कविता नीलू शेखावत: पो खालड़ी को खो

पो खालड़ी को खो
पो खालड़ी को खो winter
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Highlights

राजस्थान में कड़ाके की सर्दी दांत किटकिटा देती है

जन जीवन पशुओं के हालात को बयां करती है कविता

राजस्थानी भाषा सौष्ठव का अनूठा प्रयोग है

नीलू शेखावत की कविताओं में सौरभ है

पो खालड़ी को खो
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सीळी मावठ ओळां गेल
सोड़ मसोड़ां हूगी फेल
बाजे दांत धूजणी छूटी
देख्यां जाओ पो का खेल

 पीळा पड़गा पत्ता पेळ
जीव जिनावर पड़गा जेळ
 छानां छपरे घेर घुमेरी
घीया सेंती बळगी बेल

डांफर अर झोला न झेल
कांटा हु रिया गाय र बैल
लल्डी बकरी बाड़ां बारे 
निकळै कोनी दियां धकेल

बिरखा बरस' चुव' चेळ
कांई सांवरा छोडी सेळ
बाप नचीतो होवे जियाँ
बाई ने मुकलावे मेल

हळ्दी मेथी गुड़ की भेल
घाट खिचड़ो तिल को तेल
गूंद खोपरा घी का लाडू
सियाळ म जबरो मेळ

- नीलू शेखावत

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