रामगढ़ बांध में ‘क्लाउड सीडिंग’ का खेल: 0.8 मिमी बारिश को बताया गया सफलता, जनता ने उठाए सवाल

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जयपुर। दशकों से सूखे पड़े रामगढ़ बांध को भरने की उम्मीद में राज्य सरकार और तकनीकी कंपनियों ने ‘क्लाउड सीडिंग’ का प्रयोग किया। इसे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘AI टेक्नोलॉजी’ की बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया गया। लेकिन सवाल उठ रहा है—क्या यह प्रयोग वाकई सफल रहा, या जनता के टैक्स का पैसा एक टेक्नोलॉजिकल मज़ाक पर खर्च कर दिया गया?

तथाकथित सफलता और हकीकत

1 सितंबर को कंपनी ने दावा किया कि क्लाउड सीडिंग प्रयोग सफल रहा। जयपुर में हुई हल्की बारिश को अपनी उपलब्धि बताया गया। लेकिन रिकॉर्ड के अनुसार, उस दिन सिर्फ 0.8 मिमी बारिश दर्ज की गई। यानी इतनी मामूली बारिश कि शहर के लोगों को छाता खोलने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी।

असफल प्रयासों का सिलसिला

इससे पहले 12 अगस्त और 18 अगस्त को भी क्लाउड सीडिंग के प्रयास किए गए थे।

  • पहली बार मोबाइल नेटवर्क की गड़बड़ी से GPS सिस्टम बिगड़ गया और ड्रोन क्रैश हो गया।

  • दूसरी बार ड्रोन खेतों में जा गिरा।

  • तीसरी बार मामूली बारिश हुई, जिसे ‘ऐतिहासिक उपलब्धि’ बताते हुए प्रेस रिलीज़ जारी कर दी गई।

हाई-टेक दावों का सच

कंपनी का कहना है कि इस प्रयोग में AI और क्लाउड माइक्रो-फिज़िक्स तकनीक का इस्तेमाल किया गया। लेकिन सवाल यही है कि करोड़ों रुपये खर्च कर जनता को मिला क्या? सिर्फ 0.8 मिमी बारिश। स्थानीय लोगों का कहना है कि “अगर जयपुर के किसी शादी पंडाल में स्प्रिंकलर चला दिया जाए, तो उससे भी ज्यादा पानी गिर जाएगा।”

राजनीतिक बयानबाज़ी

राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीणा ने इस प्रयोग को राजस्थान के जल प्रबंधन की “महत्वपूर्ण उपलब्धि” बताया। लेकिन विशेषज्ञों और जनता का सवाल है कि दशकों से सूखे पड़े रामगढ़ बांध में 0.8 मिमी बारिश कितना योगदान दे पाएगी? क्या इससे जल संकट का हल निकलेगा, या यह सिर्फ़ एक पब्लिसिटी स्टंट था?

जनता के सवाल

जयपुर की जनता अब तीन बड़े सवाल पूछ रही है:

  1. इस प्रोजेक्ट पर कुल कितना खर्च हुआ?

  2. अगर उद्देश्य रामगढ़ बांध भरना था, तो 0.8 मिमी बारिश से क्या हासिल हुआ?

  3. अगर टेक्नोलॉजी इतनी कारगर है, तो फिर बार-बार ड्रोन क्यों क्रैश हो रहे हैं?

निष्कर्ष

रामगढ़ बांध अब भी सूखा है। लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस और राजनीतिक बयानों में इस प्रयोग को बड़ी सफलता की तरह पेश किया जा रहा है। असली सवाल यही है कि क्या यह विज्ञान की जीत है… या दिखावे का खेल?

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