पुराने नोट बदलने से कोर्ट का इनकार: नोटबंदी के 9 साल बाद 16 लाख के पुराने नोट बदलने से हाईकोर्ट का इनकार, अब रद्दी हुए नोट

नोटबंदी के 9 साल बाद 16 लाख के पुराने नोट बदलने से हाईकोर्ट का इनकार, अब रद्दी हुए नोट
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Highlights

  • हाईकोर्ट ने 16 लाख के पुराने नोट बदलने की याचिका खारिज की।
  • जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी की बेंच का फैसला।
  • आरबीआई के जिला बैंकों पर रोक के फैसले को जनहित में सही बताया।
  • सुप्रीम कोर्ट के विवेक नारायण शर्मा मामले के फैसले का दिया हवाला।

JAIPUR | राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) की जोधपुर (Jodhpur) पीठ ने बाड़मेर (Barmer) की दुधु ग्राम सेवा सहकारी समिति (Dudhu Gram Seva Sahakari Samiti) और अन्य सहकारी समितियों द्वारा 16 लाख रुपये से अधिक के पुराने 500 और 1000 के नोटों को बदलने की याचिका को खारिज कर दिया है।

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस अनुरूप सिंघी की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि आर्थिक नीतियों में न्यायिक हस्तक्षेप की गुंजाइश बहुत सीमित है।

कोर्ट ने कहा कि महज कठिनाई या असुविधा किसी वैध आर्थिक उद्देश्य के लिए उठाए गए नियामक उपायों को अवैध ठहराने का आधार नहीं हो सकती।

समितियों ने दी थी चुनौती

बाड़मेर की दुधु सहित आधा दर्जन ग्राम सेवा सहकारी समितियों (PACS) ने मार्च 2017 में याचिका दायर कर पुराने नोट बदलने की अनुमति मांगी थी।

याचिकाकर्ताओं के अनुसार, 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी के समय उनके पास 16 लाख 17 हजार 500 रुपये की वैध नकदी मौजूद थी।

आरबीआई और सरकार का तर्क

केंद्र और आरबीआई (RBI) के वकीलों ने तर्क दिया कि यह रोक 'काले धन को सफेद' करने यानी मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए लगाई गई थी।

कोर्ट को बताया गया कि जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (DCCB) में उस समय ऑडिट और तकनीकी ढांचे की कमी थी, जिससे गड़बड़ी की आशंका थी।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के 'विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ' मामले के ऐतिहासिक फैसले का उल्लेख किया।

अदालत ने माना कि आरबीआई के सर्कुलर मनमाने नहीं थे और वित्तीय अखंडता सुनिश्चित करने के लिए जारी किए गए थे।

अब रद्दी हुए नोट

कोर्ट ने नाबार्ड (NABARD) को नोटों की जांच करने का निर्देश देने से भी इनकार कर दिया, जिससे अब यह 16 लाख रुपये पूरी तरह रद्दी हो गए हैं।

बाड़मेर की बामनोर, बिसरणिया, खुडाला, पुरावा, भीमथल और मंगता समितियों की याचिकाएं भी इसी आधार पर खारिज कर दी गई हैं।

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