Highlights
पहियों पर इश्क कैसा होता है
नीलू शेखावत की यह कविता
बाबा नागार्जुन की कविता चूड़ियां जैसा अहसास कराती है
▪️ पहियों पर इश्क़ ▪️
आसान नहीं पहियों पर ज़िंदगी
पाना पेचकस थामे हाथ
और ग्रीस से सनी हथेलियों की
मिटने लगती हैं सारी रेखाएं
बच जाती है महज़ उमर रेख
शवासन करती सड़क पर
ब्रेक और एक्सीलेटर का
कुंभक रेचक करती बस
दृष्टि को लक्ष्य पर एकाग्र रखता चालक
ध्यान नहीं टूटता जिसका
भीड़ और कोलाहल में भी
नजर का किसी रोज पड़ जाना
मिलना
टकराना
और लड़ जाना
लग जाना, लटकते नींबू मिर्च के वावजूद
आंख लगते ही उसकी
कम हो जाना गति का,
बढ़ जाना
घड़ी की ओर देखते ही
इश्क़ ही तो है
शीशे को दांए बांए घुमाकर
किसीको आंख भर निहारना
खुशबु से पहचानना
हवाओं से बातें करना
एकतरफा ही सही
आसान है पहियों पर इश्क़