दीपेन्द्रसिंह हुड्डा वंदेमातरम पर: वंदेमातरम: राष्ट्रगीत की गौरव गाथा और वर्तमान संदर्भ पर हुड्डा

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Highlights

  • वंदेमातरम को राष्ट्रीय आंदोलन का उद्घोष बताया, जो धर्म, जाति और प्रांत की सीमाओं से परे है।
  • बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की प्रतिमा संसद में स्थापित करने की मांग की।
  • वंदेमातरम के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार से प्रस्ताव लाने का आग्रह।
  • आजादी के 75 वर्षों में भारत की गौरव गाथा को वंदेमातरम से जोड़ा।

नई दिल्ली: हरियाणा के सांसद दीपेन्द्रसिंह हुड्डा (Deepender Singh Hooda) ने वंदेमातरम (Vande Mataram) को राष्ट्रीय आंदोलन का उद्घोष बताया।

उन्होंने बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय (Bankim Chandra Chattopadhyay) की प्रतिमा संसद में स्थापित करने की मांग की।

हुड्डा ने गीत के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए इसकी ऐतिहासिक और भावनात्मक महत्ता पर प्रकाश डाला।

अध्यक्ष महोदय, वंदेमातरम को केवल साहित्य या राष्ट्रगीत की सीमाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता।

यह उस महान राष्ट्रीय आंदोलन का उद्घोष है, जिसने धर्म, जाति और प्रांत की सीमाओं को लांघकर देश को एक सूत्र में बांधने का काम किया था।

भारतीय राष्ट्रवाद, आजादी की लड़ाई और भारतीयता के आध्यात्मिक इतिहास में वंदेमातरम का स्थान अद्वितीय है।

आज भी जब हम यह गीत गाते हैं, तो इसके एक-एक अक्षर में हमें देश की मिट्टी की सुगंध आती है।

हमें इस गीत के एक-एक अक्षर में लाखों शहीदों की तस्वीर दिखाई देती है और स्वतंत्रता संग्राम की आवाज सुनाई देती है।

इस गीत के एक-एक अक्षर में आजाद भारत के पिछले 75 साल की गौरव गाथा की गूंज भी सुनाई देती है और भारतवर्ष के स्वर्णिम भविष्य के सपने भी संजोए जाते हैं।

वंदेमातरम केवल एक गीत ही नहीं, यह भारत की राष्ट्रीय चेतना जगाने का एक महामंत्र था।

बंकिम बाबू: राष्ट्र चेतना के ऋषि

इस महामंत्र को देने वाले बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय जी को इसीलिए ऋषि कहा गया है। मैं उन्हें महर्षि भी कहूंगा।

आज वंदेमातरम देने की 150वीं वर्षगांठ पर मैं सरकार से यह मांग करूंगा कि इसको देने वाले महर्षि, जिन्हें प्रियंका जी ने महाकवि भी कहा, बंकिम बाबू की प्रतिमा संसद के लोकतंत्र के इस मंदिर में स्थापित की जाए।

सरकार इस पर प्रस्ताव लाए, हम उसका समर्थन करेंगे।

दुरुपयोग रोकने का संकल्प

मैं साथ में यह भी कहूंगा कि वंदेमातरम का भाव समझते हुए सरकार एक प्रस्ताव और एक संकल्प यह भी लाए कि यह गीत, जो भारत की एकता का सूत्रधार था, उस गीत को उस एकता को खंडित करने के स्रोत के रूप में, उस गीत का दुरुपयोग न किया जाए।

मैं सरकार से मांग करता हूं कि वंदेमातरम के 150 साल के इस सफर को सम्मान दिया जाए।

वंदेमातरम का ऐतिहासिक सफर: 150 वर्ष की यात्रा

यह गीत 1875 में बंकिम बाबू की कलम से अंकित हुआ था। 1896 में गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के कोलकाता अधिवेशन में पहली बार इसका गायन हुआ।

तब से लेकर आज तक, सवा सौ साल तक इस गीत का निरंतर गायन कांग्रेस पार्टी के अधिवेशनों और कार्यक्रमों में चलने की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक कायम है।

बंग-भंग आंदोलन और वंदेमातरम

1905 में जब अंग्रेज लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को सांप्रदायिक आधार पर दो टुकड़ों में बांटने का प्रस्ताव दिया, तो बंगाल में हर धर्म, हर मजहब, हर जाति के लोग एक साथ वंदेमातरम गीत के गायन के साथ खड़े हुए।

बंग-भंग के विरोध में हुए इस आंदोलन की अगुवाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सुरेंद्रनाथ बनर्जी, लाल-बाल-पाल जैसे महान नेताओं ने की थी।

पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन में गूंज

इसके बाद 1907 में, देश के दूसरे कोने, अविभाजित पंजाब में, जो हिंदूकुश की पर्वत से और जमुना के तट तक फैला था, जब अंग्रेज की गाज पंजाब के किसान के अधिकारों पर पड़ी, तो पगड़ी संभाल जट्टा आंदोलन पंजाब में हुआ।

इस आंदोलन में पंजाब के एक-एक गांव में वंदेमातरम की गूंज सुनाई दी। अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों पर बहुत यातनाएं ढहाईं।

इस आंदोलन में शहीद भगत सिंह जी के चाचा सरदार अजीत सिंह जी और मेरे स्वयं के परदादा चौधरी माथुराम हुड्डा जी को उस समय अंग्रेजों ने काले पानी की सजा सुनाई थी।

क्रांतिकारियों का प्रेरणा स्रोत

1907 के बाद 1908 में, खुदीराम बोस जैसे क्रांतिकारी नौजवान ने वंदेमातरम का नारा देते हुए फांसी के फंदे को चूमने का कार्य किया।

इसके बाद देश के दो केंद्रों में, लाहौर से लाला लाजपत राय और कोलकाता से श्री अरविंदो ने 'वंदेमातरम' नाम से प्रकाशन शुरू किए, जिसने राष्ट्रीय चेतना को जगाने का कार्य किया।

गांधीजी और असहयोग आंदोलन

1921 में महात्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन का बिगुल बजाया, तो देश में लाखों कांग्रेसी वंदेमातरम का नारा देते-देते अंग्रेजों की जेलों में गए।

धीरे-धीरे यह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यक्रमों में गाया जाने वाला एक गीत नहीं, बल्कि देश की आवाज बन चुका था। गांधी जी ने इस गीत के बारे में क्या कहा, मैं पढ़कर बताना चाहूंगा।

गांधी जी ने 1915 में लिखा, “जब मैं छोटा था, मुझे आनंद मठ या उसके अमर लेखक बंकिम के बारे में कुछ नहीं पता था, तब भी वंदेमातरम ने मुझे प्रभावित किया था।

जब मैंने इसको पहली बार सुना, तो इसने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था। मैं इसमें सबसे पवित्र राष्ट्रवाद की भावना को पाता हूं।”

नेहरू का दृष्टिकोण

इसी प्रकार से जब पंडित जवाहरलाल नेहरू 1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चयनित हुए, तो 1929 के कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने अपने भाषण का समापन वंदेमातरम के गायन से किया।

उन्होंने अधिवेशन की आयोजन समिति को चिट्ठी लिखी कि हर अधिवेशन का प्रारंभ वंदेमातरम के गीत से किया जाए।

राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकृति और विरोध

1937 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर जी के प्रस्ताव को हूबहू स्वीकार करते हुए वंदेमातरम को राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार किया।

लेकिन उसके बाद क्या हुआ? जब कांग्रेस पार्टी ने, कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने, केंद्रीय कार्य समिति ने यह प्रस्ताव पारित किया, तो अंग्रेजों के महापिट्ठू मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस केवल हिंदुओं तक सीमित हो गई है और मुस्लिम विरोधी हो गई है।

जिन्ना का विरोध और नेहरू का करारा जवाब

जब मोहम्मद अली जिन्ना ने यह कहा, तो मोहम्मद अली जिन्ना को मैं रिकॉर्ड पर लाना चाहूंगा, अध्यक्ष महोदय, मोहम्मद अली जिन्ना का मुंहतोड़ जवाब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिया।

6 अप्रैल 1938 को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जिन्ना को एक करारा पत्र लिखा और कहा, “मिस्टर जिन्ना, याद रखिए, वंदेमातरम गीत भारतीय राष्ट्रवाद के साथ पिछले 30 साल से अधिक समय से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसके साथ अनगिनत बलिदान और भावनाएं जुड़ी हुई हैं। लोकप्रिय गीत किसी आदेश से पैदा नहीं होते, न उन्हें जबरन थोपा जा सकता है। यह जन भावनाओं से उपजते हैं।

पिछले 30 साल से अधिक समय में ऐसा कभी नहीं माना गया कि वंदेमातरम गीत में कोई सांप्रदायिक भाव छुपा है और इसे हमेशा से भारत की प्रशंसा में देशभक्ति का गीत माना गया है।”

पंडित जी ने लिखा, जब जिन्ना अंग्रेजों के महापिट्ठू बनकर वंदेमातरम का विरोध कर रहे थे और कांग्रेस और पंडित नेहरू उस विरोध का करारा जवाब दे रहे थे, तो कुछ ऐसे भी संगठन थे जो सत्ताधारी दल से जुड़े हुए हैं, जो अपना गीत गा रहे थे। उन्होंने जिन्ना के इस विरोध के बारे में उस समय कुछ ऐसा नहीं कहा जो रिकॉर्ड में हो।

आजादी की पहली सांस और वंदेमातरम

यही नहीं, 1947 में देश की आजादी की मध्य रात्रि, जब भारत स्वतंत्र हो रहा था, आजादी की पहली सांस हिंदुस्तान लेने जा रहा था, तो पंडित नेहरू ने संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी को एक पत्र लिखा।

उस पत्र में उस कार्यक्रम की रूपरेखा को प्रस्तावित किया, जो आजादी का पहला महोत्सव मध्य रात्रि को मनाया जा रहा था। उस पत्र में यह लिखा कि मैं आग्रह करता हूं कि उस कार्यक्रम का प्रारंभ वंदेमातरम के गायन से हो। और ऐसा ही हुआ।

संविधान सभा में सर्वसम्मति

अंततः देश की आजादी के बाद 1950 में संविधान सभा ने इसको राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया। और खूबसूरती यह थी कि उस संविधान सभा में सरदार पटेल, मौलाना आजाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहब भीमराव अंबेडकर, मेरे स्वर्गीय दादाजी चौधरी रणवीर सिंह हुड्डा और श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी शामिल थे।

सबने एक मत से, एक स्वर में इसको अपना राष्ट्रगीत माना। 284 सदस्यों में से एक ने भी कोई आपत्ति नहीं करी, एक ने भी किसी एक अक्षर पर कोई संशोधन नहीं किया। राष्ट्रगीत के रूप में एक एकता के भाव से इसे अपनाया गया।

हुड्डा परिवार का बलिदान और वंदेमातरम

देश की आजादी में असंख्य लोगों ने वंदेमातरम बोलते-बोलते अपने प्राणों की आहुति दी। असंख्य लोगों ने अंग्रेजों की यातनाएं सही, जेल के दर्शन किए। मुझे भी गर्व है, अध्यक्ष महोदय, इस बात पर कि मैं एक ऐसे परिवार से हूं जिसकी दो पीढ़ियों ने उस आजादी के आंदोलन में कुर्बानियां दीं।

मेरे परदादाजी को अंग्रेज ने काले पानी की सजा सुनाई, तो मेरे खुद के दादाजी आठ साल तक ब्रिटानिया हुकूमत की काली कोठड़ी और जेलों में रहे, जिनमें से चार साल उनको सजा वंदेमातरम के गायन के बाद हुई। उन्होंने जब अपनी आत्मकथा लिखी, तो उस आत्मकथा का नाम चौधरी रणवीर सिंह जी की आत्मकथा का नाम ‘सॉन्ग ऑफ फ्रीडम’ (Song of Freedom) वंदेमातरम के नाम से उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी। यह भाव था।

वंदेमातरम का गहरा अर्थ: भारत मां की अवधारणा

आज वर्तमान संदर्भ में जब हम वंदेमातरम का गायन करें, तो हमें वंदेमातरम गीत के अर्थ को भी गहराई से समझने की आवश्यकता है। वंदेमातरम गीत की आत्मा में भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिक प्रतीक भारत मां है।

मगर प्रश्न उठता है, बहुत सी जन्मभूमि अपनी जन्मभूमि को पिता कहते हैं, बहुत से मुल्क कोई बंधु कहते हैं, कोई भाई कहते हैं, बहन कहते हैं, मगर मां, मां ही क्यों? भारत मां, मां ही क्यों?

मां क्यों? करुणा, समानता और प्रेम का प्रतीक

क्योंकि मां जननी है, मां पालनहारी है। भारत की संस्कृति में मां ही करुणामयी है। मां ही है जो चाहती है उसकी हर संतान फले-फूले, खुश रहे, हर संतान को वरदान मिले, हर संतान के प्रति करुणा हो, जैसे कि इस गीत के आगे के अक्षरों में कहा गया है। और मां ही है जिसके लिए हर संतान बराबर है।

राजनाथ सिंह जी ने कहा कि भारत मां के लिए जन गण मन और वंदेमातरम बराबर है, मगर मां ही है जिसके लिए हर संतान बराबर है। संतान-संतान में भेद नहीं हो सकता, चाहे वो संतान किसी धर्म की है, चाहे वो किसी जाति की है, किसी भाषा की है।

वो मां ही है जो हमेशा यह चाहती है कि उनकी संतान आपस में प्यार से रहे, मोहब्बत से रहे, आपस में संतान में लड़ाई न हो, झगड़ा न हो। और इसीलिए भी मां, क्योंकि हर संतान के लिए भी मां से बढ़कर कुछ नहीं। मातृभक्ति का भाव हर संतान के दिल में पवित्र होता है।

कोई संतान यह नहीं कह सकती कि मुझे मां से ज्यादा प्यार है और तुझे मां से कम प्यार है। इसीलिए दूसरों की देशभक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले सच्चे देशभक्त नहीं हो सकते।

मातृभक्ति बनाम वोट भक्ति

और मां, मां ही क्यों? क्योंकि हमारी सृष्टि में और हमारे संस्कारों में मां से बड़ा कोई नहीं हो सकता। मां से बड़ा कोई व्यक्ति नहीं हो सकता, मां से बड़ा कोई संगठन नहीं हो सकता, मां से बड़ी कोई सरकार नहीं हो सकती, मां से बड़ी कोई विचारधारा नहीं हो सकती, और मां से बड़ा कुछ नहीं हो सकता, और भारत मां से बड़ा तो कुछ भी नहीं हो सकता। ये हमारे मां क्यों?

क्योंकि मां कभी राजनीति में कोई सच्चा मातृभक्त अपनी मां को अपनी राजनीति का हथियार नहीं बना सकता। इसीलिए मां। वो मातृभक्ति क्या जो राजनीति में अपनी मां को घसीटे?

आज मैं देखता हूं तो दुख होता है जब मातृभक्ति की आड़ में वोट भक्ति की लालच दिखाई देती है। आज मैं देखता हूं तो दुख होता है जब राष्ट्रवाद को वोट के लिए प्रयोग करने के प्रयास होते हैं। मातृभक्ति पवित्र होनी चाहिए। अपनी राजनीतिक शक्ति बटोरने के लिए मातृभक्ति का प्रयोग नहीं होना चाहिए। वंदेमातरम, कुछ लोग वंदेमातरम से ज्यादा वंदेमातरम का उच्चारण वंदे वोटरम के लिए करते हैं और कर रहे हैं। आज यह देश देख रहा है।

एकता का सूत्रधार वंदेमातरम

मां इसीलिए भी कि विभिन्नताओं और अनेकताओं से भरा यह देश, इस देश को अगर एकता के एक भाव में कोई कुछ पिरो सकता था, तो अपनी माता के लिए जो भाव उत्पन्न हुआ वो पिरो सकता था। और यही कारण था कि आजादी के आंदोलन में देश एक हुआ।

अंग्रेजों के 'फूट डालो राज करो' (Divide and Rule) की रणनीति, जाति-धर्म के आधार पर देश के समाज को तोड़ो और भारत मां को गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहो, अंग्रेजों की उस रणनीति को देश ने एक होकर विफल किया। यह एकता का भाव और यही एकता का भाव बंगाल में बंग-भंग के विरोध में जो आंदोलन हुआ उसमें दिखा।

और यही एकता का भाव 1950 में जब संविधान सभा ने एक स्वर से, एक मत से सबने इसको राष्ट्रगीत के रूप में चुना, यही एकता का भाव दिखा भारत मां के प्रति जो भाव था, और कैसे उसमें सब एक सूत्र में बंधे चले गए।

बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान का उदाहरण

मैं एक उदाहरण देना चाहता हूं, अध्यक्ष महोदय। शाहजहांपुर से आए दो दोस्त, पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खान।

दोनों को अंग्रेजों, ब्रिटेन हुकूमत ने जब फांसी की सजा सुनाई, तो अशफाक उल्ला खान क्या लिखते हैं, फांसी से लटकने के पहले उनकी कलम क्या लिखती है? उन्होंने लिखा, मैं पढ़ना चाहूंगा, अशफाक उल्ला खान ने लिखा, “जाऊंगा खाली हाथ मगर यह दर्द साथ ही जाएगा, जाने किस दिन हिंदुस्तान आजाद वतन कहलाएगा।”

बिस्मिल कहते हैं, “फिर आऊंगा, फिर आऊंगा, फिर आकर भारत मां तुझको आजाद कराऊंगा।” जी करता है मैं भी कह दूं पर मजहब से बंध जाता हूं, मैं मुसलमान हूं पुनर्जन्म की बात नहीं कर पाता हूं। हां, खुदा अगर मिल गया कहीं तो अपनी झोली फैला दूंगा और जन्नत के बदले उससे यहां ही पुनर्जन्म मांगूंगा।

कह रहे हैं एक मुस्लिम युवक के हृदय में देशभक्ति क्या हिलोरे मार रही थी। वो कह रहे हैं अगर खुदा मिल गया तो पुनर्जन्म की इजाजत नहीं है, लेकिन मैं उससे जाकर मांगूंगा और भारत मां की गोदी में पुनर्जन्म की खुदा को जाकर बात कहूंगा।

नारों में तुलना नहीं, पवित्रता महत्वपूर्ण

लेकिन फिर भी कुछ लोग विवाद खोजते हैं नारों में, विवाद। कुछ लोग यह नारा इससे अच्छा है, वो नारा इससे अच्छा है। कुछ लोग कहते हैं मैं यह नारा बोलूंगा, कुछ लोग कहते हैं मैं यह नारा बुलवाऊंगा। नारों-नारों में तुलना नहीं हो सकती। देशभक्ति की भावना पवित्र है कि नहीं है, किस नारे के पीछे यह इस बात की चर्चा तो हो सकती है, लेकिन नारे में तुलना और नारों में विवाद से देश का भला नहीं हो सकता।

बहुत से नारे आए। भारत माता की जय, यह नारा गूंजा महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, कांग्रेस पार्टी और आजादी के आंदोलन की सभाओं में भारत माता की जय का नारा गूंजा। वंदेमातरम बंकिम चंद्र चटर्जी जी के कलम से वंदेमातरम आया। तो नारा आया जय हिंद का, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, आजाद हिंद फौज, हम कैसे भूल जाएं जय हिंद का नारा आया।

हम शहीद आजम भगत सिंह को कैसे भूल जाएं जिन्होंने इंकलाब जिंदाबाद और हिंदुस्तान जिंदाबाद का नारा दिया। हम कैसे भूल जाएं अजीमुल्ला खान को जिन्होंने मादरे वतन हिंदुस्तान जिंदाबाद का नारा दिया। नारे राष्ट्रभक्ति के नारे, भारत माता की वंदना के नारे, और इन वंदना के नारों में विवाद यह देश हित में नहीं है।

देश की आजादी के बाद हमने पिक्चर देखी एक आनंद मठ जहां लता मंगेशकर जी ने वंदेमातरम का गीत गाया। और हमने देश की आजादी की 50वीं सालगिरह पर ए आर रहमान द्वारा वंदेमातरम मां तुझे सलाम का गीत भी हमने सुना।

कुछ लोग हैं जो इन गीतों के पीछे शब्दों को पकड़ते हैं, लेकिन असली राष्ट्रभक्त वो है जो इनके पीछे सच्ची राष्ट्रभक्ति है कि नहीं है, उस बात को समझने का प्रयास प्रयत्न करते हैं।

अपने दिल में जो राष्ट्रभक्ति का भाव है उसमें पवित्रता लाने का तप करना, यही मैं समझता हूं कि आज सार्थक बात होगी।

देश की आजादी के आंदोलन में जब स्वतंत्रता सेनानी वंदेमातरम का नारा देते थे, पवित्र भाव के साथ देते थे, क्योंकि उस समय वंदेमातरम बोलने पर जेल की चोट मिलती थी, चुनाव की वोट नहीं मिलती थी। आज उस भाव को याद करने की जरूरत है।

आजाद भारत के 75 वर्ष: वंदेमातरम की गौरव गाथा

आज मगर आजाद हिंदुस्तान के 75वें वर्ष पर भी मैं कुछ कहना चाहूंगा। आज हम वंदेमातरम का उद्घोष कर रहे हैं, तो पिछले 75 वर्ष के आजादी की गौरव गाथा को भी हम याद कर रहे हैं।

वंदेमातरम, क्योंकि पिछले 75 वर्ष में हम भारत मां की संतानों ने विंस्टन चर्चिल जैसे उन लोगों को गलत साबित किया जो कहते थे हिंदुस्तान में इतनी अनेकताएं हैं कि टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा, देश एक नहीं रहेगा।

लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहब अंबेडकर और सरदार पटेल ने जो देश की नींव रखी, उस नींव पर चलकर देश 75 साल में एक भी रहा।

देश ने अपितु अपने में सिक्किम जैसे देश को एक तरफ मिलाया, तो गोवा से पुर्तगालियों को भगाने का काम किया। इसीलिए वंदेमातरम।

पाकिस्तान का विभाजन और वैश्विक पहचान

वंदेमातरम इसलिए कि वंदेमातरम के विरोध करने वाले मोहम्मद अली जिन्ना के पाकिस्तान को दो टुकड़े करके हिंदुस्तान ने दुनिया के भूगोल को बदलने का काम किया। इसीलिए वंदेमातरम। वंदेमातरम इसीलिए आज विश्व की सबसे बड़ी लोकतंत्र अगर कहीं है आज तक के इतिहास में, तो भारतवर्ष है। इसीलिए वंदेमातरम।

अर्थव्यवस्था और कृषि में प्रगति

वंदेमातरम देश दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था। वंदेमातरम देश आजादी के समय 30 करोड़ देशवासियों को बाहर से अनाज आयात करके पेट भरना पड़ता था, उस देश के किसान ने आज 140 करोड़ देशवासियों का पेट भी भरने का काम किया है। हमारे गोदामों को भरने का भी काम किया है। इसीलिए वंदेमातरम।

सैन्य शक्ति और युवा राष्ट्र

वंदेमातरम इसीलिए देश जो देश की फौज, जय हिंद की सेना, जो दुनिया की सर्वश्रेष्ठ सेना है, उस सेना ने कभी भारत माता का शीश झुकने नहीं दिया। इसीलिए वंदेमातरम। वंदेमातरम हम क्योंकि सबसे प्राचीन सभ्यता है, मगर सबसे युवा देश है, ओल्डेस्ट सिविलाइजेशन मगर यंगेस्ट नेशन। इसीलिए वंदेमातरम।

शिक्षा और विज्ञान में वैश्विक नेतृत्व

वंदेमातरम इसीलिए क्योंकि नेहरू जी के कार्यकाल में बने आईआईटी, आईआईएम, एम्स से निकले डॉक्टर और इंजीनियर दुनिया के जब कोने-कोने में गए, तो पूरी दुनिया ने माना कि सबसे सर्वश्रेष्ठ अगर डॉक्टर इंजीनियर कहीं से आए हैं, प्रोफेशनल आए हैं, तो वह हिंदुस्तान के माने गए।

इसीलिए वंदेमातरम। वंदेमातरम इसीलिए जो इसरो बनाई गई, उस इसरो के माध्यम से अमेरिका के मुकाबले 20% ही बजट में हमारा मंगलयान मास पहुंच गया। इसीलिए वंदेमातरम।

आंतरिक चुनौतियों पर विजय

वंदेमातरम इसीलिए देश के सामने जो आंतरिक चुनौतियां आईं पिछले 75 साल में, अलगाववादी ताकतें, आतंकवादी ताकतें, उन्होंने जब सर उठाया, तो हमने जो कुर्बानी देनी थी, लाखों लोगों ने कुर्बानी दी। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी ने भी अपनी जान की कुर्बानी दी, राजीव गांधी जी ने भी अपनी जान की कुर्बानी दी, लेकिन इन आतंकवादी अलगाववादी विचारधाराओं को पनपने नहीं दिया और देश को एकजुट रखा। आज भी भारत माता एक है। इसीलिए वंदेमातरम।

वंदेमातरम इसीलिए कोई चाहे न चाहे, इस देश को आगे ले जाने में सबका योगदान था, सबका योगदान है और सबका योगदान रहेगा। भारत माता सबकी थी, भारत माता सबकी है, भारत माता सबकी रहेगी। इसीलिए वंदेमातरम, वंदेमातरम, वंदेमातरम।

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