नीलू की कलम से: कृष्ण में आकर्षण

कृष्ण में आकर्षण
Lord Krishna
Ad

Highlights

कृष्ण कभी शिकायत नहीं करते। उनके निर्णयों में दुविधा को स्थान नहीं तभी वे 'अप्रमत' हैं। युद्ध से भागना उचित समझा तो 'रणछोड़राय' बनकर दौड़ पड़े, युद्ध में डटना जरूरी समझा तो बिना शस्त्र और सहायक के 'रथांगपाणि' बनकर शत्रु पर गर्जना कर दी। 

कृष्ण का अर्थ अब एक सांवला सलोना शिशु है जो माखन से सने मुख और हाथों संग मंद-मंद मुस्करा रहा है, वह बालक जो वनराजि के मध्य गायों के पीछे दौड़ रहा है, वह किशोर जो गोप-गोपिकाओं को वेणुनाद में खो जाने को विवश कर रहा है। 

धूम, अंधकार या कृष्णत्व कभी भी सुंदर या शुभकर नहीं माना गया। जब जब चर्चा चली उजाले की चली। ज्योति और शुक्ल में जो सत्व है वह धूम और कृष्ण में कहां? 

पर ईश्वर के एक अवतार ने इसी कृष्णत्व को सौंदर्य का पर्याय और आह्लाद का प्रतीक बना दिया। अब कृष्ण नाम से किसे स्याह शय ध्यान में आती होगी?

कृष्ण का अर्थ अब एक सांवला सलोना शिशु है जो माखन से सने मुख और हाथों संग मंद-मंद मुस्करा रहा है, वह बालक जो वनराजि के मध्य गायों के पीछे दौड़ रहा है, वह किशोर जो गोप-गोपिकाओं को वेणुनाद में खो जाने को विवश कर रहा है। 

कृष्ण कहां अब हेय रहा! कहां कुरूप रहा? कृष्ण आकर्षण है। हर मां अपने बालक को कृष्ण कहते हुए गर्व से भर उठती है। 

उपेक्षित का उद्धार ही नहीं वरण भी किया है कृष्ण ने। हीनता में पूर्णता का दर्शन कृष्ण की दृष्टि ही कर सकती है । 'पापेभ्यो पाप कृतम्' में भी पुण्यांकुरण की संभावना कृष्ण देखते हैं।

कहते हैं- बाल-गोपाल गौचारण के दौरान किसी दिन एक ऐसा श्वान देख लेते हैं जो साक्षात् दुर्भाग्य की प्रतिमूर्ति लग रहा था। अंग-प्रत्यंग में पड़े कीड़ों से उसका देह गल चुका था। वह दृष्टिहीन था। 

अत्यधिक दुर्गंध से कोई उसके निकट भी न जा पाए, ऐसी वीभत्स दशा में पड़े जीव के भाग्य को हर कोई कोस रहा था।

 "कृष्ण अशुभ से अशुभ में शुभदर्शन कर लेते हैं, क्या वे इस दुर्गंधयुक्त माँसपिंड में भी कोई अच्छाई देख पाएंगे?"-एक बोला।

"इस क्षत विक्षत प्राणी में क्या ही सौंदर्य बचा है, इसे देखकर तो उन्हें भी घृणा ही होगी।"

"तब यह उनके स्वभाव की परीक्षा होगी।"

सभी दौड़कर कृष्ण के पास पहुंचे। श्वान की दशा का वर्णन करके बोले- "क्या आप उसमें कुछ भला देख पाएंगे?" 

"अरे! तुमने उसके दांत देखे? मार्ग से आते हुए मैंने देखा, उसके दांत अब भी चमक रहे हैं।"

यह कृष्ण की दृष्टि! 

कृष्ण कभी शिकायत नहीं करते। उनके निर्णयों में दुविधा को स्थान नहीं तभी वे 'अप्रमत' हैं। युद्ध से भागना उचित समझा तो 'रणछोड़राय' बनकर दौड़ पड़े, युद्ध में डटना जरूरी समझा तो बिना शस्त्र और सहायक के 'रथांगपाणि' बनकर शत्रु पर गर्जना कर दी। 

उत्कट जिजीविषा का नाम है कृष्ण। अंधकार में प्रकाश का नाम है कृष्ण। निराशा में आशा का स्वर है कृष्ण। दौर्बल्य में बल का संचार है कृष्ण। 

कृष्ण सनातन के आराध्य हैं और आदर्श भी। 

कृष्ण जन्माष्टमी  की शुभकामनाएं। 

-नीलू शेखावत

Must Read: वाल्मीकि समाज और राजपूताने की परम्पराएं

पढें Blog खबरें, ताजा हिंदी समाचार (Latest Hindi News) के लिए डाउनलोड करें thinQ360 App.

  • Follow us on :