Highlights
- पूर्व CS निरंजन आर्य ने दलितों से भेदभाव और जमीन पर कब्जे का मुद्दा उठाया.
- उन्होंने बताया कि उनके दादाजी की जमीन पर 40 साल से सवर्णों का कब्जा है.
- कार्यस्थल पर भी दलितों के साथ भेदभाव होने की बात कही.
- रिटायरमेंट के बाद वकील के बर्ताव में आए बदलाव का अनुभव साझा किया.
जयपुर. पूर्व मुख्य सचिव (Former Chief Secretary) निरंजन आर्य ने 21 सितंबर को जयपुर में दलितों से भेदभाव (discrimination) और जमीनों पर सवर्णों के कब्जे (encroachment by upper castes) का मुद्दा उठाया. उन्होंने अपने दादाजी की जमीन पर कब्जे का जिक्र किया.
कार्यस्थल पर भेदभाव के आरोप
निरंजन आर्य ने दलितों से भेदभाव का मुद्दा उठाया. उन्होंने जमीनों पर कब्जों की बात भी कही.
आर्य ने कहा कि एकता केवल भाषणों में दिखती है. यह किताबों और चर्चाओं तक ही सीमित है.
कार्यस्थल पर भी भेदभाव स्पष्ट देखा जा सकता है. यह एक गंभीर सामाजिक समस्या है.
फाइलों के आवंटन में पक्षपात होता है. सीटों और पदों पर भी भेदभाव किया जाता है.
किसको कौनसा पद मिलेगा, यह भी तय होता है. इंटरव्यू में भी यह भेदभाव दिखता है.
दादाजी की जमीन पर सवर्णों का कब्जा
आर्य ने अपने गांव रास, पाली का किस्सा बताया. यह उनके निजी जीवन का अनुभव है.
उनके दादाजी की जमीन पर कब्जा हो गया है. यह कब्जा पिछले 40 सालों से है.
सवर्ण समुदाय ने इस जमीन पर कब्जा कर रखा है. वे इसे खाली नहीं करवा पा रहे हैं.
वे पिछले एक साल से प्रयास कर रहे हैं. जमीन का कब्जा खाली नहीं हो पा रहा है.
यह बात उनके मुख्य सचिव बनने के बाद की है. आईएएस रहते हुए भी समस्या बनी रही.
गांव जाने पर किसी ने उन्हें बताया. यह जमीन उनके परिवार की है.
उनके दादा के समय से कब्जा है. शायद 50-100 रुपए उधार लिए थे.
वह जमीन आज तक कब्जे में बनी हुई है. यह एक बड़ा अन्याय है.
आर्य पांच जिलों में कलेक्टर रहे हैं. तब उनके सामने यह बात नहीं आई.
दलितों के व्यवसायों पर दूसरों का अधिकार
आर्य ने सफाई के काम का उदाहरण दिया. यह दलित समुदाय से जुड़ा है.
उनसे कहा जाता है कि यह उनका काम है. फिर नगर निगम ठेका क्यों देती है?
सफाई का कार्य दलित लोग ही कर रहे हैं. पर मालिक कोई और बन गया है.
उनके पास पैसा और उद्यमिता नहीं है. यह एक बड़ी चुनौती है.
उनके व्यवसायों पर दूसरों ने कब्जा कर लिया. वे सिर्फ मजदूर बनकर रह गए हैं.
वकील के व्यवहार में बदलाव का अनुभव
आर्य ने एक निजी अनुभव साझा किया. यह रिटायरमेंट के बाद का किस्सा है.
वे एक वकील के पास गए थे. वकील उच्च समुदाय से संबंधित थे.
रिटायर होने के कारण आधे नंबर कम हो गए थे. यह उनका मानना था.
पहले दिन वकील ने खूब आवभगत की. उन्होंने चाय और नाश्ता कराया.
वकील उन्हें बाहर तक छोड़ने भी आए. यह सम्मान का प्रतीक था.
दूसरी बार वकील ने उनसे रैंक पूछी. उन्होंने आईएएस में रैंक जानने की कोशिश की.
आर्य ने कहा कि रैंक का केस से क्या संबंध है? वे अब रिटायर हो चुके हैं.
उन्होंने अपनी 380वीं रैंक बताई. उन्होंने अंबेडकर के योगदान को याद किया.
इसके बाद वकील के बर्ताव में बदलाव आया. यह बदलाव दिन-रात का था.
अगली बार वकील उन्हें छोड़ने नहीं आए. यह भेदभाव का स्पष्ट संकेत था.
सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी
निरंजन आर्य के वीडियो पर बहस छिड़ी है. यह सोशल मीडिया पर वायरल हुआ.
एक पक्ष उनके समर्थन में है. दूसरा पक्ष उनके विचारों का खंडन कर रहा है.
कुछ यूजर्स ने सवाल उठाए हैं. वे जमीन पर कब्जे को लेकर चिंतित हैं.
मुख्य सचिव रहते हुए भी कब्जा क्यों नहीं हटा? यह एक बड़ा प्रश्न है.
कुछ यूजर्स ने इसे जातीय भेदभाव से जोड़ा है. यह एक संवेदनशील मुद्दा है.