Highlights
- इकरा हसन ने 'वंदे मातरम्' के 150 साल पूरे होने पर लोकसभा में भाषण दिया।
- उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमान 'बाय च्वाइस' हैं, 'बाय चांस' नहीं।
- इकरा हसन ने 'वंदे मातरम्' का अर्थ प्रकृति, पर्यावरण और महिला सम्मान से जोड़ा।
- उन्होंने यमुना प्रदूषण और महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों को 'वंदे मातरम्' की आत्मा पर चोट बताया।
नई दिल्ली: लोकसभा (Lok Sabha) में 'वंदे मातरम्' (Vande Mataram) पर सपा सांसद इकरा हसन (Iqra Hasan) ने गीत का अर्थ समझाया। उन्होंने कहा, भारतीय मुसलमान (Indian Muslims) 'बाय च्वाइस' हैं। इकरा ने प्रकृति व महिला सम्मान के मूल भाव पर जोर दिया।
सोमवार को लोकसभा में 'वंदे मातरम्' के 150 साल पूरे होने पर एक महत्वपूर्ण चर्चा हुई। इस दौरान उत्तर प्रदेश की कैराना सीट से समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन चौधरी ने अपनी बात रखी। उन्होंने अपने भाषण में 'वंदे मातरम्' के गहरे अर्थ को समझाया और केंद्र सरकार की नीतियों पर तीखा हमला बोला।
इकरा हसन ने इस बात पर जोर दिया कि आज हमें इस राष्ट्रगीत के वास्तविक भाव को समझना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि यह गीत केवल एक नारा नहीं, बल्कि देश की प्रकृति, उसके जल, जंगल, जमीन, हरियाली और निर्मल हवा की वंदना करता है। यह भारत के हर नागरिक के स्वस्थ, सुरक्षित और सम्मान के साथ जीने की मंगल कामना करता है।
'वंदे मातरम्' का असली अर्थ और मुस्लिम पहचान
सपा सांसद इकरा हसन ने 'वंदे मातरम्' को लेकर अक्सर मुस्लिमों को कटघरे में खड़ा करने के प्रयासों पर सवाल उठाए। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हम भारतीय मुसलमान 'इंडियन बाय च्वाइस' हैं, 'बाय चांस' नहीं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि 'वंदे मातरम्' के किन छंदों को राष्ट्रगीत के तौर पर अपनाया जाए, यह फैसला नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जैसे महान नायकों के परामर्श से हुआ था।
इकरा हसन ने पूछा कि क्या अब हम उन महान हस्तियों की समझ पर सवाल उठाएंगे? उन्होंने कहा कि उन दूरदर्शी नेताओं ने 'वंदे मातरम्' के उन छंदों को चुना, जिन्होंने देश के सभी वर्गों और धर्मों के मानने वालों को एक सूत्र में पिरोने का काम किया। उनका मानना था कि आज हमें इस गीत के भाव को समझना आवश्यक है, जो देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है।
पर्यावरण संकट: 'सुजलाम सुफलाम' की हकीकत
इकरा हसन ने 'वंदे मातरम्' के एक महत्वपूर्ण वाक्यांश 'सुजलाम सुफलाम' का अर्थ समझाया। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ है ऐसा देश जहां स्वच्छ और पर्याप्त जल हो, जहां नदियां जीवित हों, बहती हों और जीवन देती हों। लेकिन, उन्होंने वर्तमान स्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा कि आज जरा यमुना का हाल देखिए।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की 2025 की रिपोर्ट बताती है कि यमुना के कई हिस्सों में बीओडी (बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड) स्तर 127 एमजी प्रति लीटर तक पहुंच चुका है, जबकि किसी जीवित नदी के लिए यह स्तर सिर्फ 3 एमजी प्रति लीटर से कम होना चाहिए। यह सिर्फ नदी का संकट नहीं, बल्कि किसान का संकट है।
उन्होंने 'नमामि गंगे' परियोजना पर भी सवाल उठाए, जिसके नाम पर हजारों करोड़ रुपये खर्च हो गए। लेकिन सच्चाई यह है कि आज भी गंगा और यमुना के किनारे किसान मजबूरी में उसी जहरीले पानी से खेती कर रहा है। वही जहर अनाज में उतरता है और धीरे-धीरे किसान की जिंदगी को खत्म कर देता है। इकरा हसन ने पूछा कि जब पानी ही जहर हो जाएगा तो 'सुजलाम सुफलाम' कैसे होगा? जब किसान बर्बाद होगा तो 'सुफलाम' कैसे होगा?
वायु प्रदूषण: 'मलयज शीतलाम्' का खोया हुआ सपना
सपा सांसद ने 'वंदे मातरम्' के एक और वाक्यांश 'मलयज शीतलाम्' का अर्थ समझाया। उन्होंने बताया कि 'मलयज' का अर्थ है मलय पर्वत से बहने वाली ठंडी, सुगंधित और चंदन जैसी हवा, जो जीवन देती है, बीमारी नहीं। उन्होंने सदन से सवाल किया कि क्या आज के भारत की हवा 'मलयज शीतलाम्' है?
उन्होंने कहा कि बस संसद से बाहर कदम रखिए और एक गहरी सांस लीजिए। यह चंदन की महक नहीं, यह जहर है जो आपके और हमारे फेफड़ों में उतर रहा है। उन्होंने बताया कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारत में हैं। दिल्ली की हवा में सांस लेना मानो रोज 20 सिगरेट पीने जैसा हो गया है। भारत हर साल सर्दियों में जहरीली हवा के प्रकोप में घिर जाता है और वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) गंभीर स्तर पर पहुंच जाता है। ठंडी हवा का सपना अब गैस चैंबर की हकीकत बन चुका है।
इकरा हसन ने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि हम वह देश हैं जहां सरकार प्रकृति पर बने गीत का मान मर्दन तो करती है, पर उसी प्रकृति, जंगल, हवा और पेड़ को बचाने वाले कानूनों को धीरे-धीरे खुद ही खत्म कर रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर हम हवा को साफ नहीं कर पाए तो ना 'सुजलाम' बचेगा और ना ही 'सुफलाम' बचेगा।
किसानों की दुर्दशा: 'शस्य श्यामलाम्' का विरोधाभास
सपा सांसद ने 'शस्य श्यामलाम्' का अर्थ भी स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि इसका अर्थ है ऐसा देश जहां उपजाऊ जमीन हो, जहां खेत फसलों से भरे हों और किसान कर्ज व निराशा में डूबा न हो। लेकिन, आज किसान सिर्फ मौसम से नहीं लड़ रहा है, वह प्रदूषण, नीतियों की बेरुखी और सिस्टम की नाइंसाफी से भी लड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ कॉर्पोरेट के लोन माफ होते हैं, दूसरी तरफ किसान को उसकी वाजिब एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) भी नहीं मिल पाती है। उन्होंने ग्लोबल सुपर पावर बनने की बात करने वाली सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि हमारी प्रति व्यक्ति आय (पर कैपिटा इनकम) दुनिया में 136वें नंबर पर है। हम अपने छोटे पड़ोसी देशों से भी पीछे हैं। हमारे लोग एक साल में 25 हजार डॉलर तक भी नहीं कमा पा रहे हैं, और जिन अरबपतियों की ये रक्षा करते हैं, वे इतना पैसा एक सेकंड में कमा लेते हैं।
महिला सम्मान: 'मातरम्' की आत्मा पर चोट
इकरा हसन ने 'वंदे मातरम्' के 'मातरम्' शब्द का गहरा अर्थ समझाया। उन्होंने कहा कि इसमें केवल मातृभूमि की वंदना नहीं है, बल्कि इस धरती की हर नारी, इस देश की हर बेटी और हर महिला के सम्मान की बात भी निहित है। लेकिन, उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि आंकड़े अगर आप देखेंगे तो एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) की हाल की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर वर्ष लगभग 3000 से अधिक बलात्कार हो रहे हैं, यानी एक दिन में 80 से अधिक महिलाएं यौन हिंसा का शिकार होती हैं। और ये सिर्फ दर्ज मामले हैं।
उन्होंने जम्मू-कश्मीर की एक बच्ची पर हुए हिंसक अत्याचार, सत्ता से जुड़े लोगों पर लगे आरोपों और कार्रवाई में वर्षों की देरी, उन्नाव की पीड़िता का इंसाफ के लिए अपनी जान देने पर आमादा होना, और बिलकिस बानो के अपराधियों का सरकार के लोगों द्वारा स्वागत किए जाने जैसी घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ये सभी घटनाएं 'वंदे मातरम्' की आत्मा पर चोट पहुंचाती हैं।
राजनीति और राष्ट्रवाद पर सवाल
इकरा हसन ने कहा कि आज 'वंदे मातरम्' को बुनियाद बनाकर राजनीति की जा रही है, लेकिन जमीन पर जंगल पूंजीपतियों को सौंपे जा रहे हैं और आदिवासियों को उनके घरों से उजाड़ा जा रहा है। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि वर्ष 1998 में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री रविंद्र शुक्ला जी ने स्कूलों में राष्ट्रगीत गाना अनिवार्य कर दिया था।
लेकिन तब के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी, जो उस समय लखनऊ के दौरे पर थे, उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले पर नाराजगी जताई थी। इसके बाद यूपी सरकार ने राष्ट्रगीत को अनिवार्य करने वाले मंत्री को बर्खास्त कर दिया था। इकरा हसन ने सत्ता पक्ष से सवाल किया कि जो विज़न आजादी के समय के लोगों का था राष्ट्रगीत को स्वेच्छा पर छोड़ने का, उसी का अनुसरण माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने किया, तो क्या वह भी मुस्लिम तुष्टीकरण कर रहे थे?
उन्होंने खुद ही जवाब देते हुए कहा कि नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी जी राज धर्म निभा रहे थे। देश में सब धर्मों को एक साथ लाना और सबके जज्बात का एहसास करना ही सबसे बड़ा राष्ट्रवाद है। इकरा हसन ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा कि 'वंदे मातरम्' सिर्फ अतीत की ललकार नहीं, यह वर्तमान की जिम्मेदारी है। यह आत्ममंथन की घड़ी है। यही समय है कि हम 'वंदे मातरम्' को सिर्फ नारा नहीं, बल्कि नीति और जिम्मेदारी बनाएं। उन्होंने अपनी बात अल्लामा इकबाल साहब के 'तराना-ए-हिंद' के साथ समाप्त की: "सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा, हम बुलबुले हैं इसके, ये गुलसितां हमारा। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तान हमारा।"
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