Highlights
- जयपुर राजपरिवार 300 सालों से दिवाली पर शोक मनाता है।
- राजपरिवार के सदस्य दिवाली पर काले या गहरे नीले वस्त्र पहनते हैं।
- यह परंपरा पूर्वजों के बलिदान और एक प्राचीन युद्ध से जुड़ी है।
- राजा सोध देव की मृत्यु के बाद रानी द्वारा काली पोशाक पहनने की भी एक मान्यता है।
जयपुर: पूरे देश में दिवाली (Diwali) की धूम है, लेकिन राजस्थान (Rajasthan) की राजधानी जयपुर (Jaipur) का पूर्व शाही परिवार (Former Royal Family) 300 साल से इस दिन शोक मनाता आ रहा है। वे दीपोत्सव पर काले या गहरे नीले कपड़े पहनते हैं, जो पूर्वजों के बलिदान और राजा सोध देव (King Sodh Dev) की मृत्यु से जुड़ी एक पुरानी परंपरा है।
देश में दिवाली, जयपुर में शोक की परंपरा
पूरे भारत में इस समय दिवाली की तैयारियां अपने चरम पर हैं।
बाजार रोशनी से जगमगा रहे हैं और हर तरफ खील, मिठाइयां तथा नए कपड़े खरीदने वालों की भीड़ उमड़ रही है।
इन जगमग करती खुशियों के बीच, राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक ऐसा पूर्व शाही घराना है, जो बरसों से दिवाली के दिन शोक मनाता आ रहा है।
यह राजपरिवार दीपोत्सव के दिन काला या गहरा नीला वस्त्र धारण करता है।
इसके पीछे एक बहुत पुरानी और गहरी मान्यता छिपी हुई है।
300 साल पुरानी परंपरा का रहस्य
जयपुर का यह पूर्व शाही परिवार दिवाली की शाम को काले कपड़े पहन लेता है।
इस अनोखी प्रथा के पीछे 300 साल से भी अधिक पुरानी एक लंबी परंपरा बताई जाती है।
कहा जाता है कि पूर्व राज परिवार के सदस्य अपने पूर्वजों के महान बलिदान को याद कर काले या गहरे नीले रंग के कपड़े पहनते हैं।
शाम ढलते ही जयपुर का पूर्व राजपरिवार इसी तरह के गंभीर वस्त्रों में नजर आता है।
पहले गहरे नीले रंग के कपड़े पहने जाते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे उनकी जगह डार्क ब्लू रंग के कपड़ों ने ले ली है।
राजपरिवार के शहीद सदस्यों को श्रद्धांजलि
पूर्व राजपरिवार के सदस्यों के अनुसार, लगभग 300 साल पहले दीपावली पर अमावस्या के दिन एक भीषण युद्ध हुआ था।
इस युद्ध में जयपुर राजपरिवार के कई वीर सदस्य शहीद हो गए थे।
उन्हीं शहीदों की याद में दिवाली के दिन विशेष पूजा-अर्चना कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
यह राजघराना इस दिन अपने आंगन में रोशनी के दीये तो अवश्य जलाता है।
लेकिन उन दीपकों की लौ में खुशियों की नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के अदम्य बलिदान की याद रोशन होती है।
काले वस्त्र पहनने के अन्य कारण
पूर्वजों के बलिदान की याद
यह परंपरा राजपरिवार के उन वीर पूर्वजों को समर्पित है, जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।
वर्तमान में पूर्व राजपरिवार की सदस्य पद्मिनी देवी, बीजेपी सांसद दीया कुमारी, पद्मनाभ सिंह, लक्ष्यराज सिंह और गौरवी सिंह समेत परिवार के सभी सदस्य आज भी इस परम्परा को पूरी श्रद्धा के साथ निभाते हैं।
यह प्रथा उनके लिए केवल एक रस्म नहीं, बल्कि अपने इतिहास और विरासत से जुड़ाव का प्रतीक है।
राजा सोध देव और रानी का दुख
इसके अलावा एक और मान्यता यह भी है कि दसवीं शताब्दी में ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में कछवाहा राजा 'सोध देव' के निधन के बाद एक दुखद घटना घटी थी।
जब उनके भाई ने सिंहासन पर जबरन कब्जा जमा लिया, तो परेशान होकर रानी अपने पुत्र 'दूल्हा राय' को लेकर राजस्थान के खोह (खोह-नागोरियान) इलाके में आ गईं।
खोह के राजा चंदा मीना ने रानी को अपनी बहन का सम्मान दिया और दूल्हा राय की शिक्षा-दीक्षा का पूरा जिम्मा उठाया।
लेकिन पति के भाई की इस हरकत पर गहरा रोष और नाराजगी जताने के लिए रानी ने काली ड्रेस पहनकर दीपावली मनाई थी।
इसके बाद से इसी तरह की दीपावली जयपुर राजपरिवार में मनाई जाने लगी, जो आज भी जारी है।
कछवाहा वंश और भगवान राम से जुड़ाव
जयपुर का पूर्व राजपरिवार स्वयं को भगवान राम का वंशज मानता है और यह गौरवशाली कछवाहा वंश से संबंधित है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान राम 14 वर्ष का वनवास पूरा करने और अहंकारी रावण का वध करने के बाद, माता सीता और लक्ष्मण के साथ इसी अमावस्या (दीपावली) के दिन अयोध्या लौटे थे।
हालांकि, जयपुर शहर की स्थापना करने वाले पूर्व राजा सवाई जयसिंह द्वितीय के समय से ही, उनके वंशज एक अनोखी परंपरा निभाते आ रहे हैं।
अपने वीर पूर्वजों के बलिदान को याद करते हुए, वे रोशनी के इस त्योहार को हमेशा काले वस्त्र पहनकर ही मनाते हैं।