Highlights
- पिछले 3 साल में 58 नकली दवाइयां मिलीं, लेकिन सिर्फ 6 कंपनियों पर केस दर्ज हुआ।
- करीब 49 मामलों में तो मुकदमा चलाने की अनुमति तक नहीं दी गई।
- तत्कालीन ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा के पास था प्रॉसिक्यूशन सेक्शन जारी करने का जिम्मा।
- नकली दवा बनाने वालों को 10 साल से आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।
जयपुर: ड्रग विभाग (Drug Department) की बड़ी लापरवाही। 3 साल में 58 नकली दवाएं मिलीं, पर सिर्फ 6 कंपनियों पर केस। 49 मामलों में अनुमति नहीं। निलंबित राजाराम शर्मा (Rajaram Sharma) पर मिलीभगत का आरोप।
नकली दवाओं पर ड्रग विभाग की गंभीर लापरवाही
जिस ड्रग डिपार्टमेंट पर नकली दवाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जिम्मेदारी है, वहां लगातार गंभीर लापरवाही के मामले सामने आ रहे हैं।
दैनिक भास्कर के खुलासे के बाद तत्कालीन ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा को सरकार ने निलंबित कर दिया था।
अब नकली दवा बनाने वाली फार्मा कंपनियों पर मेहरबानी का एक और बड़ा मामला उजागर हुआ है।
बीते तीन साल में कुल 58 दवाइयां जांच में नकली पाई गईं, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि इनमें से सिर्फ 6 कंपनियों पर ही केस दर्ज किया गया है।
लगभग 49 मामलों में तो मुकदमा चलाने की अनुमति तक नहीं दी गई, जिससे विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
3 साल में 58 नकली दवाएं, सिर्फ 6 पर कार्रवाई
ड्रग डिपार्टमेंट की जांच रिपोर्ट के अनुसार, पिछले तीन साल के दौरान 58 नकली दवाइयां मिली हैं।
साल 2023 में 16 दवाएं नकली पाई गईं, जबकि साल 2024 में यह आंकड़ा बढ़कर 39 हो गया।
साल 2025 में अब तक 3 दवाइयां जांच में नकली मिली हैं।
इनमें से साल 2023 की 16 नकली दवाओं में से केवल 9 मामलों में ही केस करने की अनुमति मिली है।
बाकी 49 नकली दवाइयों के मामलों में अभी तक केस चलाने की अनुमति नहीं मिल पाई है।
इन 49 मामलों में 2023 की 7, साल 2024 की 39 और साल 2025 की 3 नकली दवाइयां शामिल हैं।
इसके अलावा, 'नॉट ऑफ स्टैण्डर्ड' दवाओं के 218 मामलों में प्रॉसिक्यूशन सेक्शन यानी केस की अनुमति दी जा चुकी है।
हालांकि, संविधान के अभाव में कुछ केसेज अभी तक फाइल नहीं किए जा सके हैं।
किन 6 कंपनियों पर दर्ज हुए केस?
अब तक सिर्फ 6 कंपनियों के खिलाफ ही केस दर्ज किए गए हैं, जो इस प्रकार हैं:
1. भंडारी लैब्स, उज्जैन
उज्जैन में बनी 'क्लिनिक स्प्रिट' नाम की ड्रग को लेकर फर्म भंडारी लैब्स पर 25 जुलाई 2025 को केस दर्ज हुआ।
2. पार्थ फार्मूलेशन, गेगल
गेगल में बनी 'diclofenac sodium & paracetamol tab' नाम की ड्रग को लेकर पार्थ फार्मूलेशन फर्म पर 3 सितंबर 2024 को केस दर्ज किया गया।
3. पार्थ फार्मूलेशन प्राइवेट लिमिटेड, अजमेर
अजमेर में बनी 'parth pain relief [diclofenac sodium & paracetamol tab]' नाम की ड्रग को लेकर पार्थ फार्मूलेशन प्राइवेट लिमिटेड फर्म पर 3 सितंबर 2024 को केस दर्ज हुआ।
4. पार्थ फार्मूलेशन प्राइवेट लिमिटेड, अजमेर
अजमेर में बनी 'parth pain relief' दवा को लेकर पार्थ फार्मूलेशन प्राइवेट लिमिटेड फर्म पर साल 2025 में केस दर्ज किया गया।
5. पार्थ फार्मूलेशन प्राइवेट लिमिटेड
'parth diclo tab' दवा को लेकर साल 2025 में पार्थ फार्मूलेशन प्राइवेट लिमिटेड फर्म पर केस दर्ज हुआ।
6. पार्थ फार्मूलेशन प्राइवेट लिमिटेड
'parth pain relief tab' दवा को लेकर पार्थ फार्मूलेशन प्राइवेट लिमिटेड पर साल 2025 में केस दर्ज किया गया।
नकली दवा के मामले में उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान
यदि ड्रग डिपार्टमेंट अपनी जिम्मेदारी सख्ती से निभाए तो नकली दवा बनाने वालों को कड़ी सजा भुगतनी पड़ सकती है।
नकली दवा मामले में केस दर्ज होने के बाद कोर्ट में सुनवाई होती है।
यदि नकली दवा का दावा सही पाया जाता है तो दोषियों को 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है।
निलंबित ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा पर आरोप
नकली दवाओं की प्रॉसिक्यूशन सेक्शन जारी करने का जिम्मा तत्कालीन ड्रग कंट्रोलर राजाराम शर्मा के पास था।
ड्रग डिपार्टमेंट द्वारा सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में दवाओं के नमूने लिए जाते हैं।
इन नमूनों की सरकारी ड्रग टेस्टिंग लैब में जांच कराई जाती है।
यदि सैंपल नकली पाए जाते हैं तो उन दवाओं के संबंधित बैच का स्टॉक वापस ले लिया जाता है।
इसके बाद पूरी जांच कर प्रॉसिक्यूशन सेक्शन जारी की जाती है और कोर्ट में मामला दर्ज किया जाता है।
माना जा रहा है कि प्रॉसिक्यूशन सेक्शन जारी करने और कोर्ट में केस फाइल करने में जानबूझकर देरी की जाती थी।
यह सब नकली दवा बनाने वाली फार्मा कंपनियों को बचाने के लिए किया जाता था।
हाल ही में ड्रग कमिश्नर का जिम्मा संभालने वाली आईएएस टी शुभमंगला ने सभी डीसीओ को ऐसे मामलों में तुरंत एक्शन लेने के निर्देश दिए हैं।
दैनिक भास्कर ने किया था नकली दवा की नई परिभाषा गढ़ने का खुलासा
दैनिक भास्कर ने पहले भी ड्रग डिपार्टमेंट के एक अधिकारी द्वारा नकली दवाओं को लेकर नई परिभाषा गढ़ने का खुलासा किया था।
इस अधिकारी ने लोकसभा और नीति आयोग को अलग-अलग डेटा भी भेजे थे।
विधानसभा में भी गलत आंकड़े भेजने की तैयारी थी, लेकिन उससे पहले विभागीय जांच में यह मामला पकड़ा गया।
खबर प्रकाशित होने के कुछ घंटों बाद कार्रवाई करते हुए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त शासन सचिव निशा मीणा ने राजाराम शर्मा को तुरंत प्रभाव से निलंबित कर दिया था।
फार्मा कंपनियों को बचाने के लिए नकली दवा की परिभाषा ही बदल दी गई थी।