बारां-अंता: कौन मारेगा बाजी?: बारां-अंता सीट: BJP या कांग्रेस, कौन है मजबूत दावेदार?

बारां-अंता सीट: BJP या कांग्रेस, कौन है मजबूत दावेदार?
Anta Vidhansabha Chunav
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Highlights

  • बारां-अंता हाड़ौती क्षेत्र की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है।
  • यह सीट भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है, लेकिन कांग्रेस भी यहाँ जीत चुकी है।
  • कंवर लाल मीणा ने भाजपा के लिए कई बार इस सीट पर जीत दर्ज की है।
  • उपचुनाव में स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवारों का चेहरा अहम भूमिका निभाएगा।

बारां: राजस्थान (Rajasthan) की बारां-अंता (Baran-Anta) विधानसभा सीट पर उपचुनाव का माहौल गर्म है। यह हाड़ौती (Hadoti) क्षेत्र की महत्वपूर्ण सीट है, जहाँ भाजपा (BJP) और कांग्रेस (Congress) के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है।

बारां-अंता सीट का राजनीतिक महत्व

बारां-अंता विधानसभा सीट राजस्थान के हाड़ौती संभाग की एक प्रमुख सीट है।

यह सीट राजनीतिक रूप से काफी संवेदनशील और महत्वपूर्ण मानी जाती है।

इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों का दबदबा रहा है, जिससे मुकाबला हमेशा रोचक होता है।

यहां के मतदाता स्थानीय मुद्दों और उम्मीदवारों की छवि पर विशेष ध्यान देते हैं।

सीट का इतिहास और प्रमुख चेहरे

इस सीट का इतिहास काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिसमें कई कद्दावर नेताओं ने प्रतिनिधित्व किया है।

भाजपा के कंवर लाल मीणा ने 2003, 2008 और 2013 के चुनावों में लगातार जीत हासिल कर अपनी मजबूत पकड़ बनाई थी।

हालांकि, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पानाचंद मेघवाल ने जीत दर्ज कर भाजपा के गढ़ में सेंध लगाई थी।

जनसंघ और भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत प्रताप सिंह सिंघवी भी इस सीट से 1977, 1990 और 1993 में विधायक रहे थे।

कांग्रेस के शिवनारायण सिंहवी ने 1980 और 1985 में इस सीट से जीत दर्ज की थी।

1998 में कांग्रेस के रामकिशोर मीणा ने भी यहां से विजय प्राप्त की थी।

प्रताप सिंह सिंघवी के पुत्र दिग्विजय सिंह अब कांग्रेस में सक्रिय हैं, जो राजनीतिक समीकरणों को और दिलचस्प बनाते हैं।

भाजपा का गढ़ या कांग्रेस की सेंध?

ऐतिहासिक रूप से, बारां-अंता सीट पर भाजपा का पलड़ा भारी रहा है, खासकर 2003 के बाद से।

भाजपा ने इस सीट पर कुल पांच बार (1990, 1993, 2003, 2008, 2013) जीत हासिल की है।

वहीं, कांग्रेस ने भी चार बार (1980, 1985, 1998, 2018) इस सीट पर कब्जा किया है, जो उसकी मजबूत उपस्थिति को दर्शाता है।

यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि कांग्रेस भी इस सीट पर अपनी पकड़ मजबूत करने में सफल रही है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।

वर्तमान उपचुनाव दोनों ही दलों के लिए न केवल प्रतिष्ठा का प्रश्न है, बल्कि आगामी बड़े चुनावों के लिए एक महत्वपूर्ण लिटमस टेस्ट भी है।

उपचुनाव में अहम मुद्दे और समीकरण

इस उपचुनाव में स्थानीय विकास के मुद्दे सबसे ऊपर रहेंगे, जिनमें पानी, बिजली, सड़क और शिक्षा प्रमुख हैं।

बेरोजगारी और कृषि संबंधी चुनौतियां भी मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं।

उम्मीदवारों का व्यक्तिगत प्रभाव, उनकी लोकप्रियता और क्षेत्र में उनकी सक्रियता जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

दोनों प्रमुख दल मतदाताओं को लुभाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं और सघन प्रचार अभियान चला रहे हैं।

क्षेत्रीय समीकरण और जातिगत गणित भी चुनाव परिणामों को काफी हद तक प्रभावित कर सकते हैं, जिस पर दोनों दल बारीकी से नजर रख रहे हैं।

युवा मतदाता और महिला मतदाता भी इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

आगे की राह और राजनीतिक निहितार्थ

बारां-अंता का उपचुनाव आगामी विधानसभा चुनावों का एक महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है।

यह चुनाव राजस्थान की राजनीति में एक नई दिशा तय कर सकता है और दलों के मनोबल को प्रभावित करेगा।

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इस सीट को जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि इसका परिणाम दूरगामी प्रभाव डालेगा।

मतदान से पहले और बाद में राजनीतिक सरगर्मियां तेज रहने की उम्मीद है, जिसमें आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शामिल होगा।

परिणाम जो भी हो, बारां-अंता सीट राजस्थान की राजनीतिक बिसात पर अपनी अहमियत हमेशा बनाए रखेगी।

इस सीट का नतीजा यह भी बताएगा कि जनता का रुझान किस दल की ओर अधिक है।

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