Rajasthan: अरावली विनाश पर जूली का हमला, मंत्री को बताया 'धृतराष्ट्र'

अरावली विनाश पर जूली का हमला, मंत्री को बताया 'धृतराष्ट्र'
अरावली पर जूली का वार: मंत्री 'धृतराष्ट्र'
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Highlights

  • जूली ने पर्यावरण मंत्री को 'धृतराष्ट्र' कहा।
  • अरावली को खनन माफिया को सौंपने की साजिश का आरोप।
  • वन एक्ट में संशोधन से 90% अरावली खतरे में।
  • पूर्व सीएम गहलोत ने भी अरावली बचाओ मुहिम का समर्थन किया।

जयपुर: नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली (Tikaram Juli) ने अरावली (Aravalli) के संरक्षण को लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री (Union Environment Minister) पर हमला बोला है। उन्होंने मंत्री को 'धृतराष्ट्र' बताया और अरावली को खनन माफिया के हवाले करने की साजिश का आरोप लगाया। यह लड़ाई अब जन आंदोलन बनेगी।

अरावली को बर्बाद करना बर्दाश्त नहीं: जूली

नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने अरावली की ऊंचाई 100 मीटर से कम करने और इसके संरक्षण को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि अरावली के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। यह लड़ाई अब किसी दल विशेष की नहीं, बल्कि प्रदेश के अस्तित्व और हमारी आने वाली पीढ़ियों की सांसों को बचाने का सामाजिक धर्म है।

जूली ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री पर आरोप लगाते हुए कहा कि जिनके कंधों पर पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी है, वही आज विनाश की पटकथा लिख रहे हैं। उन्होंने मंत्री के अजमेर में शिक्षा ग्रहण करने और अलवर का प्रतिनिधित्व करने का जिक्र किया। ये दोनों ही क्षेत्र अरावली की गोद में बसे हैं और पुष्कर जैसे तीर्थों की रक्षा करते हैं।

मंत्री 'धृतराष्ट्र' बनकर देख रहे विनाश

जूली ने तल्ख लहजे में कहा कि मंत्री 'धृतराष्ट्र' बनकर अरावली का विनाश देख रहे हैं। क्या उन्हें अपनी ही मिट्टी और आने वाली पीढ़ी के भविष्य की चिंता नहीं है?

उन्होंने जोर देकर कहा कि अरावली हमारे लिए केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र है। यहां पांडुपोल हनुमानजी और राजा भर्तृहरि जैसे महान तीर्थ वास करते हैं।

90% अरावली को नीलाम करने की तैयारी

टीकाराम जूली ने केंद्र के फॉरेस्ट एक्ट और अरावली की परिभाषा में किए गए मनमाने संशोधनों पर गंभीर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इन संशोधनों से राजस्थान के लगभग 90 प्रतिशत पहाड़ संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगे। इसका सीधा अर्थ खनन माफिया के लिए रेड कारपेट बिछाना है।

जूली ने चेतावनी दी कि यदि 11 हजार से अधिक पहाड़ियों वाला यह प्राकृतिक रक्षा कवच टूट गया, तो थार के मरुस्थल को दिल्ली और पूर्वी राजस्थान तक पहुंचने से कोई नहीं रोक पाएगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2023 के संशोधनों के जरिए केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) जैसी स्वतंत्र निगरानी संस्थाओं को कमजोर कर दिया गया है।

इन संस्थाओं को पूरी तरह पर्यावरण मंत्रालय के अधीन कर दिया गया है। जूली ने आरोप लगाया कि स्वतंत्र आवाज को दबाकर सरकार अब अरावली जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में मनमाने फैसले ले रही है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।

राजनीतिक मतभेद भुलाकर अरावली बचाने एकजुट हों

जूली ने प्रदेशवासियों से अपील की कि वे राजनीतिक मतभेद भुलाकर अरावली बचाने के लिए एकजुट हों। उन्होंने कहा कि बुजुर्ग हमें हरे-भरे पहाड़ और कुएं सौंप कर गए थे, लेकिन आज हमारा लालच भू-जल को 1500 फीट नीचे ले गया है। अगर अब भी नहीं संभले, तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी।

उन्होंने घोषणा की कि यह लड़ाई अब केवल बयानों तक सीमित नहीं रहेगी। अरावली बचाओ अभियान को जनआंदोलन बनाना होगा। हम सरकार को इन विनाशकारी संशोधनों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर देंगे।

गहलोत भी अरावली बचाओ मुहिम के समर्थन में

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी 'अरावली बचाओ मुहिम' के समर्थन में उतर गए हैं। गहलोत ने कहा कि ये पहाड़ियां और यहां के जंगल एनसीआर और आस-पास के शहरों के लिए 'फेफड़ों' का काम करते हैं।

उन्होंने बताया कि ये धूल भरी आंधियों को रोकते हैं और प्रदूषण कम करने में अहम भूमिका निभाते हैं। गहलोत ने चेतावनी दी कि जब अरावली के रहते हुए स्थिति इतनी गंभीर है, तो अरावली के बिना स्थिति कितनी वीभत्स होगी, इसकी कल्पना भी डरावनी है।

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