Highlights
भंवाल माता का मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह एक अनूठी संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यहां की अनोखी भक्ति, नियम और कथाएं श्रद्धालुओं को एक नई भक्ति के अनुभव में लिप्त कर देती हैं।
नागौर | राजस्थान के नागौर जिले के भंवाल ग्राम में स्थित "भंवाल माता का मंदिर अपनी अनोखी परंपराओं और भक्ति के लिए जाना जाता है। यहां माता को चढ़ाए जाने वाला प्रसाद पारंपरिक तौर पर शराब होता है, जो एक साधारण भोग नहीं, बल्कि श्रद्धा का प्रतीक है।
भोग का अनूठा तरीका
मंदिर में श्रद्धालुओं को शराब का भोग अर्पित करने की अनुमति तो है, लेकिन इसके लिए कुछ सख्त नियम भी हैं। भक्तों के पास बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू, या चमड़े के सामान जैसे बेल्ट और पर्स नहीं होना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि जो लोग माता को भोग चढ़ा रहे हैं, वे पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ यह कार्य कर रहे हैं।
भोग चढ़ाने की प्रक्रिया
श्रद्धालु जब माता के सामने खड़े होते हैं, तो मंदिर का पुजारी चांदी के कटोरे में शराब भरकर माता को अर्पित करता है। यह प्रक्रिया तीन बार होती है। माना जाता है कि जो भक्त सच्चे मन से भोग चढ़ाते हैं, उन्हें तीसरी बार आधा प्याला माता की ओर से प्रसाद के रूप में प्राप्त होता है। यह एक दिव्य अनुभव होता है, जिसमें भक्त की श्रद्धा और विश्वास का एक अनूठा मेल देखने को मिलता है।
डाकुओं की दास्तान
भंवाल माता की कहानी का एक ऐतिहासिक पहलू भी है। मान्यता है कि सालों पहले, जब एक डाकुओं का समूह राजा की फौज से घिर गया था, उन्होंने देवी माँ की शरण ली। श्रद्धा से भरे हुए उन डाकुओं ने माता से मदद मांगी, और माता ने उनकी प्रार्थना सुनकर उन्हें भेड़-बकरी के झुंड में बदल दिया, जिससे उनकी जान बच गई। आभार व्यक्त करते हुए डाकुओं ने इस स्थान पर माता का मंदिर निर्माण कराया, जहां मान्यता है कि देवी माता स्वयं प्रकट हुई थीं।
मंदिर की अद्वितीय मूर्तियां
मंदिर में दो प्रमुख मूर्तियां स्थापित हैं: *ब्रह्माणी माता, जिन्हें केवल मीठे भोग जैसे लड्डू, खीर और पेड़े चढ़ाए जाते हैं, और दूसरी ओर काली माता, जिन्हें श्रद्धालु शराब चढ़ाते हैं। यह विभाजन मंदिर की अद्वितीयता को दर्शाता है और भक्तों को अपने विश्वास के अनुसार भक्ति का एक अनोखा अवसर प्रदान करता है।