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कभी राजस्थान की सत्ता का चेहरा, कभी पार्टी के लिए चुनौती, तो कभी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की संभावित दावेदार।
उनका हर कदम राजनीति में हलचल पैदा करता है।
अब बड़ा सवाल यही है—क्या भाजपा उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा रोल देगी? या उनका "वनवास" अभी जारी रहेगा?
राजस्थान…
रेत का समंदर, संस्कृति की धरती और राजनीति का रणक्षेत्र। यहां सत्ता की गद्दी तक पहुँचने का रास्ता कभी आसान नहीं रहा। और अब इस राजनीति के केंद्र में फिर से हैं—वसुंधरा राजे।
बीते दिनों उनके बयान और मुलाकातों ने पूरे देश की राजनीति को सोचने पर मजबूर कर दिया है। खासकर जोधपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत से उनकी मुलाकात ने हलचल तेज कर दी है।
वसुंधरा-भागवत मुलाकात: राजनीति में सुगबुगाहट
जोधपुर में आरएसएस प्रमुख डॉ. मोहन भागवत और वसुंधरा राजे की करीब 20 मिनट की बातचीत हुई। भागवत 9 दिन के प्रवास पर हैं और 5 से 7 सितंबर तक होने वाली अखिल भारतीय समन्वय बैठक में हिस्सा ले रहे हैं। इस बैठक में 32 संगठन, संघ परिवार के वरिष्ठ नेता और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद होंगे।
राजे का यहां आना और सीधे भागवत से मिलना सिर्फ औपचारिकता नहीं माना जा रहा, बल्कि भाजपा में उनके भविष्य पर गंभीर विमर्श का संकेत माना जा रहा है।
भाजपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की चर्चा
राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहा है—क्या वसुंधरा राजे भाजपा की पहली महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष बन सकती हैं?
सूत्रों का कहना है कि संघ की पहली पसंद वसुंधरा हैं, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह शिवराज सिंह चौहान की तरफ झुकाव रखते हैं।
अगर राजे को अध्यक्ष बनाया जाता है, तो वे भाजपा को वैचारिक और संगठनात्मक स्तर पर नई मजबूती दे सकती हैं और राष्ट्रीय स्तर पर महिला नेतृत्व का चेहरा बन सकती हैं।
मोदी-शाह और वसुंधरा: समीकरण और सियासत
यह सच है कि वसुंधरा और मोदी-शाह के रिश्ते हमेशा सहज नहीं रहे। 2023 विधानसभा चुनाव में वे मुख्यमंत्री पद की सबसे मजबूत दावेदार थीं, लेकिन हाईकमान ने भजनलाल शर्मा को सीएम बनाया।
फिर भी, हाल में मोदी और शाह से उनकी मुलाकात ने साफ कर दिया कि पार्टी उन्हें पूरी तरह साइडलाइन नहीं करना चाहती। यह भीतर ही भीतर संतुलन साधने की कोशिश हो सकती है।
"राजस्थान एक परिवार है"—जोधपुर का संदेश
जोधपुर में राजे ने कहा—
"राजस्थान एक परिवार है। अगर हम लड़ेंगे और अलग होंगे तो प्रॉब्लम होगी। साथ रहेंगे तो प्रदेश समृद्ध होगा।"
यह बयान सिर्फ सामाजिक नहीं बल्कि राजनीतिक संकेत भी है कि वे एकता और भाईचारे को अपनी राजनीति का आधार बना रही हैं।
धार्मिक आस्था और सामाजिक एकता
वसुंधरा ने खेजड़ली मेला, तेजा दशमी और रामदेवरा बाबा के मेलों का ज़िक्र कर उन्हें सामाजिक एकता और समृद्धि का प्रतीक बताया।
उन्होंने धौलपुर की रामकथा में "वनवास" की व्याख्या करते हुए कहा कि हर जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन वे स्थायी नहीं होतीं। राजनीतिक हलकों ने इसे उनके "वनवास" के जल्द खत्म होने का संकेत माना।
"राम राज्य" और परिवार की राजनीति
राजे ने कहा कि राम राज्य का मतलब है—36 कौमें मिलकर परिवार की तरह रहें। यह संदेश भाजपा और राजस्थान की राजनीति के लिए भी था, कि संगठन तभी मजबूत होगा जब सब साथ चलेंगे।
राजनीतिक हलचल और निष्कर्ष
वसुंधरा राजे के हालिया बयान—परिवार, वनवास, राम राज्य और मोहन भागवत से मुलाकात—मिलकर बड़ा राजनीतिक संदेश दे रहे हैं।
राजस्थान की राजनीति में वे अब भी केंद्रीय चेहरा हैं। भाजपा चाहे उन्हें कितना भी किनारे करने की कोशिश करे, उनका जनाधार और सक्रियता उन्हें प्रासंगिक बनाए रखती है।
वसुंधरा राजे—
कभी राजस्थान की सत्ता का चेहरा, कभी पार्टी के लिए चुनौती, तो कभी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की संभावित दावेदार।
उनका हर कदम राजनीति में हलचल पैदा करता है।
अब बड़ा सवाल यही है—क्या भाजपा उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा रोल देगी? या उनका "वनवास" अभी जारी रहेगा?
लेकिन इतना तय है—राजस्थान और भारतीय राजनीति में वसुंधरा राजे का नाम अभी भी उतना ही अहम है, जितना उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत में था।