Highlights
- मल्लिकार्जुन खरगे ने वंदे मातरम पर मोदी सरकार की आलोचना की, कांग्रेस के ऐतिहासिक योगदान पर जोर दिया।
- खरगे ने पीएम मोदी के नेहरू पर लगाए आरोपों का खंडन किया, रवींद्रनाथ टैगोर और कांग्रेस कार्यसमिति के फैसलों का हवाला दिया।
- उन्होंने गिरते रुपये, बेरोजगारी, चीन के बढ़ते प्रभाव और दलितों के मुद्दों पर सरकार को घेरा।
- खरगे ने कहा कि बीजेपी और आरएसएस का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था, उन्होंने संविधान का भी विरोध किया।
नई दिल्ली: राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खरगे ने वंदे मातरम पर मोदी सरकार को घेरा। उन्होंने कांग्रेस के ऐतिहासिक योगदान और बीजेपी के विरोधाभासों पर प्रकाश डाला, साथ ही अर्थव्यवस्था और चीन पर भी सवाल उठाए।
राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने वंदे मातरम के मुद्दे पर मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर तीखा हमला बोला। सदन में बार-बार हंगामे और गतिरोध के बीच खरगे ने विदेश नीति, चीन, महंगाई, रुपये की गिरती कीमत और दलितों के मुद्दों पर अपनी बात रखी, जिस पर सदन के नेता और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने विरोध जताया। सभापति ने कई बार स्थिति संभालने की कोशिश की, लेकिन खरगे अपनी बात पर अडिग रहे।
वंदे मातरम पर कांग्रेस का ऐतिहासिक दावा
खरगे ने वंदे मातरम के साथ अपने भाषण की शुरुआत करते हुए कहा कि उन्हें 150 साल के ऐतिहासिक मौके पर सदन में अपने विचार रखने का अवसर मिला है। उन्होंने बताया कि वह 60 साल से यह गीत गा रहे हैं क्योंकि उन्होंने 55 साल विधायक, सांसद और राज्यसभा सदस्य के रूप में गुजारे हैं। उन्होंने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि जो लोग पहले वंदे मातरम नहीं गाते थे, वे अब शुरू कर रहे हैं, जिसके लिए वह उन्हें धन्यवाद देते हैं। खरगे ने इसे राष्ट्रीय उत्सव का विषय बताया, न कि बहस का।
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय और स्वतंत्रता सेनानियों को नमन
उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस की ओर से महान रचनाकार बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को नमन किया और उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को भी श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने वंदे मातरम का नारा लगाते हुए आजादी के आंदोलन में अपना बलिदान दिया। खरगे ने इस बात पर जोर दिया कि वंदे मातरम गीत भारत के सार्वजनिक जीवन में तब प्रवेश किया जब गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने 1896 में कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में इसे पहली बार गाया था। उन्होंने गृह मंत्री के इस जिक्र पर सवाल उठाया कि उन्होंने इसके पीछे का पूरा इतिहास क्यों नहीं बताया, बल्कि केवल वही बातें दोहराईं जो कांग्रेस को टोकने या उसके नेताओं का अपमान करने के लिए सुविधाजनक थीं।
नेहरू पर लगाए गए आरोपों का खंडन
खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री पर जवाहरलाल नेहरू का अपमान करने का कोई मौका न छोड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने प्रधानमंत्री के इस आरोप का खंडन किया कि 1937 में नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने मूल वंदे मातरम गीत से महत्वपूर्ण पद हटा दिए थे, और यह भी कहा कि यह मुसलमानों के डर से किया गया था। खरगे ने इस बात पर पलटवार करते हुए पूछा कि जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी और मुस्लिम लीग ने मिलकर बंगाल में सरकार बनाई थी, तब उनकी देशभक्ति कहां थी।
उन्होंने प्रधानमंत्री के आरोपों को तथ्यों से परे और लोगों को भ्रमित करने वाला बताया। खरगे ने सच्चाई उजागर करते हुए कहा कि 16 अक्टूबर 1937 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को पत्र लिखकर पूछा था कि कांग्रेस को वंदे मातरम के प्रति क्या रुख अपनाना चाहिए। इसके अगले दिन, 17 अक्टूबर को, नेताजी ने नेहरू को पत्र लिखकर सुझाव दिया कि नेहरू को इस विषय पर गुरुदेव से व्यक्तिगत रूप से मिलना चाहिए।
खरगे ने बताया कि 25 अक्टूबर 1937 को नेहरू गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से मिले थे। उन्होंने 26 अक्टूबर 1937 को लिखे टैगोर के पत्र का हवाला दिया, जिसमें टैगोर ने कहा था कि उन्हें कविता के बाकी हिस्सों से पहले दो छंदों को अलग करने में कोई कठिनाई नहीं हुई, क्योंकि वे भारत माता के सुंदर और परोपकारी पहलुओं पर जोर देते हैं और किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती। टैगोर ने स्पष्ट किया था कि वे पूरे भारत के लिए एक राष्ट्रीय गीत के संदर्भ में सोच रहे थे।
खरगे ने जोर देकर कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति ने 28 अक्टूबर 1937 को गुरुदेव के इन्हीं शब्दों को सर्वसम्मति से पारित किया था। इस प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त करने वाले प्रमुख नेताओं में महात्मा गांधी, मौलाना आजाद, पंडित नेहरू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, गोविंद वल्लभ पंत जैसे दिग्गज शामिल थे। उन्होंने सवाल किया कि क्या नेहरू अकेले थे और क्यों प्रधानमंत्री और गृह मंत्री केवल नेहरू को ही निशाना बनाते हैं, जबकि यह सभी बड़े नेताओं का सम्मिलित निर्णय था। उन्होंने इस प्रस्ताव का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया था कि जहां भी वंदे मातरम गाया जाए, वहां केवल पहले दो छंद ही गाए जाने चाहिए, जिसमें किसी अन्य आपत्तिजनक गीत को गाने की पूर्ण स्वतंत्रता हो।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद और इंदिरा गांधी का योगदान
खरगे ने सदन को याद दिलाया कि भारत के संविधान लागू होने के दो दिन पहले, 24 जनवरी 1950 को, डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि 'जन गण मन' भारत का राष्ट्रगान है और 'वंदे मातरम', जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, को जन गण मन के समान सम्मान और दर्जा प्राप्त होगा। उन्होंने भाजपा पर इतिहास के पन्नों में दर्ज इन तारीखों को भी नकारने का आरोप लगाया।
उन्होंने यह भी बताया कि वंदे मातरम की 100वीं सालगिरह के मौके पर पहला स्मारक पोस्टल स्टैंप 30 दिसंबर 1976 को श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यकाल में जारी किया गया था। खरगे ने कहा कि प्रधानमंत्री को इतिहास को समझना चाहिए था और आज की चर्चा का संदर्भ देशवासियों को वंदे मातरम की भावना का सही अर्थ और सम्मान समझाना होना चाहिए।
आजादी की लड़ाई में RSS-BJP की भूमिका पर सवाल
मल्लिकार्जुन खरगे ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिंदू महासभा की स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि इन संगठनों ने आजादी की लड़ाई में भाग नहीं लिया था।
संविधान का विरोध और मनुस्मृति का समर्थन
खरगे ने आरोप लगाया कि आरएसएस और हिंदू महासभा ने भारत के संविधान की प्रतियां भी जलाई थीं। उन्होंने बताया कि उन्हें आपत्ति थी कि बाबा साहब अंबेडकर द्वारा बनाया गया संविधान मनुस्मृति पर आधारित नहीं था, इसलिए वे उसे मान्यता नहीं देंगे। उन्होंने दिल्ली के रामलीला मैदान में महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और अंबेडकर के पुतले जलाने का भी जिक्र किया, इसे इतिहास का एक काला अध्याय बताया। खरगे ने कहा कि जो लोग संविधान को मानने वाले नहीं हैं, वे कांग्रेस से पूछते हैं कि उन्होंने देश के लिए क्या किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि कांग्रेस के लोग देश के लिए मरे और जेल गए।
सरदार पटेल द्वारा प्रतिबंध
खरगे ने कहा कि भाजपा और आरएसएस ने 50 साल तक तिरंगे को ठुकराया और भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया। उन्होंने याद दिलाया कि सरदार पटेल ने नफरत और हिंसा फैलाने के लिए आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया था। उन्होंने इस विडंबना पर आश्चर्य व्यक्त किया कि आज वही लोग कांग्रेस को राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में कुछ नहीं किया।
आर्थिक संकट और गिरते रुपये पर सरकार को घेरा
खरगे ने देश के सामने खड़ी बड़ी समस्याओं जैसे आर्थिक संकट, बेरोजगारी और सामाजिक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए वंदे मातरम पर बहस छेड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की दिलचस्पी केवल चुनावी प्रचार में रहती है, न कि ज्वलंत मुद्दों के समाधान में।
मोदी के पुराने बयान और वर्तमान स्थिति
उन्होंने रुपए की गिरती कीमत पर सरकार को घेरा और प्रधानमंत्री मोदी के पुराने बयानों का हवाला दिया। खरगे ने याद दिलाया कि जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और अमित शाह गृह मंत्री थे, तब उन्होंने 2012 में गिरते रुपये को लेकर तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। मोदी ने तब कहा था कि देश जानना चाहता है कि रुपया डॉलर के मुकाबले क्यों गिरता ही चला गया और यह केवल आर्थिक कारणों से नहीं, बल्कि भ्रष्ट राजनीति के कारण हुआ है।
खरगे ने सवाल किया कि क्या वही कारण आज रुपए के लगातार गिरने की वजह बन गए हैं, जब रुपया 55-60 से गिरकर 90 के करीब पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि मोदी जी के ही शब्द हैं कि रुपया हिमालय से नीचे गिरने के बाद आदमी के टुकड़े-टुकड़े भी नहीं मिलते, वैसा हो गया है। उन्होंने पूछा कि क्या आज की सरकार भी भ्रष्ट है, जबकि वे खुद को पाक और स्वच्छ बताते हैं।
विदेश नीति: चीन और अमेरिका पर सरकार की चुप्पी
खरगे ने भारत की विदेश नीति पर भी गंभीर सवाल उठाए, खासकर चीन और अमेरिका के संदर्भ में। उन्होंने कहा कि देश के पड़ोसी देशों में भारत का प्रभाव घट रहा है, जबकि चीन का प्रभाव बढ़ रहा है।
चीन का बढ़ता प्रभाव और अरुणाचल प्रदेश
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि नेपाल चीन से निवेश की मांग कर रहा है, बांग्लादेश चीन और पाकिस्तान के साथ त्रिपक्षीय बैठकों में भाग ले रहा है, और बीजिंग खुले तौर पर दक्षिण एशिया को अपनी रणनीतिक योजना के तहत अपनी तरफ खींच रहा है। खरगे ने चिंता व्यक्त की कि 1971 के बाद पहली बार बांग्लादेश भारत से दूर जा रहा है और पाकिस्तान के करीब हो रहा है।
उन्होंने चीन की बढ़ती हिम्मत पर भी प्रकाश डाला, जो अरुणाचल प्रदेश पर अपना बेबुनियादी दावा ही नहीं कर रहा, बल्कि उसके भारतीय नागरिकों पर थोप भी रहा है। उन्होंने अरुणाचल प्रदेश की एक भारतीय महिला का उदाहरण दिया, जिसे शंघाई हवाई अड्डे पर 18 घंटे तक हिरासत में रखा गया और उसे चीनी पासपोर्ट के लिए आवेदन करने की सलाह दी गई। खरगे ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि वे हमेशा 'हम कभी झुकेंगे नहीं' और 'हमारी छाती 56 इंच की है' जैसे बयान देते हैं, लेकिन चीन के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोलते। उन्होंने विदेश मंत्री के सार्वजनिक बयान का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि भारत अभी छोटी अर्थव्यवस्था है और चीन का मुकाबला नहीं कर सकती।
खरगे ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 19 जून 2020 को चीन को 'क्लीन चिट' देने की बात भी याद दिलाई, जब उन्होंने कहा था कि 'ना तो कोई घुसा है, ना ही कोई घुस आया है।' उन्होंने सवाल किया कि इन बयानों के बाद सरकार कहां खड़ी है।
अमेरिका से संबंध और व्यापार
अमेरिका के मामले में खरगे ने मोदी द्वारा 'फिर एक बार ट्रंप सरकार' जैसे प्रचार पर टिप्पणी की, जिसका असर नहीं हुआ और ट्रंप हार गए। उन्होंने कहा कि दोस्ती में कमी आई है। उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के बार-बार इस दावे का भी जिक्र किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध रोक दिया था, जिसे ट्रंप ने इतनी बार दोहराया कि गिनती करना भी मुश्किल है।
खरगे ने आरोप लगाया कि अमेरिका ने भारतीय व्यापारियों पर तारीफ लगाकर उन्हें बर्बाद कर दिया है। कपड़ा, सोना और ऑटो पार्ट जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों के लाखों लोग भारी संकट में हैं। उन्होंने रूस के मामले में भी सरकार की नीति पर सवाल उठाए, जहां अमेरिका के दबाव में भारत ने तेल आयात कम कर दिया, जबकि सस्ता कच्चा तेल आम आदमी को लाभ नहीं दे रहा है, जैसा कि यूपीए सरकार में मिलता था।
सामाजिक मुद्दे और दलितों का अपमान
खरगे ने राष्ट्रीय सुरक्षा, बेरोजगारी और विदेश नीति के अलावा सामाजिक मुद्दों पर भी सरकार को घेरा। उन्होंने दलितों के प्रति सरकार के रवैये पर सवाल उठाए।
दलितों पर अत्याचार और भेदभाव
उन्होंने कहा कि देश में आज भी दलितों को मंदिरों में नहीं आने दिया जाता, शादी में घोड़े पर बैठने नहीं दिया जाता और कुएं से पानी नहीं लेने दिया जाता। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के भीतर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने जैसी घटना का जिक्र करते हुए इसे बढ़ती सामाजिक कुंठा बताया। खरगे ने कहा कि हम सब वंदे मातरम कहते हैं और इस मातृभूमि को नमन करते हैं, लेकिन इसी मातृभूमि में कमजोर दलितों को अपमानित किया जाता है। उन्होंने सवाल किया कि क्या दलितों से नफरत है और क्या भारत माता के पुत्रों की समस्याओं को सदन में रखना गलत है।
पाठ्यक्रम में बदलाव और सरकार की प्राथमिकताएं
खरगे ने आरोप लगाया कि सरकार पाठ्यक्रम को बदल रही है और देश के सामने मौजूद महत्वपूर्ण और ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि विपक्ष के तौर पर वे इन मुद्दों को उठाते रहेंगे।
बहस भटकाने का आरोप और विपक्ष की भूमिका
सदन में अपनी बात रखते हुए खरगे ने बार-बार सरकार पर बहस को भटकाने और असली मुद्दों से ध्यान हटाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि सरकार इस गलतफहमी में न रहे कि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर पर हमला करके असली मुद्दों से ध्यान हटाया जा सकता है।
चुनावी प्रचार पर ध्यान और असली मुद्दों से भटकाव
खरगे ने कहा कि जब देश कहीं बड़ी समस्याओं जैसे आर्थिक संकट, बेरोजगारी और सामाजिक मुद्दों से जूझ रहा है, तब भी प्रधानमंत्री की दिलचस्पी केवल चुनावी प्रचार में रहती है। उन्होंने वंदे मातरम पर बहस को केवल बंगाल चुनावों के ध्यान में रखकर छेड़ा गया बताया। उनका कहना था कि सदन का उद्देश्य देश के सामने मौजूद ज्वलंत मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होना चाहिए, क्योंकि भारत माता को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी जब यह संसद जनता के मुद्दों और उनके समाधान के बारे में बहस करे।
विपक्ष का कर्तव्य और सरकार की विफलताओं पर पर्दा
खरगे ने स्पष्ट किया कि विपक्ष के तौर पर वे राष्ट्रीय सुरक्षा, बेरोजगारी, विदेश नीति, आर्थिक संकट और दलितों के मुद्दों को उठाते रहेंगे। उन्होंने सरकार पर अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए असत्य फैलाने और राष्ट्रीय नायकों पर कीचड़ उछालने का काम बंद करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि संविधान को बनाने वाले नायकों और देश की आजादी में अपना सब कुछ कुर्बान करने वाले नेताओं का सम्मान करना सीखें।
राष्ट्रीय नायकों का सम्मान और देश की एकता
अपने भाषण के अंत में मल्लिकार्जुन खरगे ने सरकार से राष्ट्रीय नायकों का सम्मान करने और देश की एकता को मजबूत करने का आह्वान किया।
झूठ फैलाना बंद करें और नायकों का सम्मान करें
उन्होंने कहा कि जब भी सरकार राष्ट्रीय नायकों को अपमानित करेगी, तो यह बात खुलकर सामने आएगी कि देश की आजादी में उनके पूर्वजों की कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने गांधी जी, नेहरू जी और स्वाधीनता आंदोलन के सभी नायकों की सोच से देश को आजादी और दुनिया में प्रतिष्ठा मिलने की बात कही। खरगे ने सरकार को चेतावनी दी कि उनके विवेक पर सवाल खड़ा करके वे देश-दुनिया में अपनी हंसी न उड़ाएं। उन्होंने कहा कि विधानसभा के चुनाव आते-जाते रहते हैं, लेकिन वंदे मातरम का सम्मान करना और उसे सम्मान की दृष्टि से देखना सीखना चाहिए।
वंदे मातरम सबका मंत्र
खरगे ने कहा कि वंदे मातरम वह गीत है जिसने सिर्फ लोगों को नहीं, दिलों को जोड़ा था। उन्होंने आरोप लगाया कि आज उसी गीत पर झंडे गाड़ने का दुस्साहस वे लोग कर रहे हैं, जिनका उस जोड़ी गई धड़कन में कोई हिस्सा न था। उन्होंने कहा कि ये लोग कभी लड़े नहीं, कभी देश के लिए कुर्बानी नहीं दिए, सिर्फ इसमें कैसा अधिकार में कैसा रहना यही सिर्फ ये करते हैं।
उन्होंने याद दिलाया कि 1994 में नरसिंह राव जी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी के समय ही संसद में राष्ट्रीय गान और वंदे मातरम दोनों को अपनाया गया था। खरगे ने अपने शब्दों को समाप्त करते हुए कहा कि देश को मजबूत रखना है, देश को एक रखना है, इसीलिए वंदे मातरम हम सबका मंत्र होना चाहिए। उन्होंने धन्यवाद देते हुए वंदे मातरम के साथ अपना भाषण समाप्त किया।
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