निकाय-पंचायत चुनाव: दो से ज्यादा बच्चे?: राजस्थान: निकाय-पंचायत चुनाव में दो बच्चों की बाध्यता हटेगी?

राजस्थान: निकाय-पंचायत चुनाव में दो बच्चों की बाध्यता हटेगी?
निकाय-पंचायत चुनाव: दो से ज्यादा बच्चे?
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Highlights

  • राजस्थान में निकाय और पंचायत चुनाव में दो बच्चों की बाध्यता हटाने पर विचार।
  • यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने जनप्रतिनिधियों को छूट देने का समर्थन किया।
  • सरकारी कर्मचारियों को पहले ही मिल चुकी है तीन संतान की छूट।
  • यह मुद्दा विधानसभा में भी उठ चुका है।

जयपुर: राजस्थान (Rajasthan) में पंचायत और शहरी निकाय चुनाव लड़ने के लिए दो बच्चों की बाध्यता हटाने पर सरकार विचार कर रही है। यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा (UDH Minister Jhabar Singh Kharra) ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को छूट मिली तो जनप्रतिनिधियों को भी मिलनी चाहिए। मुख्यमंत्री (Chief Minister) स्तर पर भी चर्चा हुई है।

राजस्थान में पंचायत और शहरी निकायों के चुनाव लड़ने के नियमों में जल्द ही बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। राज्य सरकार उन जनप्रतिनिधियों की मांग पर गंभीरता से विचार कर रही है, जो दो से अधिक बच्चों की बाध्यता के कारण चुनाव नहीं लड़ पाते हैं। विभिन्न संगठनों और नेताओं की ओर से लगातार यह मांग उठाई जा रही है कि सरकारी कर्मचारियों की तरह ही जनप्रतिनिधियों को भी इस नियम में राहत मिलनी चाहिए। पंचायतीराज विभाग और स्वायत्त शासन विभाग से इस संबंध में अनौपचारिक रिपोर्ट भी मंगवाई गई है, जिससे इस महत्वपूर्ण निर्णय की दिशा में आगे बढ़ा जा सके।

सरकारी कर्मचारियों को राहत तो जनप्रतिनिधियों को क्यों नहीं?

यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि जब सरकारी कर्मचारियों पर तीन संतान का प्रतिबंध लगा था, उसमें सरकार ने राहत दे दी थी। ऐसे में जनप्रतिनिधियों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए। उन्होंने तर्क दिया कि देश और राज्य के हित में जनसंख्या नियंत्रण एक महत्वपूर्ण विषय है, लेकिन इसके लिए जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों के लिए दो अलग-अलग नियम नहीं हो सकते।

मंत्री खर्रा ने जोर देकर कहा कि सरकारी कर्मचारियों पर लागू दो बच्चों के नियम में जब छूट दी गई है, तो शहरी निकाय और पंचायतीराज के जनप्रतिनिधियों को भी ऐसी ही छूट मिलनी चाहिए। उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर एक बार सभी संबंधित पक्षों से चर्चा की जाएगी और उसके बाद ही उचित निर्णय लिया जाएगा।

मुख्यमंत्री स्तर पर भी हुई है चर्चा

झाबर सिंह खर्रा ने बताया कि इस विषय पर मुख्यमंत्री के साथ भी एक बार चर्चा हुई है। मुख्यमंत्री का भी मानना है कि इस मांग पर सभी की राय ली जानी चाहिए। जब ऐसी कोई मांग सरकार के पास आती है, तो उसे संबंधित विभाग में भेजा जाता है। विभाग के अधिकारी उस मांग पत्र को आगे मंत्रियों तक भेजते हैं। अंतिम निर्णय सरकार के स्तर पर ही होना है। इसलिए, एक बार सभी से चर्चा के बाद ही कोई ठोस कदम उठाया जाएगा।

भेदभाव खत्म करने की मांग

यूडीएच मंत्री ने कहा कि कर्मचारी और जनप्रतिनिधियों में ज्यादा भेदभाव नहीं किया जा सकता। जब एक वर्ग को राहत मिली है, तो दूसरे को भी राहत मिलनी चाहिए। यह मांग अब जनप्रतिनिधियों, खासकर निकाय और पंचायती राज के चुनाव लड़ने वालों की ओर से लगातार उठाई जा रही है, जिस पर विचार करना सरकार की प्राथमिकता है।

तीसरी संतान की बाध्यता हटाने की मांग का इतिहास

शहरी निकाय और पंचायती राज संस्थाओं में एक निश्चित तारीख के बाद दो से ज्यादा बच्चे होने पर चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया गया है। हालांकि, उस तारीख से पहले चाहे किसी के कितनी ही संतान हो, वह निकाय और पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव लड़ सकता है। यह नियम काफी समय से लागू है और कई नेताओं व संगठनों ने इसे हटाने की मांग की है।

कर्मचारियों को पहले ही मिल चुकी है राहत

एक समय सरकार ने सरकारी कर्मचारियों पर भी दो संतान की पाबंदी लगाई थी। दो से ज्यादा बच्चे होने पर प्रमोशन समेत कई लाभ नहीं मिलते थे। लंबे समय से कर्मचारियों को छूट देने की मांग चल रही थी। कुछ साल पहले सरकारी कर्मचारियों को तीसरी संतान की छूट दी गई, और तीन संतान वाले कर्मचारियों पर प्रमोशन की पाबंदी हटा ली गई।

1994-95 में लगी थी रोक

राजस्थान में दो से अधिक बच्चों पर चुनाव लड़ने की रोक 1994-95 में तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत की सरकार में राजस्थान पंचायती राज अधिनियम, 1994 के तहत लगाई गई थी। इस अधिनियम के अनुसार, जिन जनप्रतिनिधियों के दो से अधिक बच्चे होंगे, वे पंचायत और निकाय चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इसमें चुनाव जीतने के बाद तीसरा बच्चा पैदा होने पर पद से हटाने का भी प्रावधान था। तब से अब तक इस नियम में कोई शिथिलता नहीं दी गई है।

सरकारी नौकरी में भी था ऐसा नियम

साल 2002 में दो से ज्यादा बच्चे होने पर सरकारी नौकरी नहीं मिलने का कानून लाया गया था। इसमें प्रावधान था कि सरकारी नौकरी लगने के बाद भी तीसरा बच्चा होता है, तो उसका 5 साल तक कोई प्रमोशन नहीं होगा। नौकरी में रहते हुए तीन से ज्यादा बच्चे पैदा करने पर कंपलसरी रिटायरमेंट देने का नियम भी बनाया गया था। हालांकि, तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने 2018 में इस नियम को खत्म करने की घोषणा की थी। 5 साल तक प्रमोशन रोकने के नियम में भी शिथिलता देकर इसे 3 साल कर दिया था।

विधानसभा में भी उठ चुका है यह मामला

राजस्थान विधानसभा में भी यह मामला कई बार उठ चुका है। इसी साल हुए बजट सत्र में चित्तौड़गढ़ से निर्दलीय विधायक चंद्रभान सिंह आक्या ने सरकार से पूछा था कि प्रदेश में पंचायत चुनाव में तीन संतान होने पर चुनाव नहीं लड़ सकते, जबकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यह प्रतिबंध नहीं है। उन्होंने पंचायत चुनाव में इस नियम को हटाने की मांग की थी। इस पर संसदीय कार्यमंत्री जोगाराम पटेल ने जवाब देते हुए कहा था कि मामला गंभीर है और इस पर विचार किया जाएगा।

इससे पहले भी यह मुद्दा उठ चुका है। कांग्रेस सरकार में 2019 में यह मांग पूर्व विधायक हेमाराम चौधरी उठा चुके हैं। उन्होंने कहा था कि यह नियम सांसदों और विधायकों के लिए न होकर पंचायतीराज चुनावों में लागू होता है तो यह संविधान के विरुद्ध है। इन सभी मांगों और चर्चाओं के मद्देनजर, अब सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने पर विचार कर रही है, जिससे जनप्रतिनिधियों को भी सरकारी कर्मचारियों के समान राहत मिल सके।

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