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सोचिए… तलाक, जो जिंदगी का सबसे कठिन फैसला होता है, अगर वह भी नौकरी का हथियार बना दिया जाए तो समाज किस दिशा में जाएगा?
ऐसे मामलों में नौकरी रद्द की जा सकती है और आरोपी पर धोखाधड़ी व षड्यंत्र की धाराओं में कार्रवाई संभव है।
जयपुर।
सरकारी नौकरी… भारत में करोड़ों युवाओं का सपना। लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए अगर कोई तलाक जैसी गंभीर सामाजिक प्रक्रिया को नौकरी की सीढ़ी बना दे, तो यह न सिर्फ कानून बल्कि रिश्तों का भी मज़ाक है। राजस्थान में हाल ही में सामने आए मामलों ने इसी सच को उजागर किया है।
फर्जी तलाक का नया खेल
अब तक आपने फर्जी डिग्री, फर्जी स्पोर्ट्स सर्टिफिकेट और फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र से नौकरी पाने की कहानियां सुनी होंगी। मगर अब राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड (RSSB) के पास शिकायतें पहुंच रही हैं कि महिलाएं कागजों पर तलाक लेकर नौकरी हासिल कर रही हैं।
नौकरी लगते ही वही पति-पत्नी फिर से साथ रहने लगते हैं—कभी शादी करके, तो कभी लिव-इन में।
आरक्षण का गणित
राजस्थान सरकार ने तलाकशुदा महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा देने के लिए 2% आरक्षण का प्रावधान किया।
लेकिन RSSB अध्यक्ष आलोक राज के अनुसार—
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तलाकशुदा कोटे में कैंडिडेट्स की संख्या बहुत कम रहती है।
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इस वजह से कटऑफ भी कम होता है।
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नतीजतन, कई लोग सिर्फ कागजों पर तलाक लेकर इस श्रेणी में आवेदन कर रहे हैं।
फर्जी तलाक के तरीके
शिकायतों में दो बड़े पैटर्न सामने आए हैं—
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भर्ती निकलने से पहले शादी करना और कागजों पर तलाक ले लेना।
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पहले से विवाहित महिलाएं तलाक लेती हैं और नौकरी लगते ही पति के साथ रहने लगती हैं।
दोनों ही मामलों में अदालत की डिक्री दिखाई जाती है, लेकिन असल जिंदगी में रिश्ते जस के तस रहते हैं।
कितने मामले सामने आए?
अब तक 25 से ज्यादा शिकायतें RSSB तक पहुंच चुकी हैं।
ये मामले पीटीआई भर्ती 2022, फायरमैन भर्ती 2021 और सूचना सहायक भर्ती से जुड़े हैं।
कई बार जांच में पाया गया कि महिला ने तलाक के दस्तावेज दिखाए लेकिन हकीकत में वह पति के साथ ही रह रही थी।
कानूनी पहलू – षड्यंत्र और धोखाधड़ी
कानून विशेषज्ञ रामप्रताप सैनी का कहना है कि—
"अगर तलाक लेकर महिला उसी पति के साथ रहने लगती है, तो यह स्पष्ट षड्यंत्र है। इसका उद्देश्य सिर्फ नौकरी हथियाना है। यह दूसरों का हक मारने वाला अपराध है।"
ऐसे मामलों में नौकरी रद्द की जा सकती है और आरोपी पर धोखाधड़ी व षड्यंत्र की धाराओं में कार्रवाई संभव है।
केस स्टडी – FIR तक पहुंचा मामला
जयपुर का एक चर्चित मामला—
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कविता नाम की महिला ने तलाक के दस्तावेज दिखाकर पुलिस में कॉन्स्टेबल की नौकरी पाई।
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लेकिन उसका दूसरा पति सुनील कुमार सामने आकर बोला—"हमारा तलाक हुआ ही नहीं।"
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उसने FIR दर्ज कराई।
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अब SOG और पुलिस जांच कर रही है कि नौकरी के लिए कितनी धांधली की गई।
RSSB का नया कदम – पारदर्शिता की ओर
इस फर्जीवाड़े पर रोक लगाने के लिए RSSB अध्यक्ष आलोक राज ने बड़ा ऐलान किया है—
➡️ अब रिजल्ट SSC पैटर्न पर जारी होंगे।
➡️ रोल नंबर, नाम, माता-पिता का नाम, कैटेगरी और सब कैटेगरी सभी पब्लिक होंगे।
➡️ इससे समाज और गांव तुरंत पहचान सकेंगे कि किसने गलत तरीके से आरक्षण लिया है।
➡️ सूचना मिलने पर बोर्ड तुरंत कार्रवाई करेगा।
सामाजिक निहितार्थ (Social Implications)
यह मुद्दा केवल नौकरी का नहीं है, बल्कि समाज की मान्यताओं और नैतिकता से भी जुड़ा है।
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तलाक जैसी गंभीर प्रक्रिया का मज़ाक—असल तलाकशुदा महिलाओं की पीड़ा को छोटा कर देता है।
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असली हकदारों से मौके छिन जाते हैं।
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दलाली और भ्रष्टाचार का नेटवर्क और मजबूत होता है।
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समाज में तलाकशुदा महिलाओं पर शक का साया बढ़ेगा।
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महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को धक्का लगता है।
सोचिए… तलाक, जो जिंदगी का सबसे कठिन फैसला होता है, अगर वह भी नौकरी का हथियार बना दिया जाए तो समाज किस दिशा में जाएगा?
यह सिर्फ भर्ती परीक्षा का फर्जीवाड़ा नहीं, बल्कि रिश्तों की पवित्रता, कानून की गंभीरता और समाज के भरोसे का दोहन है।
जरूरी है कि कानून सख्ती से लागू हो और दोषियों को सजा मिले।
क्योंकि अगर फर्जी तलाक ही नौकरी की सीढ़ी बन गया, तो सच और झूठ, हक और धोखा—सब गड्डमड्ड हो जाएंगे।
???? दोस्तों, आपको क्या लगता है—क्या रिजल्ट में पूरा ब्योरा सार्वजनिक करने से यह फर्जीवाड़ा खत्म हो पाएगा?
???? क्या तलाक जैसी व्यक्तिगत प्रक्रिया को नौकरी की कसौटी बनाना सही है?