Highlights
- वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर लोकसभा में 10 घंटे की चर्चा।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर 12 बजे इस ऐतिहासिक चर्चा की शुरुआत करेंगे।
- सरकार इस बहस के जरिए राष्ट्रीय भावना और सांस्कृतिक गौरव का संदेश देना चाहती है।
- बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी पर वंदे मातरम लिखा था।
नई दिल्ली: राष्ट्रगीत वंदे मातरम (Vande Mataram) के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में सोमवार को लोकसभा (Lok Sabha) में चर्चा होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) दोपहर 12 बजे इसकी शुरुआत करेंगे। सरकार इस बहस के जरिए राष्ट्रीय भावना और सांस्कृतिक गौरव का संदेश देना चाहती है।
संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन, सोमवार को लोकसभा में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर एक विशेष और विस्तृत चर्चा का आयोजन किया जाना है।
इस महत्वपूर्ण विषय पर गहन विचार-विमर्श के लिए सदन में पूरे 10 घंटे का समय निर्धारित किया गया है।
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोपहर 12 बजे इस ऐतिहासिक चर्चा की शुरुआत करेंगे, जिससे यह सत्र और भी महत्वपूर्ण बन जाएगा।
सरकार की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित कई वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री इस चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लेंगे और राष्ट्रगीत के महत्व पर अपने विचार रखेंगे।
वहीं, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की तरफ से पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी और लोकसभा में उपनेता प्रतिपक्ष गौरव गोगोई समेत कुल 8 सांसद अपनी बात रखेंगे।
इनके अलावा, विभिन्न अन्य राजनीतिक दलों के सांसद भी इस राष्ट्रगीत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर अपने दृष्टिकोण साझा करेंगे, जिससे बहस और भी समृद्ध होगी।
दरअसल, राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के इस ऐतिहासिक अवसर पर भारत सरकार द्वारा पूरे साल भर का एक व्यापक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
इसी कड़ी में, 2 दिसंबर को लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाई थी।
इस बैठक में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया था कि वंदे मातरम को लेकर 8 दिसंबर को लोकसभा में और उसके अगले दिन, 9 दिसंबर को राज्यसभा में विस्तृत चर्चा की जाएगी। यह पहल राष्ट्रगीत के प्रति सम्मान और उसके महत्व को दर्शाती है।
वंदे मातरम का ऐतिहासिक सफर: रचना से राष्ट्रीय पहचान तक
भारत के राष्ट्रगीत वंदे मातरम की रचना महान साहित्यकार बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के पावन और शुभ अवसर पर की थी।
यह अमर गीत पहली बार उनकी प्रसिद्ध पत्रिका 'बंगदर्शन' में उनके ऐतिहासिक उपन्यास 'आनंदमठ' के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में प्रकाशित हुआ था।
इस गीत ने अपनी ओजस्वी वाणी और देशभक्ति की भावना से जल्द ही भारतीय जनमानस में अपनी एक अमिट छाप छोड़ दी थी।
वंदे मातरम को सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था।
इस ऐतिहासिक अवसर पर, स्वयं महान कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने मंच पर वंदे मातरम का गायन किया था।
उस सभा में मौजूद हजारों लोगों की आंखें नम थीं, जो इस गीत की गहरी भावनात्मक शक्ति और लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना को जगाने की क्षमता को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
यह क्षण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ।
संसद में वंदे मातरम पर चर्चा कराने के 5 प्रमुख कारण
सरकार संसद में राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम' पर चर्चा इसलिए कराना चाहती है ताकि इसके 150 साल पूरे होने पर इसके गहन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व को पूरे देश के सामने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया जा सके।
इस पहल के पीछे सरकार की 5 बड़ी और रणनीतिक वजहें मानी जा रही हैं, जो इस चर्चा को और भी महत्वपूर्ण बनाती हैं:
1. राष्ट्रीय भावना और एकता का संदेश
सरकार की एक प्रमुख मंशा यह है कि वंदे मातरम पर संसद में होने वाली इस चर्चा से पूरे देश में राष्ट्रभावना, सांस्कृतिक गौरव और एकता का एक प्रबल संदेश जाए।
यह विषय भारतीय जनता में गहरा भावनात्मक जुड़ाव पैदा करता है और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में सहायक हो सकता है, विशेषकर ऐसे समय में जब देश को एकजुटता की आवश्यकता है।
2. बंगाल चुनाव से जुड़ा राजनीतिक संकेत
वंदे मातरम का इतिहास विशेष रूप से बंगाल की भूमि से जुड़ा हुआ है, जो भारतीय राष्ट्रवाद का उद्गम स्थल भी रहा है।
अगले साल होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव को देखते हुए, सरकार इस मुद्दे को सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से सामने लाना चाहती है।
सरकार को लगता है कि इससे वह राज्य में भाजपा के लिए एक सकारात्मक और अनुकूल राजनीतिक माहौल तैयार कर सकेगी, जिससे आगामी चुनावों में पार्टी को लाभ मिल सकता है।
3. 1937 के ऐतिहासिक विवाद को सामने लाना
आजादी से पहले, 1937 में वंदे मातरम के दूसरे हिस्से को धार्मिक कारणों से उपयोग से हटाने पर एक गंभीर बहस छिड़ी थी।
सरकार चाहती है कि उस ऐतिहासिक विवाद पर संसद में खुलकर चर्चा हो और इसके पीछे की तुष्टिकरण की राजनीति को देश के सामने लाया जा सके।
यह अतीत के एक संवेदनशील मुद्दे पर प्रकाश डालकर भविष्य के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण स्थापित करने का प्रयास है।
4. बंगाल विभाजन और स्वतंत्रता आंदोलन की याद दिलाना
वंदे मातरम का नारा बंगाल विभाजन (1905) के खिलाफ हुए बड़े आंदोलनों का एक केंद्रीय बिंदु और प्रेरणा स्रोत था।
सरकार इस गौरवशाली इतिहास को राष्ट्रीय मंच पर फिर से सामने लाकर देशभक्ति की भावना को और मजबूत करना चाहती है।
यह स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को श्रद्धांजलि देने और नई पीढ़ी को उनके बलिदान से अवगत कराने का भी एक महत्वपूर्ण तरीका है।
5. विपक्ष के साथ टकराव से ध्यान हटाना
संसद में SIR (संसद सुरक्षा उल्लंघन) जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चल रहे तनाव और गतिरोध के बीच, वंदे मातरम जैसी भावनात्मक और सर्वस्वीकार्य चर्चा से संसद का माहौल सकारात्मक करने की कोशिश भी सरकार की रणनीति का एक अहम हिस्सा है।
इससे विपक्ष के साथ चल रहे टकराव से ध्यान हटाकर एक सामंजस्यपूर्ण और रचनात्मक वातावरण बनाया जा सकता है, जिससे सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके।
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