Sirohi | राजस्थान के पश्चिमी जिलों में लगातार बढ़ते जल संकट को लेकर संसद में एक अहम आवाज गूंजी है। बुधवार, 30 जुलाई को लोकसभा में जालोर-सिरोही से सांसद लुंबाराम चौधरी ने दोनों जिलों को नर्मदा परियोजना से पानी उपलब्ध कराने की पुरजोर मांग उठाई। उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों और पूर्व समझौतों के हवाले से सरकार को कटघरे में खड़ा किया और कहा कि राजस्थान के अधिकार का पानी आज भी गुजरात में बह रहा है या फिर समुद्र में बर्बाद हो रहा है।
डार्क ज़ोन घोषित हैं जालोर और सिरोही
सांसद चौधरी ने लोकसभा में बताया कि जालोर और सिरोही दोनों ही जिले "डार्क ज़ोन" घोषित हैं। इसका मतलब है कि यहां भूजल का अत्यधिक दोहन हो चुका है और जल स्तर खतरनाक रूप से नीचे जा चुका है। इन जिलों में न तो पर्याप्त पेयजल उपलब्ध है और न ही सिंचाई के लिए पानी। ऐसे में नर्मदा परियोजना से पानी मिलना इन इलाकों के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकता है।
खोसला कमेटी और माही जल बंटवारा समझौते का हवाला
लोकसभा में दिए गए अपने भाषण में सांसद लुंबाराम चौधरी ने 1 सितंबर 1965 की खोसला कमेटी रिपोर्ट और 1 अक्टूबर 1966 को राजस्थान और गुजरात सरकार के बीच हुए माही जल बंटवारा समझौते का जिक्र किया।
इस रिपोर्ट और समझौते के अनुसार, गुजरात-राजस्थान सीमा पर कडाणा बांध का निर्माण प्रस्तावित था, जो बाद में बनकर तैयार भी हुआ। समझौते के अनुसार, गुजरात के खेड़ा जिले को कडाणा बांध से तब तक पानी मिलना था जब तक उसे नर्मदा से जल आपूर्ति शुरू नहीं होती।
अब नर्मदा पहुंच गई गुजरात, तो राजस्थान को क्यों नहीं उसका हक?
सांसद ने सदन में यह अहम तथ्य रखा कि साल 2005 से गुजरात के खेड़ा जिले को नर्मदा का पानी मिलना शुरू हो गया है, ऐसे में अब कडाणा और माही बांध के पानी का 2/3 हिस्सा राजस्थान को दिया जाना चाहिए, जो कि सिरोही और जालोर के लिए आरक्षित है। यह समझौते के प्रावधानों के अनुसार है, लेकिन आज तक इस पर अमल नहीं हो पाया।
समुद्र में बह गया 1.30 लाख एमसीएम पानी!
सांसद लुंबाराम चौधरी ने यह भी बताया कि WAPCOS कंपनी, गुड़गांव द्वारा किए गए एक अध्ययन में सामने आया है कि पिछले 37 वर्षों में कडाणा बांध का पानी 27 बार ओवरफ्लो होकर समुद्र में बह गया।
इस दौरान कुल 1.30 लाख एमसीएम (मिलियन क्यूबिक मीटर) पानी बिना किसी उपयोग के समुद्र में चला गया, जो कि राजस्थान जैसे जल-संकटग्रस्त राज्य के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
क्या है समाधान?
सांसद ने लोकसभा अध्यक्ष से अनुरोध किया कि सुजलाम-सुफलाम नहर परियोजना को सुदृढ़ किया जाए और उसे नर्मदा नहर से जोड़ा जाए, ताकि कडाणा बांध का बहता हुआ पानी राजस्थान की सीमाओं तक लाया जा सके। इससे जालोर और सिरोही जिलों को न केवल पेयजल, बल्कि कृषि के लिए भी स्थायी जल समाधान मिल सकता है।
राजस्थान में पानी की कमी कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब कोई सांसद ऐतिहासिक तथ्यों, पूर्व समझौतों और आंकड़ों के साथ अपना पक्ष रखता है, तो सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। अगर गुजरात के खेड़ा जिले को नर्मदा का पानी मिल रहा है, तो राजस्थान को उसके हिस्से का पानी क्यों नहीं मिल रहा? यह सवाल अब सिर्फ राजनीति का नहीं, बल्कि जल अधिकार और जीवन रक्षा का बन गया है।