Chittorgarh Rajasthan: श्रीसांवलियाजी मंदिर भंडार: राजनीतिक उपयोग पर कोर्ट का बैन

श्रीसांवलियाजी मंदिर भंडार: राजनीतिक उपयोग पर कोर्ट का बैन
सांवलियाजी मंदिर: चढ़ावे पर कोर्ट की रोक
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Highlights

  • श्रीसांवलियाजी मंदिर के चढ़ावे की राशि का राजनीतिक उपयोग प्रतिबंधित।
  • मंडफिया सिविल जज विकास कुमार ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला।
  • भंडार की 26-27 करोड़ की मासिक आय पर अब नहीं चलेगा राजनीतिक दबाव।
  • मंदिर मंडल अधिनियम 1992 की धारा 28 का पालन अनिवार्य।

चित्तौड़गढ़: मेवाड़ के कृष्णधाम श्री सांवलियाजी मंदिर (Shri Sanwaliyaji Temple) के करोड़ों रुपए के भंडार के उपयोग पर मंडफिया (Mandafiya) सिविल जज विकास कुमार (Vikas Kumar) ने रोक लगा दी है। अब चढ़ावे की राशि का उपयोग किसी भी राजनीतिक या बाहरी क्षेत्र की योजनाओं में नहीं होगा।

यह फैसला इसलिए भी बेहद खास माना जा रहा है क्योंकि सांवलियाजी के भंडार से हर महीने 26 से 27 करोड़ रुपए की भारी राशि निकलती है। इस राशि पर लंबे समय से कई संस्थाओं और नेताओं की नजर रही है, जिसके कारण इसके दुरुपयोग की आशंका बनी हुई थी।

मामले की शुरुआत और जनहित याचिका

इस मामले की शुरुआत साल 2018 में हुई थी। तब मंदिर मंडल ने राज्य सरकार की एक बजट घोषणा के तहत मातृकुंडिया तीर्थस्थल के विकास के लिए 18 करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव का स्थानीय निवासियों ने कड़ा विरोध किया।

स्थानीय निवासी मदन जैन, कैलाश डाड, श्रवण तिवारी और अन्य ने मंडफिया कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि मंदिर की कमाई का पैसा भक्तों और स्थानीय ज़रूरतों पर खर्च होने के बजाय बाहरी योजनाओं और राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

स्थानीय भक्तों की अनदेखी का आरोप

याचिकाकर्ताओं ने अदालत में बताया कि मंदिर प्रबंधन ने सालों से भक्तों की मूलभूत सुविधाओं को मजबूत करने की अनदेखी की है। उन्होंने कहा कि मंदिर परिसर और आसपास के क्षेत्र में निःशुल्क भोजनशाला, पार्किंग, शौचालय, बेहतर चिकित्सा सेवा, अस्पताल और उच्च स्तरीय स्कूल जैसी सुविधाएं आज भी अधूरी हैं।

इसके बावजूद, करोड़ों रुपए को बाहरी धार्मिक स्थलों और राजनीतिक घोषणाओं की पूर्ति पर खर्च करने की तैयारी की जा रही थी। इसे भक्तों की आस्था के साथ खिलवाड़ बताया गया, जिसने स्थानीय समुदाय में भारी असंतोष पैदा किया।

कोर्ट का कड़ा रुख: दुरुपयोग पर होगी कार्रवाई

मंडफिया सिविल जज विकास कुमार ने सोमवार को अपना फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि मंदिर की चढ़ावे की राशि का उपयोग अब किसी भी राजनीतिक या बाहरी क्षेत्र की योजनाओं में नहीं किया जा सकेगा। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर मंडल को भंडारे के रुपए खर्च करने के लिए मंदिर मंडल अधिनियम 1992 की धारा 28 का सख्ती से पालन करना होगा।

अदालत ने चेतावनी दी कि इससे बाहर किसी भी प्रकार का पैसा देना कानून के खिलाफ माना जाएगा। यदि मंदिर निधि का दुरुपयोग किया गया, तो यह ‘आपराधिक न्याय भंग’ का मामला बनेगा और इसमें संबंधित अधिकारियों पर व्यक्तिगत स्तर पर कार्रवाई होगी। यह चेतावनी मंदिर प्रबंधन के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

18 करोड़ के प्रस्ताव पर स्थायी रोक

कोर्ट ने मंदिर मंडल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी और अध्यक्ष को स्पष्ट आदेश दिया है कि मातृकुंडिया विकास के लिए प्रस्तावित 18 करोड़ रुपए पर कोई भी कार्रवाई नहीं की जाए। अदालत ने स्थायी निषेधाज्ञा जारी करके यह सुनिश्चित कर दिया कि इस प्रस्ताव से जुड़ी कोई भी राशि अब जारी नहीं होगी। यह फैसला भक्तों और स्थानीय समाज की लंबे समय से की जा रही मांगों को मजबूती देता है।

गोशालाओं व बाहरी संस्थाओं को फंड पर भी प्रतिबंध

पिछले कुछ समय से सांवलियाजी के भंडार से गोशालाओं और अन्य धार्मिक संस्थाओं को राशि देने की मांग बढ़ रही थी। भाजपा नेताओं, धर्मगुरुओं और सामाजिक संस्थाओं ने कई बार इस दिशा में दबाव बनाया था। इससे पहले कांग्रेस सरकार के दौरान देवस्थान मंत्री रही शकुंतला रावत ने भी क्षेत्र की गोशालाओं के लिए फंड स्वीकृत कराने की कोशिश की थी, पर विरोध के चलते बात आगे नहीं बढ़ सकी थी। कोर्ट के फैसले के बाद अब ऐसे सभी प्रयास अपने आप ही रुक जाएंगे।

फैसले से भक्तों में संतोष और भविष्य की उम्मीदें

अदालत के इस आदेश के बाद भक्तों और स्थानीय लोगों में गहरा संतोष है। वे लंबे समय से मांग कर रहे थे कि मंदिर की करोड़ों की कमाई को पहले मंदिर और आसपास के क्षेत्र के विकास में लगाया जाए। लोग उम्मीद जता रहे हैं कि अब बेहतर भोजनशाला, पार्किंग, स्वच्छता, स्वास्थ्य सुविधाएं और स्कूल जैसी सेवाओं पर ध्यान दिया जाएगा, ताकि लाखों श्रद्धालुओं को बेहतर व्यवस्था मिल सके।

अभी हाल ही में सांवलिया की पार्किंग का भी टेंडर कर दिया गया है, जबकि लोगों की मांग है कि पार्किंग में शुल्क लगाने की जरूरत नहीं थी। उनका मानना है कि अपने चहेतों को लाभ देने के लिए पार्किंग शुल्क शुरू किया गया है।

ऐतिहासिक निर्णय: मंदिर की धनराशि अब सुरक्षित

कुल मिलाकर, यह फैसला न केवल सांवलियाजी मंदिर बल्कि पूरे राजस्थान के धार्मिक स्थलों के लिए एक मिसाल बन सकता है। अदालत ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि किसी भी मंदिर की संपत्ति भक्तों की होती है और उसका उपयोग सिर्फ उनके हित में और कानून के दायरे में रहकर ही किया जा सकता है। राजनीतिक दबाव या बाहरी प्रभाव अब मंदिर के पैसे पर हावी नहीं हो सकेंगे। श्रद्धालुओं के मुताबिक, यह निर्णय मंदिर की पवित्रता और पारदर्शिता बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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