India China Relation in Pakistan View: भारत-चीन रिश्तों में नई गर्मजोशी पाकिस्तान के लिए क्या मायने

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हालाँकि रिश्तों की राह आसान नहीं है। सीमा विवाद, अरुणाचल और अक्साई चिन का मसला, तिब्बत और दलाई लामा पर मतभेद, ब्रह्मपुत्र पर चीन की परियोजनाएँ और पाकिस्तान फैक्टर – ये सब रिश्तों में तनाव बढ़ाने वाले मुद्दे हैं।

नई दिल्ली/तियानजिन। एशिया की दो सबसे बड़ी ताक़तें – भारत और चीन – जब आमने-सामने बैठीं तो न सिर्फ़ एशिया, बल्कि पूरी दुनिया की निगाहें इस मुलाक़ात पर टिक गईं। तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बातचीत ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है।

7 साल बाद ऐतिहासिक दौरा

यह मुलाक़ात इसलिए भी खास रही क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी सात साल बाद चीन पहुंचे थे। सम्मेलन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी मौजूद थे, लेकिन सुर्खियाँ भारत-चीन संवाद ने ही बटोरीं।

मोदी-शी की बड़ी बातें

मुलाक़ात में शी जिनपिंग ने कहा, “भारत और चीन सिर्फ़ प्राचीन सभ्यताएँ नहीं, बल्कि ग्लोबल साउथ की ताक़त हैं। ड्रैगन और हाथी को साथ आना चाहिए।”
इसके जवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने दो टूक कहा, “2.8 अरब लोगों का भविष्य भारत-चीन सहयोग पर टिका है। भारत संबंध सुधारने के लिए दृढ़ संकल्पित है।”

आर्थिक समीकरण

IMF के अनुसार भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है, जबकि चीन पहले से ही दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी ताक़त है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सीधी उड़ानों की बहाली, वीज़ा ढील और नए व्यापारिक समझौते दोनों देशों के रिश्तों को मजबूती देंगे। भारत, चीन से सिर्फ़ व्यापार ही नहीं, बल्कि तकनीकी सहयोग भी चाहता है।

असली चुनौतियाँ

हालाँकि रिश्तों की राह आसान नहीं है। सीमा विवाद, अरुणाचल और अक्साई चिन का मसला, तिब्बत और दलाई लामा पर मतभेद, ब्रह्मपुत्र पर चीन की परियोजनाएँ और पाकिस्तान फैक्टर – ये सब रिश्तों में तनाव बढ़ाने वाले मुद्दे हैं।

पाकिस्तान के लिए संदेश

पाकिस्तान लंबे समय से चीन को "आयरन ब्रदर" कहता रहा है। लेकिन हकीकत ये है कि पाकिस्तान के पास तकनीक और बुनियादी ढाँचे की कमी है, जिस कारण उसका रिश्ता चीन पर पूरी तरह निर्भर दिखता है। वहीं भारत-चीन की बढ़ती नज़दीकियाँ इस बात का संकेत हैं कि एशिया का असली खेल बड़े खिलाड़ी तय करेंगे, और पाकिस्तान इसमें सिर्फ़ एक छोटा मोहरा रहेगा।

वैश्विक राजनीति का कोण

अमेरिका के साथ टैरिफ़ विवाद और रूस से तेल खरीद जैसे मुद्दों पर भारत दबाव झेल रहा है। ऐसे में मोदी-शी की मुलाक़ात भारत का यह संदेश भी है कि वह सिर्फ़ अमेरिका पर निर्भर नहीं है, बल्कि उसके पास कूटनीतिक विकल्प मौजूद हैं।

पाकिस्तान की कूटनीतिक उलझन

विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार तो मानता है, लेकिन असल महत्व भारत के बड़े बाज़ार का है। यही कारण है कि चीन चाहेगा कि भारत-पाकिस्तान तनाव कुछ हद तक कम हो, ताकि क्षेत्र स्थिर बना रहे।

भारत और चीन की यह मुलाक़ात महज़ एक औपचारिक कूटनीतिक घटना नहीं थी। यह उस नए एशियाई समीकरण की झलक है, जिसमें भविष्य की राजनीति और अर्थव्यवस्था तय होगी। अगर ड्रैगन और हाथी साथ आते हैं, तो पाकिस्तान के लिए खेल के नियम ज़रूर बदल सकते हैं।

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