वैष्णो देवी कॉलेज: आस्था बनाम योग्यता: वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज में मुस्लिम छात्रों के दाखिले पर विवाद

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Highlights

  • जम्मू-कश्मीर के वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस दाखिलों पर विवाद।
  • नीट परीक्षा में सफल 42 मुस्लिम छात्रों के प्रवेश पर हिंदू संगठनों को आपत्ति।
  • भाजपा ने आस्था के आधार पर दाखिले की वकालत की, जबकि अन्य दलों ने निंदा की।
  • कॉलेज प्रशासन ने मेरिट के आधार पर दाखिले को सही ठहराया।

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के श्री माता वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज (Shri Mata Vaishno Devi Medical College) में इस साल एमबीबीएस (MBBS) दाखिलों को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। नीट (NEET) परीक्षा के आधार पर 42 मुस्लिम छात्रों के प्रवेश पर हिंदू संगठनों (Hindu organizations) और भाजपा (BJP) ने आपत्ति जताई है, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस (National Conference) जैसे दलों ने इसे शिक्षा का सांप्रदायीकरण बताया है। कॉलेज प्रशासन ने मेरिट (merit) के आधार पर दाखिले की पुष्टि की है।

जम्मू-कश्मीर की शांत वादियों में स्थित श्री माता वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज इन दिनों एक अप्रत्याशित तूफान के केंद्र में है। यहाँ इस साल एमबीबीएस में हुए दाखिलों को लेकर एक ऐसी बहस छिड़ गई है, जिसने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। मामला 42 मुस्लिम छात्रों के प्रवेश का है, जिसने कई हिंदू संगठनों और राजनीतिक दलों को गहरी आपत्ति जताने पर मजबूर कर दिया है। यह विवाद आस्था, शिक्षा और आरक्षण के जटिल सवालों से जुड़ा है।

दाखिलों का गणित और विरोध की लहर

नीट परिणाम और सीट आवंटन

इस साल, नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) की परीक्षा में मुस्लिम समुदाय के 42 छात्रों ने सफलता प्राप्त की। वहीं, ग़ैर-मुस्लिम छात्रों में से केवल आठ ही इस परीक्षा को पास कर पाए। नियमानुसार, नीट के परिणामों के आधार पर मेरिट लिस्ट बनती है और फिर जम्मू-कश्मीर बोर्ड ऑफ़ प्रोफ़ेशनल एंट्रेंस एग्ज़ामिनेशन द्वारा सीटें आवंटित की जाती हैं। यह प्रक्रिया देश भर में समान रूप से लागू होती है और इसी के तहत श्री माता वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज में भी दाखिले हुए हैं।

हिंदू संगठनों का मुखर विरोध

परंतु, इस मेरिट लिस्ट के जारी होते ही, जम्मू-कश्मीर में विरोध की लहर दौड़ गई। कई हिंदू संगठनों ने यह कहते हुए आपत्ति जताई कि श्री माता वैष्णो देवी मेडिकल कॉलेज में मुसलमानों को दाखिला नहीं मिलना चाहिए। इन संगठनों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किए और इस लिस्ट को अस्वीकार्य बताया। उनकी मांग थी कि इन दाखिलों को तत्काल रद्द किया जाए। विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और बजरंग दल ने इन दाखिलों पर सबसे मुखर होकर विरोध प्रदर्शन किए।

भाजपा का रुख: आस्था और शिक्षा का टकराव

श्राइन बोर्ड और सनातन धर्म का विस्तार

यह विवाद यहीं नहीं थमा। जम्मू-कश्मीर भारतीय जनता पार्टी यूनिट ने भी इन दाखिलों पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कॉलेज में केवल उन्हीं छात्रों को प्रवेश मिलना चाहिए, जो श्री माता वैष्णो देवी में विश्वास रखते हैं। बीजेपी नेता सुनील शर्मा के नेतृत्व में कई नेताओं ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाक़ात की और उन्हें इस संबंध में एक ज्ञापन सौंपा। सुनील शर्मा ने कहा कि माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड में जो मेडिकल कॉलेज खुला है, उसमें अधिकांश बच्चे एक विशेष समुदाय से आते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि पूरे देश के लोग चढ़ावा देते हैं, जिनका लक्ष्य सनातन धर्म का विस्तार और भारतीय संस्कृति का प्रसार होता है।

उन्होंने आगे कहा कि अन्य वर्गों, धर्मों और समुदायों से लोगों का आना श्राइन बोर्ड और चंदा देने वालों के लिए अच्छा नहीं रहेगा। उन्होंने उपराज्यपाल से निवेदन किया कि यहाँ पर उन्हीं बच्चों को एडमिशन मिलना चाहिए, जो माता वैष्णो देवी पर श्रद्धा और आस्था रखते हैं। यह बयान इस विवाद की गहराई को दर्शाता है, जहाँ शिक्षा के अधिकार से ऊपर आस्था को रखने की बात कही जा रही है।

आस्था बनाम लीगल राइट्स

जम्मू-कश्मीर बीजेपी के प्रवक्ता सुनील सेठी ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा कि 50 में से जिन 42 छात्रों का मेडिकल कॉलेज की लिस्ट में नाम आया है, वे उस धर्म से आते हैं, जिनकी आस्था वैष्णो देवी में नहीं है। उन्होंने इसे चिंता का विषय और आस्था का प्रश्न बताया। उन्होंने इसे लीगल राइट्स और आस्था के बीच की लड़ाई करार दिया। हालांकि, उन्होंने यह भी दावा किया कि बीजेपी इस मामले का ऐसा निवारण करेगी कि किसी को नुक़सान न पहुँचे और मुस्लिम बच्चों के अधिकार भी सुरक्षित रहें।

विरोधियों की मांगें और धार्मिक मान्यताओं का प्रश्न

धार्मिक मान्यताओं को ठेस और दानदाताओं की भावना

विश्व हिन्दू परिषद के जम्मू-कश्मीर अध्यक्ष राजेश गुप्ता ने फ़ोन पर बताया कि दूसरे धर्म के लोगों के यूनिवर्सिटी में आने से धार्मिक मान्यताओं को ठेस पहुँचती है। उन्होंने कहा कि यह कॉलेज माता वैष्णो देवी तीर्थ क्षेत्र में ही स्थित है और माता वैष्णो देवी में जो भक्त आते हैं, उनके दान से ही इसे बनाया गया है और उसके दान से ही वो चलने वाला है। दानदाताओं की भावना रहती है कि वहाँ पर क्या हो? ऐसी अपेक्षा की जाती है कि माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड या विद्यालय में हिंदू रीति रिवाज का पालन हो।

100 प्रतिशत आरक्षण की मांग

राष्ट्रीय बजरंग दल के नेता राकेश बजरंगी ने तो यहाँ तक कह दिया कि उनका विरोध माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के ख़िलाफ़ है न कि किसी ख़ास समुदाय या बच्चों के लिए। उन्होंने कहा कि जो भी पैसा श्राइन बोर्ड ख़र्च करता है, वह पैसा सिर्फ़ हिन्दू समाज की बेहतरी के लिए ख़र्च किया जाए और माता वैष्णो देवी कॉलेज में 100 प्रतिशत आरक्षण केवल हमारे बच्चों को दिया जाए। उन्होंने यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा देने की भी मांग की।

विपक्ष का कड़ा रुख: शिक्षा का सांप्रदायीकरण अस्वीकार्य

धर्म के आधार पर दाखिला नहीं

इन मांगों के जवाब में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि जब माता वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी का बिल पास किया गया था, तो उस बिल में कहाँ लिखा गया था कि एक धर्म के छात्रों को उस यूनिवर्सिटी से बाहर रखा जाएगा? उन्होंने पूछा कि यह कहाँ लिखा है कि धर्म देखकर एडमिशन नहीं दिया जाएगा? उमर अब्दुल्लाह ने स्पष्ट किया कि जिन बच्चों ने नीट की परीक्षा पास की है, उनको धर्म के आधार पर दाख़िला देने से इनकार नहीं किया जा सकता।

मेडिकल साइंस को धार्मिक रंग देना उचित नहीं

पीपल्स कांग्रेस के चेयरमैन और विधायक सज्जाद गनी लोन ने बीजेपी और हिंदू संगठनों की मांग को एक खतरनाक कदम बताया। उन्होंने कहा कि मेडिकल साइंस को धार्मिक रंग देना उचित नहीं है। जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के अध्यक्ष अल्ताफ़ बुख़ारी ने तो इस मांग को अव्यवहारिक करार देते हुए एक तीखा सवाल किया कि हमारे यहाँ मुसलमानों के भी इदारे (संस्थान) हैं, अगर कल इस तरह की मांग इस्लामिक यूनिवर्सिटी और बाबा ग़ुलाम शाह बादशाह यूनिवर्सिटी के एडमिशन पर की जाए, तो फिर क्या होगा? यह सवाल इस विवाद की संवेदनशीलता को और बढ़ा देता है।

कॉलेज प्रशासन और शिक्षाविदों का स्पष्टीकरण

मेरिट ही एकमात्र आधार

इस पूरे विवाद के बीच, कॉलेज प्रशासन का रुख बिल्कुल स्पष्ट है। कॉलेज के कार्यकारी निदेशक डॉक्टर यशपाल शर्मा ने बताया कि उन्होंने छात्रों को मेरिट के आधार पर दाख़िला दिया है। उन्होंने कहा कि जो कुछ भी राजनीतिक दल कह रहे हैं, वो उनका अपना स्टैंड है। हमें तो अपने नियमों के तहत ही चलना है। हमें तो बच्चों को हिंदू-मुस्लिम होकर पढ़ाना नहीं है। डॉक्टर शर्मा ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन बच्चों का दाख़िला हुआ है, वो इत्मीनान से पढ़ रहे हैं। अगर सरकार इस पर कोई फ़ैसला करती है, तो हम उस फ़ैसले पर अमल करेंगे।

उन्होंने बताया कि एडमिशन के हर नियम का सख़्ती से पालन किया गया है। पूरे भारत में एडमिशन के जो नियम होते हैं, यहाँ भी ऐसा ही किया गया। हमारे यहाँ किसी तरह का कोई आरक्षण नहीं है। कॉलेज के अधिकारियों ने यह भी बताया कि ऐसा विवाद पहले कभी सामने नहीं आया था, यह पहली बार है जब मुस्लिम छात्रों के दाख़िले पर विवाद खड़ा हुआ है। नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) ने इसे मान्यता दी है और 2025-26 के लिए 50 सीटों की अनुमति दी थी। इन 50 सीटों में से 42 पर मुस्लिम छात्र प्रवेश परीक्षा में सफल हुए, जिनमें से 36 ने अब तक कॉलेज में दाखिला भी ले लिया है।

नियमों का पालन और अल्पसंख्यक दर्जे का सवाल

शिक्षाविदों की राय भी इस मामले में महत्वपूर्ण है। जम्मू के परेड कॉलेज की पूर्व प्रिंसिपल हेमला अग्रवाल का कहना है कि जब एक बार बच्चों का एडमिशन हो गया है, तो अब यह उनके साथ अन्याय है। उन्होंने बताया कि सभी नियमों को फ़ॉलो किया गया है। मुझे लगता है कि इस मसले को इतना ज़्यादा उछालना नहीं चाहिए। श्राइन बोर्ड तो वहाँ है, लेकिन फिर पहले ही माइनॉरिटी दर्जा लेना चाहिए था, जैसा दूसरे विश्वविद्यालयों में होता है। जब बच्चों ने नीट की परीक्षा पास की, तो इस मेडिकल कॉलेज में उन छात्रों को भेजा गया और कॉलेज को तो उस आदेश को स्वीकार करना ही था। नियमों को फ़ॉलो करना था, तो उनको फ़ॉलो किया गया है।

कश्मीर के शिक्षाविद ग़ुलाम नबी राथर ने भी इस तरह की मांगों को अनुचित बताया।

उनका कहना था कि जिस अल्पसंख्यक दर्जे की इस समय बात हो रही है, उसको तो पहले ही हासिल कर लेना चाहिए था।

राथर यह भी बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर के कई कॉलेज और विश्वविद्यालयों में ग़ैर-मुस्लिम छात्र पढ़ते हैं, तो क्या हम उनको यह कहें कि आप यहाँ न आएं क्योंकि यहाँ मुसलमान रहते और पढ़ते हैं? उनका स्पष्ट मत है कि शिक्षा के मैदान में धर्म को लाना कोई अच्छी बात नहीं है।

श्री माता वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी का संदर्भ

स्थापना, फंडिंग और चांसलर की भूमिका

श्री माता वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी की स्थापना साल 1999 में जम्मू-कश्मीर राज्य विधानमंडल के एक अधिनियम के तहत एक आवासीय और तकनीकी यूनिवर्सिटी के रूप में की गई थी, जिसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने मंज़ूरी दी थी। यह यूनिवर्सिटी जम्मू शहर से क़रीब 40 किलोमीटर की दूरी पर श्री माता वैष्णो देवी मंदिर के पास कटरा में स्थित है। यह मंदिर एक ऊँची पहाड़ी पर है, जहाँ हर साल क़रीब एक करोड़ श्रद्धालु पूरे भारत से आते हैं और दान भी देते हैं।

यह यूनिवर्सिटी श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड से फ़ंडिंग प्राप्त करती है, जिसका गठन अगस्त 1986 में हुआ था और यह एक स्वायत्त बोर्ड है। यूनिवर्सिटी को जम्मू-कश्मीर सरकार से भी फ़ंड मिलता है। दिलचस्प बात यह है कि जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा यूनिवर्सिटी के चांसलर भी हैं और माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के चेयरमैन भी। हालांकि, बीजेपी और दूसरे हिंदू संगठनों की तरफ़ से की जाने वाली मांग पर अभी तक उनकी कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, जिससे इस विवाद में उनकी भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।

योग्यता या आस्था, किसका पलड़ा भारी?

यह विवाद एक गहरे सवाल को जन्म देता है: क्या शिक्षा के मंदिर में प्रवेश का आधार योग्यता होनी चाहिए, या फिर आस्था और धर्म? क्या हम अपने शिक्षण संस्थानों को सांप्रदायिक विभाजन की भूमि बनने देंगे? जम्मू-कश्मीर का यह मामला केवल एक मेडिकल कॉलेज के दाखिलों से कहीं बढ़कर है; यह हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों, धर्मनिरपेक्षता और समानता के आदर्शों की एक कसौटी है। इसपर देश की निगाहें टिकी हैं कि क्या शिक्षा के पवित्र क्षेत्र में धर्म की दीवारें खड़ी होंगी, या योग्यता और समानता का मार्ग प्रशस्त होगा। यह देखना होगा कि इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर कौन देता है, और कब, क्योंकि यह मामला शिक्षा के भविष्य और सामाजिक सौहार्द दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।

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