Highlights
- भीलवाड़ा यूआईटी की 3081 भूखंड लॉटरी प्रक्रिया पर हाईकोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक।
- पारदर्शिता की कमी, नियमों का उल्लंघन और हितों के टकराव के गंभीर आरोप।
- अप्रमाणित सॉफ्टवेयर और आय संबंधी विसंगतियों पर भी उठाए गए सवाल।
- जांच लंबित रहने तक नए आवंटन, कब्जा पत्र या लीज़ डीड जारी नहीं होंगे।
भीलवाड़ा: राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) ने भीलवाड़ा शहरी सुधार न्यास (Bhilwara Urban Improvement Trust - UIT) की 3081 भूखंड लॉटरी प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाई है। पारदर्शिता और नियमों के उल्लंघन के आरोपों पर जनहित याचिका दायर की गई थी।
हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
राजस्थान उच्च न्यायालय, जोधपुर की खंडपीठ ने भीलवाड़ा यूआईटी की विवादित 3081 भूखंड लॉटरी प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगा दी है।
माननीय न्यायमूर्ति डॉ. पुष्पेन्द्र सिंह भाटी एवं माननीय न्यायमूर्ति अनूरूप सिंघी की खंडपीठ ने यह महत्वपूर्ण आदेश जारी किया।
यह जनहित याचिका एडवोकेट हेमेंद्र शर्मा, समाजसेवी राघव कोठारी और पवन त्रिपाठी द्वारा एडवोकेट नमन मोहनोत के माध्यम से दायर की गई थी।
अदालत ने राज्य सरकार और यूआईटी भीलवाड़ा को नोटिस जारी करते हुए संपूर्ण आवंटन प्रक्रिया पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जांच लंबित रहने तक कोई नया आवंटन, कब्जा पत्र या लीज़ डीड जारी नहीं की जाएगी।
याचिका का आधार: गंभीर अनियमितताएं
याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष लॉटरी प्रक्रिया में हुई कई गंभीर अनियमितताओं को उजागर किया।
पारदर्शिता पर सवाल
अदालत में बताया गया कि भीलवाड़ा यूआईटी ने फॉर्म ऑफलाइन स्वीकार किए थे।
बिना किसी पूर्व सूचना के लॉटरी को ऑनलाइन सॉफ्टवेयर से निकाल दिया गया, जिससे पारदर्शिता पर गहरा सवाल उठा।
निर्धारित 10 प्रतिशत वेटिंग लिस्ट जारी नहीं की गई, जबकि नियमों में इसका स्पष्ट उल्लेख था।
यह भी सामने आया कि यूआईटी के तत्कालीन प्रभारी अधिकारी ने अपने परिजनों को लाभ पहुंचाया।
इससे हितों के टकराव की गंभीर स्थिति उत्पन्न हुई।
कई प्रभावशाली और संपन्न परिवारों को एक से अधिक प्लॉट भी आवंटित किए गए, जो निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
सॉफ्टवेयर की विश्वसनीयता पर संदेह
याचिकाकर्ताओं ने अदालत का ध्यान इस ओर भी दिलाया कि लॉटरी प्रक्रिया में उपयोग किया गया सॉफ्टवेयर न तो प्रमाणित था और न ही उसका कोई सुरक्षा ऑडिट किया गया।
सॉफ्टवेयर के डेवलपर, सर्वर लोकेशन और तकनीकी विवरण सार्वजनिक नहीं किए गए।
इसके कारण डेटा में छेड़छाड़, पहले से फीड किए गए नाम और मैनुअल हस्तक्षेप की आशंका मजबूत हुई।
आय और आरक्षण में विसंगतियां
कई सफल आवेदकों की ITR, TDS, Form-16 और बैंक विवरण में गंभीर विसंगतियाँ मिलीं।
इससे यह संकेत मिला कि कुछ आवेदकों ने पात्रता प्राप्त करने के लिए जानबूझकर गलत आय दिखाई थी।
आरक्षण श्रेणियों में ऐसे नाम भी पाए गए जो संबंधित वर्ग से नहीं थे, जिससे सॉफ्टवेयर की विश्वसनीयता और भी संदिग्ध हुई।
कुछ आवेदकों ने दस्तावेज़ों में मामूली बदलाव कर दो-दो प्लॉट प्राप्त किए।
अलग-अलग योजनाओं के लिए अलग फॉर्म और शुल्क जमा कराने के बावजूद भीलवाड़ा यूआईटी ने सभी योजनाओं की लॉटरी एक क्लिक में निकाल दी।
इसके परिणामस्वरूप कई लोगों को गलत योजना में आवंटन हुआ, जो तकनीकी विफलता को दर्शाता है।
नियमों का उल्लंघन
एडवोकेट नमन मोहनोत ने बताया कि पूरी लॉटरी प्रक्रिया राजस्थान अर्बन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट (डिस्पोज़ल ऑफ अर्बन लैंड) रूल्स, 1974 के नियम 10 और 26 के विपरीत संचालित की गई थी।
यह मामला CW/21943/2025 के रूप में दर्ज हुआ है।
आवेदकों को मिली बड़ी राहत
यह आदेश भीलवाड़ा के सैकड़ों आवेदकों के लिए बड़ी राहत लेकर आया है।
वे लंबे समय से लॉटरी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे थे।
स्थानीय जनता ने इस मामले में साहसपूर्वक आगे आने वाले एडवोकेट हेमेंद्र शर्मा, राघव कोठारी और पवन त्रिपाठी के प्रति आभार व्यक्त किया।
जनता ने आश्वस्त किया कि वे इस न्यायिक संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ खड़े रहेंगे।
न्याय की दिशा में उठाए हर कदम में वे अपना पूर्ण सहयोग देंगे।
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