Muslim Law: तलाक-ए-हसन ने बर्बाद की जिंदगी, काजी बोला- कुत्ते की औलाद

तलाक-ए-हसन ने बर्बाद की जिंदगी, काजी बोला- कुत्ते की औलाद
तलाक-ए-हसन: हिना-जरीना की दर्दभरी दास्तान
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Highlights

  • तलाक-ए-हसन से परेशान हिना और जरीना जैसी कई महिलाओं की आपबीती।
  • दहेज और घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने पर मिला एकतरफा तलाक।
  • शरिया कानून के नियमों का उल्लंघन कर दिए गए तलाक पर काजी ने कहे अपशब्द।
  • सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन के खिलाफ जनहित याचिका दाखिल।

नई दिल्ली: झारखंड (Jharkhand) की हिना (Hina) और मुंबई (Mumbai) की जरीना (Zarina) जैसी मुस्लिम महिलाएं तलाक-ए-हसन (Talaq-e-Hasan) से परेशान हैं। दहेज-हिंसा के खिलाफ बोलने पर उन्हें एकतरफा तलाक मिला, जिसमें शरिया कानून का उल्लंघन हुआ। शिकायत पर काजी ने उन्हें अपशब्द कहे।

भारत में तीन तलाक पर प्रतिबंध लगने के बाद अब मुस्लिम महिलाएं एक नए और जटिल संकट से जूझ रही हैं। यह संकट 'तलाक-ए-हसन' का है, जिसने कई जिंदगियों को अनिश्चितता और दर्द के भंवर में धकेल दिया है।

दैनिक भास्कर ने ऐसी ही दो महिलाओं, हिना और जरीना, से बात की, जिनकी आपबीती दिल दहला देने वाली है। इन महिलाओं को दहेज और घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने की कीमत अपनी शादी, सम्मान और भविष्य खोकर चुकानी पड़ी है।

तलाक-ए-हसन: एकतरफा तलाक का नया चेहरा और उसकी जटिलताएं

हिना और जरीना, दोनों ही एकतरफा तलाक-ए-हसन का शिकार हुई हैं। उनके पतियों ने उन्हें सीधे तलाक का खत भेज दिया, जबकि इस्लामी शरिया कानून के तहत तलाक-ए-हसन की कुछ विशिष्ट शर्तें होती हैं, जिनका पालन नहीं किया गया।

इन महिलाओं को न तो कोई सुलह का नोटिस मिला, न ही तलाक की प्रक्रिया में उनकी राय ली गई। तलाक के बाद उन्हें न तो कोई मेंटेनेंस मिला और न ही मेहर की रकम की बात की गई, जिससे वे आर्थिक रूप से भी कमजोर पड़ गईं।

उनकी शिकायतें अनसुनी कर दी गईं, और उन्हें न्याय के लिए सरकारी दफ्तरों और अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। यह स्थिति मुस्लिम महिलाओं के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है।

हिना की दर्दभरी दास्तान: 'कुत्ते की औलाद' कहकर अपमानित किया गया

झारखंड की रहने वाली 36 वर्षीय हिना की शादी 2015 में हुई थी। शादी के तीन साल बाद, 2018 में, उन्हें खत के जरिए तलाक-ए-हसन दे दिया गया, जबकि इस बीच उनकी एक प्यारी सी बेटी भी हुई थी।

हिना 2018 से ही इस एकतरफा तलाक के खिलाफ कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं। उनका स्पष्ट आरोप है कि यह तलाक शरिया कानून के मुताबिक नहीं हुआ है और इसमें कई नियमों का उल्लंघन किया गया है।

काजी का अपमानजनक जवाब और क्षेत्राधिकार का गंभीर सवाल

तलाक के बाद, हिना ने तलाक कराने वाले काजी हकीम अब्दुल अजीज से संपर्क किया। उन्होंने काजी से यह जानने की कोशिश की कि जब वे और उनके पति दोनों झारखंड के रहने वाले हैं, तो उनका तलाक पश्चिम बंगाल के कोलकाता से कैसे करवा दिया गया, जबकि उनका कानूनी क्षेत्राधिकार कोलकाता नहीं है।

इस सीधे सवाल पर काजी हकीम भड़क गए और हिना को 'तुम कुत्ते की औलाद हो, जाओ कोर्ट में अपने बाप के पास जाकर ठीक करवा लो' जैसे बेहद अपमानजनक और अमानवीय अपशब्द कहे। यह घटना हिना के लिए मानसिक रूप से बेहद आघात पहुँचाने वाली थी।

हिना बताती हैं कि उनके पति दिल्ली में नौकरी करते थे और वे भी उनके साथ दिल्ली में ही रहती थीं। लेकिन तलाक का जो खत उन्हें मिला, उस पर पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता की मशहूर राइटर्स बिल्डिंग का पता लिखा था।

यह बात हिना को हैरान कर गई कि जब दोनों झारखंड के निवासी हैं और दिल्ली में रह रहे थे, तो तलाक का खत कोलकाता से कैसे आ सकता है। यह न केवल प्रक्रिया की वैधता पर गंभीर सवाल उठाता है, बल्कि इसमें धोखाधड़ी की आशंका भी पैदा करता है।

शरिया कानून की शर्तों का खुला उल्लंघन: एकतरफा तलाक की अवैधता

हिना का कहना है कि तलाक-ए-हसन की चार मुख्य और अनिवार्य शर्तें होती हैं, जो उनके तलाक में से एक भी पूरी नहीं की गईं। इन शर्तों का पालन न होने के कारण, हिना इस तलाक को पूरी तरह से अवैध और गैर-इस्लामी मानती हैं।

  • सुलह का नोटिस: इस्लामी कानून के अनुसार, पति-पत्नी के बीच सुलह के लिए पहले एक नोटिस भेजा जाता है। इस नोटिस में पत्नी को पति से सुलह करने या तलाक का सामना करने के लिए कहा जाता है। हिना को ऐसा कोई नोटिस कभी नहीं मिला, जिससे सुलह का कोई अवसर ही नहीं मिला।
  • गलत क्षेत्राधिकार: हिना और उनके पति का कानूनी क्षेत्राधिकार झारखंड है, लेकिन तलाक के पेपर में कोलकाता का पता था। हिना ने जब जांच की, तो पता चला कि कोलकाता का वह काजी भी रजिस्टर्ड नहीं था, जिसने कथित तौर पर तलाक करवाया था। यह प्रक्रिया की कानूनी वैधता को संदिग्ध बनाता है।
  • तीन महीने साथ रहने की शर्त: तलाक-ए-हसन में पति-पत्नी को तीन महीने तक एक ही छत के नीचे रहना होता है। इस अवधि का उद्देश्य सुलह की संभावना को बनाए रखना और आपसी मतभेदों को दूर करना है। हिना के मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। उन्हें सीधे तलाक का खत भेज दिया गया, जिससे सुलह का हर रास्ता बंद हो गया।
  • हस्ताक्षर की वैधता: तलाक के खत में नाम हिना के पति का था, लेकिन उस पर उनके ससुर ने हस्ताक्षर किए थे। हिना का सवाल है कि अगर तलाक पति दे रहा है, तो हस्ताक्षर भी उसी के होने चाहिए। यह दर्शाता है कि तलाक की प्रक्रिया में पति की सीधी भागीदारी नहीं थी, जो इसे और भी संदिग्ध बनाता है।

बेटी की अनदेखी और मेंटेनेंस का अभाव: भविष्य पर मंडराता संकट

हिना बताती हैं कि जब उनके पति ने उन्हें तलाक दिया, तब उनकी बेटी केवल दो साल की थी। लेकिन तलाक के पेपर में बेटी का जिक्र तक नहीं था, जैसे कि उसका अस्तित्व ही न हो।

उल्टे, पेपर में यह लिखा था कि उनके और उनकी पत्नी के बीच कोई संबंध नहीं थे, जो कि पूरी तरह से गलत और अपमानजनक था। यह उनके पति द्वारा बेटी की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का एक निंदनीय प्रयास था।

कोर्ट ने हिना के पक्ष में मेंटेनेंस का ऑर्डर भी पास कर दिया है, जिसमें पति को हर महीने 10 हजार रुपये देने का निर्देश दिया गया है। बावजूद इसके, हिना को अब तक एक पैसा भी नहीं मिला है।

आज तक करीब 9 लाख रुपये का मेंटेनेंस बकाया हो चुका है, लेकिन पति ने भुगतान नहीं किया है। यह स्थिति हिना और उनकी बेटी के लिए आर्थिक रूप से बेहद चुनौतीपूर्ण है।

मुख्यमंत्रियों और राज्यपाल से शिकायत, फिर भी कोई सुनवाई नहीं

हिना ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दफ्तर में कई पत्र भेजे। उन्होंने बताया कि उनके पति ने तलाक के लिए एक गैर-पंजीकृत काजी का इस्तेमाल किया है और उनके राज्य के नाम का दुरुपयोग किया है, लेकिन उन्हें वहां से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला।

राज्यपाल कार्यालय में भी पत्र भेजा गया, जहां से हिना को एक अजीबोगरीब जवाब मिला। उन्हें बताया गया कि मुख्यमंत्री उनकी बात नहीं सुनती हैं और उन्होंने उनका पत्र आगे भेज दिया है, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

हिना कहती हैं कि यह हद है कि एक व्यक्ति बंगाल के सबसे मशहूर प्रशासनिक भवन, राइटर्स बिल्डिंग, के पते का दुरुपयोग कर उन्हें तलाक भेज रहा है। इस गंभीर मामले पर मुख्यमंत्री की चुप्पी और राज्यपाल का ऐसा अजीब जवाब आता है।

जबकि लेटर भेजने वाले का आधार कार्ड दिल्ली का है और घर झारखंड में है, बंगाल से उसका कोई वास्तविक नाता नहीं है। हिना उस काजी पर भी सख्त कार्रवाई की मांग करती हैं, जिसने यह गैर-शरीयत वाला झूठा तलाक करवाया।

हिना खुद दो बार कोलकाता गईं और न्याय के लिए दर-दर भटकीं। उनकी वकील ऋतु दुबे ने बंगाल के लॉ सेक्रेटरी सलीम अंसारी को नोटिस भेजा था। जब हिना अंसारी से मिलीं, तो उन्होंने बेपरवाही से कहा कि ऐसे नोटिस तो वे कचरे के डिब्बे में डाल देते हैं।

यह दर्शाता है कि कैसे प्रशासनिक स्तर पर भी इन महिलाओं की समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है, जिससे न जाने कितनी औरतों की जिंदगी तबाह हो रही है और उन्हें कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।

दहेज और घरेलू हिंसा का परिणाम: जबरन तलाक और उत्पीड़न

हिना बताती हैं कि उनके पति दिल्ली में एक फ्लैट लेना चाहते थे और उन पर अपने पिता से 5 लाख रुपये मांगने का लगातार दबाव डालते थे। जबकि उनके पिता पहले ही शादी में काफी दहेज दे चुके थे।

दहेज की लगातार मांग और शारीरिक व मानसिक मारपीट से परेशान होकर हिना ने आखिरकार 2017 में घरेलू हिंसा का केस दर्ज करवाया। इसके जवाब में, 2018 में उनके पति ने उन्हें तलाक भेज दिया, जो एक तरह से बदला लेने जैसा था।

केस दर्ज होने से पहले तक हिना अपने पति के साथ दिल्ली में ही थीं। केस के बाद, पति ने उन्हें जबरदस्ती झारखंड भेज दिया, जिससे वे अपने ससुराल से दूर हो गईं। अब वे कोर्ट के आदेश के बाद अपने ससुराल के पैतृक घर पर रह रही हैं, लेकिन वहां भी उन्हें शांति नहीं मिल रही है।

घरेलू हिंसा के केस में उनके पति ने अपील की थी, लेकिन वह रद्द हो गई। अब हिना के पति और सास-ससुर के खिलाफ वारंट निकला है और तीनों फरार हैं, जिससे हिना की कानूनी लड़ाई और भी लंबी हो गई है।

जरीना की आपबीती: धोखे, कई शादियों और परित्याग का दर्द

हिना की तरह ही मुंबई की रहने वाली जरीना की कहानी भी बेहद दर्दनाक और चौंकाने वाली है। उनकी शादी अहमद महबूब शेख से हुई थी, जिसका परिवार तमिलनाडु के मदुरई में रहता है।

जरीना बताती हैं कि उनके पति ने उनसे झूठ बोलकर दूसरी शादी की थी। उन्होंने जरीना से कहा था कि उनकी पहली पत्नी की मौत हो गई है, जबकि वह जिंदा थीं। यह उनके रिश्ते की शुरुआत ही धोखे से हुई थी।

दहेज की अंतहीन मांग और मायके में परित्याग

जरीना के पिता ने निकाह में 2 लाख रुपये का दहेज और कुछ जरूरी सामान दिया था। लेकिन कुछ ही दिनों बाद, ससुराल वालों ने और दहेज की मांग शुरू कर दी, जिससे जरीना और उनका परिवार परेशान हो गया।

जब जरीना गर्भवती हुईं, तो उन्हें डिलीवरी के बहाने उनके मायके मुंबई भेज दिया गया। उनका बेटा हुआ, लेकिन कुछ महीनों बाद जब उनके पिता ने ससुराल में फोन किया कि बेटी और नाती को ले जाएं, तो उन्होंने साफ मना कर दिया।

जरीना के मायके में रहते हुए भी ससुराल वालों की दहेज की मांग लगातार जारी थी। उनके पिता लगातार ससुराल वालों को कुछ न कुछ भेजते रहते थे, लेकिन फिर भी उन्हें वापस नहीं बुलाया गया।

यह स्थिति जरीना और उनके परिवार के लिए बेहद तनावपूर्ण और आर्थिक रूप से बोझिल थी, क्योंकि उन्हें अपनी बेटी और नाती का खर्च भी उठाना पड़ रहा था।

पति की तीसरी, चौथी और पांचवीं शादी की तैयारी: एक क्रूर धोखा

जरीना बताती हैं कि जब वे अपने पति को फोन करती थीं, तो उन्हें गंदी गालियां दी जाती थीं और उनका अपमान किया जाता था। कई महीने गुजर गए, तो वे अपने दुधमुंहे बेटे के साथ हिम्मत करके चेन्नई पहुंच गईं।

ससुराल वालों ने किसी भी तरह के बवाल से बचने के लिए उन्हें एक किराए के घर में अकेला रख दिया। जरीना करीब तीन महीने तक ऐसे घर में रहीं, जहां बिजली तक नहीं थी, अपने छोटे बच्चे के साथ वे बेहद मुश्किल में थीं।

उनके मकान मालिक को तरस आया और उन्होंने ससुराल वालों को फोन किया। उन्होंने धमकी दी कि अगर वे जरीना को नहीं ले जाते, तो वे पुलिस को सूचित कर देंगे।

इस धमकी से डरकर, ससुराल वाले उन्हें उनके पति के पास लखनऊ भेज दिया। वहां जाकर जरीना को एक और बड़ा सदमा लगा, उन्हें पता चला कि उनके पति ने तीसरी शादी कर ली थी।

लखनऊ में भी जरीना को अलग रखा गया और उन्हें मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाने लगा। तीसरी शादी का पता चले कुछ ही महीने हुए थे कि उनके पति ने बिना किसी को तलाक दिए चौथी शादी भी कर ली।

इतना ही नहीं, वे पांचवीं शादी के लिए मैट्रिमोनियल साइट पर 'डायवोर्सी' का स्टेटस लगाकर प्रोफाइल भी बना चुके थे। एक दिन वे जरीना को लेकर चेन्नई लौट गए और वहां उन्हें जान से मारने की धमकी देने लगे, जिससे जरीना बेहद डर गईं।

तलाक का खत और मुफ्ती का फतवा: न्याय की उम्मीद का टूटना

चेन्नई में जरीना ने अपने पति के खिलाफ मजिस्ट्रेट के पास शिकायत दर्ज की। पुलिस ने उन्हें मायके जाने की सलाह दी और कहा कि यहां उन्हें खतरा है, तब तक वे कार्रवाई करेंगे।

जरीना अपने मायके मुंबई आ गईं। वहां एक दिन उन्हें सादे कागज पर पोस्ट के जरिए तलाक का खत मिला। तलाक की वजह उनका 'कैरेक्टर लेस' होना बताया गया, जो पूरी तरह से निराधार था।

तीन महीने बाद, मदरसा नदवा के मुफ्ती ने उन्हें फतवा भेजा और कहा कि उनका तलाक हो चुका है। यह फतवा जरीना के लिए एक और बड़ा झटका था, क्योंकि उन्हें अपनी बात रखने का कोई मौका ही नहीं मिला था।

जरीना ने पुलिस से मदद मांगी, लेकिन पुलिस ने साफ कह दिया कि ऐसे मामलों के लिए कोई कानून नहीं है और वे कुछ नहीं कर सकते। यह जवाब उनके लिए बेहद निराशाजनक था।

दूसरी तरफ, मुफ्ती ने कहा कि फतवा टाला नहीं जा सकता, क्योंकि तलाक हो गया है। जब जरीना ने कहा कि उनके चरित्र पर सवाल उठाया गया है, जबकि इसका कोई सबूत नहीं है और उनसे कुछ पूछा तक नहीं गया, तब मुफ्ती ने कहा कि पूछने की जरूरत नहीं है।

यह स्थिति मुस्लिम महिलाओं को न्याय से वंचित करती है और उन्हें अपनी आवाज उठाने का कोई अवसर नहीं देती।

इस्लामिक विद्वानों और कानूनी विशेषज्ञों की राय: एक जटिल बहस

इन मामलों पर इस्लामिक विद्वानों और कानूनी विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है, जो इस जटिल मुद्दे को और भी गहरा बनाती है और समाज में एक बड़ी बहस छेड़ती है।

इस्लामिक स्कॉलर शेख निजामुद्दीन: कुरान के नाम पर फर्जीवाड़ा

इस्लामिक स्कॉलर शेख निजामुद्दीन कहते हैं कि कुरान के नाम पर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। वे स्पष्ट करते हैं कि एकतरफा तलाक का जिक्र कुरान या हदीस में कहीं भी नहीं है।

तलाक दो लोगों के बीच आपसी सहमति और सुलह से होता है, ठीक वैसे ही जैसे निकाह दो लोगों की मर्जी से होता है। यह आपसी सम्मान और समझ का मामला है, न कि एकतरफा फरमान का।

तीन तलाक तो अब गैरकानूनी है, लेकिन तलाक-ए-हसन को शरीयत लीगल करार देती है। हालांकि, शेख निजामुद्दीन जोर देते हैं कि यह भी दोनों की मर्जी से और सही प्रक्रिया के तहत होता है।

जब पति-पत्नी के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो जाए, तो नियम कहता है कि पहले पंच या मस्जिद के जिम्मेदार लोग या अब अदालत में सुलह की कोशिश करवाई जाती है।

अगर तब भी बात न बने, तो तीन महीने तक पति-पत्नी साथ रहते हैं। इस अवधि में हर महीने में एक बार तलाक दिया जाता है, यानी तीन माह में तीन बार।

इसमें यह ध्यान रखा जाता है कि इस दौरान गर्भ नहीं ठहरना चाहिए। शेख निजामुद्दीन बताते हैं कि कई बार ऐसा होता है कि इन तीन महीनों में मामला खुद-ब-खुद सुलझ जाता है, क्योंकि उन्हें सोचने और समझने का समय मिलता है।

शेख निजामुद्दीन जोर देते हैं कि कुरान में फोन, लेटर, वॉट्सएप या ईमेल जैसे आधुनिक माध्यमों से दिए गए तलाक का तो कोई जिक्र तक नहीं है। इस तरह से दिया गया तलाक वैसे भी गैरकानूनी है और शरीयत के सिद्धांतों के खिलाफ है, क्योंकि यह सुलह के अवसर को समाप्त कर देता है।

सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका: न्याय बोध संस्था का महत्वपूर्ण प्रयास

न्याय बोध नाम की संस्था की वकील ऋतु दुबे बताती हैं कि उन्होंने तलाक-ए-हसन के सात गंभीर मामलों की एक जनहित याचिका (PIL) सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है।

हिना बेनजीर का मामला भी पहले उनके पास था और करीब 8-9 अन्य मामले अभी लाइन में हैं, जो अभी दाखिल नहीं किए गए हैं, लेकिन जल्द ही उन्हें भी कोर्ट में पेश किया जाएगा।

ऋतु दुबे कहती हैं कि तलाक-ए-हसन का सबसे बुरा और अमानवीय पक्ष यह है कि बिना औरत की मर्जी के, उसकी सहमति के बिना तलाक दे दिया जाता है। बच्चे का जिक्र तो ससुराल वाले तलाक में करते ही नहीं हैं, जिससे बच्चों का भविष्य भी अंधकारमय हो जाता है।

मेंटेनेंस भी अधर में लटका रहता है, जिससे महिलाओं और बच्चों का जीवन बेहद मुश्किल हो जाता है।

19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-हसन का नाम लेकर एक जर्नलिस्ट हिना बेनजीर के हक में फैसला सुनाया था। इस ऐतिहासिक फैसले से हिना और जरीना जैसी अन्य पीड़ित महिलाओं में भी न्याय की एक नई उम्मीद जगी है।

यह फैसला एक महत्वपूर्ण कदम है, जो तलाक-ए-हसन के दुरुपयोग को रोकने और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने में मदद कर सकता है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड: तलाक-ए-हसन एक बेहतर तरीका?

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के प्रवक्ता एस क्यू आर इलियासी इन मामलों को लेकर एक अलग राय रखते हैं। वे कहते हैं कि तलाक-ए-हसन, तलाक का एक बेहतर और शरीयत सम्मत तरीका है।

पति-पत्नी में विवाद होने की स्थिति में सुलह के लिए पहले कुछ कदम उठाए जाते हैं, जैसे शुरुआत में दोनों के बिस्तर अलग कर दिए जाते हैं, ताकि वे साथ न सोएं और कोई संबंध न बने।

फिर दोनों पक्षों के जिम्मेदार लोग सुलह की कोशिश करते हैं। कोई हल न निकलने पर तीन महीने की तलाक-ए-हसन की प्रक्रिया शुरू होती है। इन तीन महीनों को 'इद्दत' कहते हैं, जो एक निर्धारित अवधि है।

हर महीने में एक बार तलाक बोलना होता है। तीसरे महीने में तलाक बोलने पर निकाह टूट जाता है, जिससे तलाक की प्रक्रिया पूरी होती है।

इलियासी बताते हैं कि अगर इस प्रक्रिया के बीच किसी भी महीने पति-पत्नी के बीच संबंध बन जाए, तो फिर तलाक रद्द हो जाता है। यह सुलह का एक अवसर प्रदान करता है और जल्दबाजी में लिए गए फैसलों को रोकता है।

हालांकि, इस तरह के तलाक में एक बार प्रक्रिया पूरी होने के बाद, वही दोनों मर्द उस औरत से दोबारा निकाह नहीं कर सकता है, जब तक कि वह किसी और से शादी करके तलाक न ले ले।

मेंटेनेंस पर AIMPLB की राय: इस्लाम में तलाक के बाद औरत हकदार नहीं

जब इलियासी से पूछा गया कि क्या तलाक के बाद बच्चे और पत्नी मेंटेनेंस की हकदार भी नहीं होते, तो उन्होंने एक विवादास्पद बयान दिया। उन्होंने कहा कि जब निकाह होता है, तो पति ही पत्नी की सारी जिम्मेदारी लेता है। बच्चा होने पर उसकी भी जिम्मेदारी लेता है।

लेकिन तलाक के साथ जिम्मेदारियां भी खत्म हो जाती हैं। इस्लाम में तलाक के बाद औरत किसी भी तरह के मेंटेनेंस की हकदार नहीं है, ऐसा उनका मानना है।

यह बयान उन महिलाओं के लिए और भी मुश्किल पैदा करता है, जो तलाक के बाद आर्थिक रूप से असहाय हो जाती हैं और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने में संघर्ष करती हैं।

यह कानूनी, सामाजिक और धार्मिक बहस का एक महत्वपूर्ण बिंदु है, जिस पर समाज में व्यापक चर्चा और सुधार की आवश्यकता है।

न्याय की उम्मीद और लंबी लड़ाई का आह्वान

हिना और जरीना जैसी महिलाओं की कहानियां इस बात का प्रमाण हैं कि तलाक-ए-हसन का दुरुपयोग किस तरह से मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी को तबाह कर रहा है।

दहेज, घरेलू हिंसा और एकतरफा तलाक के खिलाफ उनकी लड़ाई अभी जारी है, और वे न्याय की उम्मीद में संघर्ष कर रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जनहित याचिका और हिना बेनजीर के हक में आए फैसले से न्याय की एक नई उम्मीद जगी है। लेकिन इन महिलाओं को अभी भी एक लंबी और कठिन कानूनी लड़ाई लड़नी है।

यह आवश्यक है कि समाज, कानून और धार्मिक संस्थाएं मिलकर इस संवेदनशील मुद्दे का समाधान करें, ताकि किसी भी महिला को ऐसे अन्याय का सामना न करना पड़े।

महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर देना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। इस दिशा में ठोस कदम उठाना समय की मांग है।

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