Highlights
- सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान की जोजरी, लूणी, बांडी नदियों में प्रदूषण पर नाराजगी जताई।
- जोधपुर, पाली, बालोतरा के लगभग 20 लाख लोग प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं।
- कोर्ट ने राज्य सरकार को फटकार लगाई, कहा स्थिति बेहद दयनीय है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के आदेशों से भी सख्त निर्देश देने पड़ सकते हैं।
जोधपुर: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने जोजरी (Jojri), लूणी (Luni) और बांडी (Bandi) नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर राजस्थान (Rajasthan) सरकार को फटकारा, कहा कि लगभग 20 लाख लोग प्रभावित हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान की जोजरी, लूणी और बांडी नदियों में बढ़ते प्रदूषण के मामले पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई गई। शीर्ष अदालत ने इस गंभीर मुद्दे पर अपनी गहरी नाराजगी व्यक्त की, जिसमें उद्योगों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण को नियंत्रित करने में राज्य की स्थिति को बेहद दयनीय बताया गया है। इस प्रदूषण के कारण जोधपुर, पाली और बालोतरा जैसे क्षेत्रों के लगभग 20 लाख लोग सीधे तौर पर प्रभावित हो रहे हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर परिणाम हो रहे हैं।
राज्य सरकार की स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी
न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायाधीश संदीप मेहता की खंडपीठ के समक्ष राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने एक विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट प्रस्तुत की। खंडपीठ ने इस रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 21 नवंबर को सूचीबद्ध किया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संकट की गंभीरता को देखते हुए, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा दिए गए आदेशों से भी अधिक सख्त निर्देश जारी करने पड़ सकते हैं। यह टिप्पणी राज्य में प्रदूषण नियंत्रण की मौजूदा स्थिति की गंभीरता को दर्शाती है।
औद्योगिक अपशिष्ट और सीईटीपी का बायपास
खंडपीठ ने विशेष रूप से इस बात पर जोर दिया कि नदियों में औद्योगिक अपशिष्ट सीधे तौर पर छोड़ा जा रहा है। कोर्ट ने पाया कि अधिकांश कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) को बायपास कर दिया गया है, जिसका अर्थ है कि उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषित पानी बिना किसी उचित उपचार के सीधे नदियों में मिल रहा है। यह स्थिति पर्यावरण और जलीय जीवन के लिए अत्यंत हानिकारक है, साथ ही उन लाखों लोगों के लिए भी जो इन नदियों पर निर्भर हैं।
लगातार बिगड़ती स्थिति पर कोर्ट का सवाल
न्यायालय ने राज्य सरकार और संबंधित शहरी निकायों से सवाल किया कि जब स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, तो ऐसे में शहरी निकायों और रीको को एनजीटी द्वारा लगाए गए दंड से राहत कैसे दी जा सकती है। यह सवाल राज्य की प्रदूषण नियंत्रण नीतियों और उनके कार्यान्वयन पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है। अतिरिक्त महाधिवक्ता शर्मा ने कोर्ट से अनुरोध किया कि एनजीटी द्वारा लगाए गए दो करोड़ रुपये के पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति दंड और प्रतिकूल टिप्पणियों पर फिलहाल रोक लगाई जाए। उन्होंने तर्क दिया कि इससे राज्य को अनुपालना की प्रगति कोर्ट के सामने प्रस्तुत करने का अवसर मिलेगा।
सरकार की ओर से आश्वासन और कोर्ट की अपेक्षा
शर्मा ने खंडपीठ को सूचित किया कि सरकार ने अब एनजीटी के सभी सकारात्मक परिचालन निर्देशों को लागू करने का निर्णय लिया है और प्रदूषण नियंत्रण के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। हालांकि, खंडपीठ ने राज्य के इस रुख को देखते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब केवल कागजी आश्वासन पर्याप्त नहीं होंगे, बल्कि जमीन पर दिखाई देने वाली ठोस कार्रवाई की आवश्यकता है। कोर्ट ने जोर दिया कि वास्तविक परिवर्तन तभी आएगा जब सरकार अपने वादों को हकीकत में बदलेगी।
21 नवंबर को विस्तृत आदेश की संभावना
सुप्रीम कोर्ट अब 21 नवंबर को इस जनहित याचिका पर विस्तृत आदेश जारी करेगा। सुनवाई के दौरान दिए गए संकेतों से यह स्पष्ट है कि कोर्ट इस मामले में कड़े दिशा-निर्देश जारी कर सकता है, ताकि राजस्थान की इन महत्वपूर्ण नदियों में प्रदूषण की समस्या का स्थायी समाधान खोजा जा सके और प्रभावित 20 लाख लोगों को राहत मिल सके। यह निर्णय राज्य में पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक जिम्मेदारी के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है।
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