन समिति द्वारा स्वीकृत की जाएगी।

याचिकाकर्ता की शिकायत थी कि यह प्रतिबंध कठोर और मनमाना है, जिसके परिणामस्वरूप सभी पात्रता मानदंडों को पूरा करने के बावजूद आवश्यक वित्तीय सहायता से वंचित रहना पड़ता है। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया।

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