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सिरोही के पूर्व विधायक ने कहा, जवाई क्षेत्र की भूमि को बचाए सरकार
पर्यटन एवं रोजगार सृजन के लिए स्पष्ट नीति बनाने की मांग
शिवगंज/सुमेरपुर। सिरोही के पूर्व विधायक एवं पूर्व मुख्यमंत्री के सलाहकार रहे संयम लोढ़ा ने राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि पश्चिमी राजस्थान की जीवनरेखा माने जाने वाले जवाई बांध सिंचाई खंड की 2 हजार 405 बीघा भूमि का नामांतरण पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) निगम के नाम कर दिया गया है। इसमें जवाई बांध के आसपास की लगभग 418 बीघा भूमि भी शामिल है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि इस भूमि का उपयोग ईआरसीपी के लिए धन जुटाने के लिए नहीं किया जाए। लोढ़ा ने सरकार से मांग की है कि इसके बजाय सरकार इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कोई साफ सुथरी योजना बनावे ताकि यहां विनियोजन हो,रोजगार बढ़े ताकि क्षेत्र समृद्ध हो सके।
लोढ़ा ने मंगलवार को जारी बयान में कहा कि वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का वादा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। अब जबकि प्रदेश में भाजपा की सरकार है और केंद्र से भी फंडिंग मिल रही है। ऐसे में यदि इस भूमि का उपयोग ईआरसीपी के लिए फंड जुटाने के लिए हो तो यह क्षेत्र के साथ अन्याय होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हाल ही में मध्यप्रदेश-उत्तरप्रदेश के केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के लिए केंद्र सरकार ने 90/10 के अनुपात में फंडिंग दी है। ऐसे में राजस्थान सरकार को भी इस प्रोजेक्ट के लिए केंद्र से वित्तीय सहायता सुनिश्चित करनी चाहिए।
पूर्व विधायक ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से अपील की है कि बेहतर तो यह होगा कि सरकार जवाई, दुदनी, सुमेरपुर और बाली क्षेत्र की भूमि के लिए पर्यटन व निवेश की साफ-सुथरी और पारदर्शी नीति बनाए। इससे यहां विनियोजन होगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और क्षेत्र पर्यटन के मानचित्र पर उभरेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को इतनी “कंगाली” नहीं दिखानी चाहिए कि पश्चिमी राजस्थान की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना जवाई बांध की भूमि को बेचने की नौबत आए।
लोढ़ा ने इस मामले में सिंचाई विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अभय कुमार सिंह, ईआरसीपी के प्रमुख मुख्य अभियंता रवि सोलंकी और जोधपुर संभाग के मुख्य अभियंता अरुण साधना से भी बातचीत की और अपनी चिंता से अवगत कराया। उन्होंने अधिकारियों से आग्रह किया कि यह भूमि जनता और क्षेत्र के हित में उपयोग में लाई जाए, न कि किसी और परियोजना के लिए बेचकर धन संग्रह किया जाए।