Jodhpur, Rajasthan: JDA ने महिला को बना दिया पुरुष: 14 साल बाद मिला प्लॉट और मुआवजा

JDA ने महिला को बना दिया पुरुष: 14 साल बाद मिला प्लॉट और मुआवजा
सैनिक विधवा को 14 साल बाद मिला न्याय
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Highlights

  • सैनिक विधवा समद कंवर को 14 साल बाद मिली राहत।
  • जेडीए ने कंप्यूटर रिकॉर्ड में महिला को पुरुष बना दिया था।
  • राज्य उपभोक्ता आयोग ने प्लॉट और 30,000 रुपये मुआवजे का आदेश दिया।
  • जिला आयोग के तकनीकी आधार पर शिकायत खारिज करने के फैसले को पलटा।

जोधपुर: राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (Rajasthan State Consumer Dispute Redressal Commission) की जोधपुर बेंच (Jodhpur Bench) ने सैनिक की विधवा समद कंवर (Samad Kanwar) को 14 साल बाद बड़ी राहत दी है। JDA (Jodhpur Development Authority) ने उन्हें गलत नाम से पुरुष बना दिया था, अब आयोग ने प्लॉट और 30,000 रुपये मुआवजे का आदेश दिया।

यह मामला जोधपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) की एक गंभीर लापरवाही से जुड़ा है, जिसने एक सैनिक की विधवा को 14 साल तक न्याय के लिए भटकने पर मजबूर कर दिया। आयोग ने इस मामले में जिला आयोग के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें शिकायत को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया था।

जेडीए की बड़ी लापरवाही: महिला को बना दिया पुरुष

जैसलमेर के पोकरण तहसील के ग्राम एका निवासी समद कंवर, जो भूतपूर्व सैनिक स्व. दलपत सिंह की पत्नी हैं, ने साल 2011 में जेडीए की विवेक विहार आवासीय योजना में सैनिक कोटे (विधवा श्रेणी) में आवेदन किया था। 9 सितंबर 2011 को लॉटरी निकली, जिसमें उनका चयन भी हो गया और उन्हें सेक्टर 'एम' में प्लॉट नंबर 671 आवंटित हुआ।

हालांकि, जेडीए के कर्मचारियों ने कंप्यूटर रिकॉर्ड में 'समद कंवर' की जगह पुरुष का नाम 'समंदर सिंह भाटी' लिख दिया। इस लिपिकीय त्रुटि ने उनकी परेशानियों की शुरुआत कर दी, जो अगले 14 साल तक जारी रहीं।

14 साल तक भटकती रही सैनिक की विधवा

समद कंवर ने अपनी गलती सुधारने के लिए 10 सितंबर 2011 को ही जेडीए में आवेदन दे दिया था। लेकिन, जेडीए ने न तो नाम सुधारा और न ही उन्हें आवंटन पत्र जारी किया।

इस लापरवाही के चलते महिला को 14 साल तक अपने आवंटित प्लॉट के लिए जेडीए के चक्कर काटने पड़े।

जिला उपभोक्ता आयोग में मिली निराशा

आखिरकार, जेडीए की निष्क्रियता से परेशान होकर समद कंवर ने 9 सितंबर 2022 को जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, जोधपुर द्वितीय में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने अपनी शिकायत में बताया कि जेडीए ने लिपिकीय त्रुटि सुधारने से इनकार कर दिया और अलॉटमेंट लेटर भी जारी नहीं किया।

जिला उपभोक्ता आयोग ने 4 अप्रैल 2024 को उनकी शिकायत को 'परिसीमा' (समय सीमा) के आधार पर खारिज कर दिया। हालांकि, आयोग ने यह माना कि लॉटरी द्वारा भूखंड का अलॉटमेंट होने के बाद जेडीए ने उस अलॉटमेंट को मनमाना, नाजायज और विधि विरुद्ध तरीके से निरस्त किया है।

राज्य उपभोक्ता आयोग ने पलटा फैसला, दी बड़ी राहत

समद कंवर ने जिला आयोग के फैसले के खिलाफ राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग की जोधपुर बेंच में अपील दायर की। आयोग के न्यायिक सदस्य सुरेंद्र सिंह और सदस्य लियाकत अली ने इस अपील पर सुनवाई की।

उन्होंने जिला आयोग के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें शिकायत को तकनीकी आधार पर खारिज किया गया था, और समद कंवर को बड़ी राहत प्रदान की।

अपीलकर्ता के वकील के तर्क

समद कंवर के वकील लक्ष्मीनारायण बिस्सा ने अपीलार्थी की ओर से सशक्त तर्क प्रस्तुत किए। उन्होंने समान तथ्यों के आधार पर राजस्थान स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट कमीशन की सर्किट बेंच जोधपुर द्वारा 'उग्मा देवी बनाम जोधपुर विकास प्राधिकरण' मामले में 11 मई 2022 को दिए गए फैसले का हवाला दिया।

उस मामले में, इसी आवासीय योजना में प्लॉट नंबर 699 परिवादी को दो माह में देने का आदेश दिया गया था। वकील ने यह भी तर्क दिया कि शिकायत को परिसीमा के आधार पर खारिज नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि 'वादकारण' (Cause of Action) लगातार चल रहा है।

इस तर्क के समर्थन में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की सिविल अपील 'समृद्धि कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम मुंबई महालक्ष्मी कंस्ट्रक्शन प्रा. लि.' में 11 जनवरी 2022 को पारित निर्णय भी पेश किया।

जेडीए के बचाव और आयोग का खंडन

जेडीए ने आयोग में तर्क दिया कि शिकायतकर्ता के पति की मृत्यु सेना से रिटायर होने के बाद हुई थी, जबकि आरक्षण केवल युद्ध में शहीद सैनिकों की विधवाओं के लिए था। इसके अलावा, जेडीए ने यह भी कहा कि शिकायत 2 साल की समय सीमा के भीतर पेश नहीं की गई, इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए।

राज्य आयोग ने जेडीए के इन तर्कों को सिरे से खारिज कर दिया। आयोग ने स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्त सैनिक की विधवा को भी सैनिक आरक्षण कोटे के लिए योग्य अभ्यर्थी माना जाना चाहिए।

तकनीकी आधार पर न्याय नहीं रोका जा सकता

आयोग ने जेडीए के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि जेडीए को सिर्फ तकनीकी आधार पर समय सीमा के मुद्दे पर शिकायत को खारिज नहीं करना चाहिए था। आयोग ने यह भी कहा कि परिवादी (समद कंवर) ने जानबूझकर शिकायत में देरी नहीं की थी।

राज्य आयोग ने जेडीए की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि समान मामले (उगमा देवी बनाम जेडीए) में पहले ही फैसला दिया जा चुका है। कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा था कि जिला उपभोक्ता आयोग को सिर्फ तकनीकी आधार पर समय सीमा के मुद्दे पर शिकायत को खारिज नहीं करना चाहिए।

'वादकारण' लगातार जारी रहा

आयोग ने कहा कि परिवादी ने जानबूझकर शिकायत में देरी नहीं की है, और जेडीए ने न तो नाम सुधारा और न ही पंजीकरण राशि लौटाई, इसलिए 'वादकारण' लगातार जारी है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर जेडीए को आवंटन रद्द करना था, तो उसे पंजीकरण राशि (5000 रुपए) लौटानी चाहिए थी।

बिना किसी कारण के राशि जब्त करना और नाम में सुधार न करना गलत है। यह जेडीए की ओर से सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार का स्पष्ट मामला था।

आयोग का अंतिम आदेश

राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने जेडीए को निर्देश दिया कि वह अपीलकर्ता समद कंवर को विवेक विहार योजना में आवंटित प्लॉट का आवंटन पत्र जारी करे। यदि वह प्लॉट उपलब्ध नहीं है, तो उसी योजना या समान योजना में उसी आकार का दूसरा प्लॉट 2011 की तत्कालीन दरों पर दिया जाए।

इसके साथ ही, आयोग ने जेडीए को 30,000 रुपए का हर्जाना देने का भी आदेश दिया है। यह फैसला 14 साल के लंबे संघर्ष के बाद सैनिक की विधवा के लिए एक बड़ी जीत है, जो उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा में आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।

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