Highlights
- उम्मेद सागर कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण पर हाईकोर्ट सख्त।
- सरकार ने कोर्ट में माना, मौके पर अतिक्रमण मौजूद है।
- प्रशासन को 4 सप्ताह में अतिक्रमण हटाने की रिपोर्ट पेश करनी होगी।
- 1933 में बनी नहर अब गंदे नाले में बदल गई।
जोधपुर: जोधपुर (Jodhpur) के ऐतिहासिक उम्मेद सागर (Umed Sagar) बांध क्षेत्र और उसके 800 बीघा कैचमेंट एरिया में अतिक्रमण को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने सरकारी वकील की स्वीकारोक्ति को रिकॉर्ड पर लिया कि मौके पर अतिक्रमण मौजूद है। प्रशासन को 4 सप्ताह में अतिक्रमण हटाने की रिपोर्ट पेश करने का अल्टीमेटम दिया गया है।
राजस्थान हाईकोर्ट ने 'निर्वाण सेवा संस्थान' की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह महत्वपूर्ण आदेश दिया है। जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी और जस्टिस संजीत पुरोहित की डिवीजन बेंच ने यह फैसला सुनाया।
सरकारी स्वीकारोक्ति और कोर्ट का अल्टीमेटम
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और नगर निगम का पक्ष रख रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता महावीर विश्नोई व साथी अधिवक्ता आयुष गहलोत ने कोर्ट में स्वीकार किया कि मौके पर कुछ अतिक्रमण हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन्हें हटाने के लिए आवश्यक प्रयास किए जाएंगे।
इस पर कोर्ट ने आदेश दिया कि प्रतिवादी पक्ष को प्रश्नगत अतिक्रमण के सीमांकन (Demarcation) और उसे हटाने के संबंध में रिपोर्ट पेश करने के लिए समय दिया जाता है। मामले की अगली सुनवाई 4 सप्ताह बाद होगी।
याचिकाकर्ता की प्रमुख मांग: नए निर्माण पर रोक
याचिकाकर्ता 'निर्वाण सेवा संस्थान' की अध्यक्ष हेमलता पालीवाल की ओर से अधिवक्ता दिविक माथुर ने पैरवी की। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि जब तक अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई चल रही है, तब तक उस क्षेत्र में किसी भी तरह के नए निर्माण की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
ऐतिहासिक नहर का दर्दनाक वर्तमान
याचिका में प्रस्तुत तथ्यों के अनुसार, महाराजा उम्मेद सिंह ने उम्मेद सागर बांध को भरने के लिए वर्ष 1933 में यह नहर बनवाई थी। यह जोधपुर की एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है।
राजस्व रिकॉर्ड में सूंथला-गेंवा गांव के खसरा नंबर 92/1, 93 और 100 में यह जमीन "गैर मुमकिन नहर (खालिया)" के रूप में दर्ज है। हालांकि, जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है।
याचिका में बताया गया कि भू-माफियाओं ने नहर और पास की पहाड़ियों पर पक्के मकान बना लिए हैं। इसके चलते यह ऐतिहासिक धरोहर अब कचरे और मलबे से भरे एक गंदे नाले में तब्दील हो गई है।
प्रशासनिक लापरवाही पर गंभीर सवाल
याचिका में 'पब्लिक लैंड प्रोटेक्शन सेल' (PLPC) और नगर निगम की निष्क्रियता पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मानवेंद्र भाटी ने 16 अगस्त 2021 को पहली बार PLPC में आवेदन दिया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इसके बाद 19 अगस्त 2021, 5 अक्टूबर 2021 और 19 जून 2023 को कलेक्टर, निगम और जेडीए को लगातार पत्र लिखे गए। 24 अक्टूबर 2023 को जिला कलेक्टर को भेजे गए पत्र में साफ कहा गया था कि नहर और पहाड़ी क्षेत्र अवैध कब्जों तथा ठोस कचरा डंपिंग यार्ड बन चुका है।
यहां तक कि जल संसाधन विभाग के अधिशाषी अभियंता ने 26 जनवरी 2024 को नगर निगम को पत्र लिखकर स्पष्ट किया था कि उम्मेद सागर नहर निगम क्षेत्र में आती है और उस पर अज्ञात लोगों द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है, जिसे हटाना अति-आवश्यक है।
"जोधपुर के फेफड़े" खतरे में
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उम्मेद सागर का कैचमेंट एरिया और आसपास की पहाड़ियां "जोधपुर के फेफड़े" के समान हैं। ये क्षेत्र शहर के पर्यावरण संतुलन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
अतिक्रमण के कारण बरसात का पानी जलाशय में जाने के बजाय सड़कों और कॉलोनियों में भर रहा है। इससे बाढ़ जैसे हालात बन रहे हैं और भूजल स्तर भी लगातार गिर रहा है, जो चिंता का विषय है।
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