गहलोत ने अरावली बचाने को छेड़ी मुहिम: गहलोत ने बदली प्रोफाइल तस्वीर, केंद्र से की अपील

गहलोत ने बदली प्रोफाइल तस्वीर, केंद्र से की अपील
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Highlights

  • गहलोत ने अरावली बचाने के लिए सोशल मीडिया प्रोफाइल तस्वीर बदली।
  • 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली न मानने का विरोध।
  • अरावली को मरुस्थल और प्रदूषण से बचाने वाली दीवार बताया।
  • केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से नई परिभाषा पर पुनर्विचार की अपील।

जयपुर: राजस्थान (Rajasthan) के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने अरावली पहाड़ियों (Aravalli Hills) को बचाने के लिए 'SaveAravalli' मुहिम का समर्थन करते हुए अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल तस्वीर बदल ली है। उन्होंने केंद्र सरकार (Central Government) से नई परिभाषा पर पुनर्विचार की अपील की।

गहलोत ने स्पष्ट किया कि यह केवल एक तस्वीर बदलने से कहीं अधिक है। यह अरावली की नई परिभाषा के खिलाफ एक मजबूत विरोध है, जो इसे खतरे में डाल रही है।

अरावली की नई परिभाषा पर विरोध

नई परिभाषा के अनुसार, 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली का हिस्सा मानने से इनकार किया जा रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री ने चेतावनी दी कि ऐसे बदलाव पूरे उत्तर भारत के भविष्य पर गहरा संकट पैदा कर सकते हैं।

उन्होंने लोगों से भी अपनी प्रोफाइल तस्वीर बदलकर इस महत्वपूर्ण अभियान से जुड़ने और अपनी आवाज बुलंद करने का आग्रह किया।

https://x.com/ashokgehlot51/status/2001487836206510492?s=20 

मरुस्थल और गर्म हवाओं से रक्षा की दीवार

अशोक गहलोत ने अरावली पहाड़ियों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ये पहाड़ियां मरुस्थल के फैलाव और लू की तेज गर्म हवाओं के खिलाफ एक प्राकृतिक कवच का काम करती हैं।

यदि ये अरावली पहाड़ियां कमजोर होती हैं, तो रेगिस्तान और गर्मी का असर काफी बढ़ जाएगा। इससे लाखों लोगों की जिंदगी मुश्किल हो सकती है और पर्यावरण संतुलन बिगड़ सकता है।

शहरों के लिए 'फेफड़े' और प्रदूषण नियंत्रण

पूर्व मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि अरावली के जंगल और पहाड़ियां दिल्ली-एनसीआर जैसे बड़े शहरों के लिए 'फेफड़ों' की तरह हैं। ये धूल भरी आंधियों को रोकने और हवा को साफ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

गहलोत ने चिंता जताई कि अरावली के बिना प्रदूषण की समस्या और भी गंभीर हो जाएगी। इससे लोगों की सेहत पर सीधा और बड़ा खतरा मंडराएगा।

जल संरक्षण और पर्यावरण संतुलन का आधार

उन्होंने बताया कि अरावली जल संरक्षण का भी मुख्य आधार है। ये पहाड़ियां बारिश के पानी को जमीन में सोखकर भूजल स्तर को बढ़ाने में मदद करती हैं।

यदि अरावली खत्म होती है, तो पीने के पानी की भारी कमी हो जाएगी। इसके साथ ही, जंगली जानवर गायब हो जाएंगे और पूरा पर्यावरण संतुलन गंभीर रूप से बिगड़ जाएगा।

भावी पीढ़ियों के लिए संकट

गहलोत ने आगाह किया कि इन बदलावों की कीमत हमारी भावी पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ राजस्थान का नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत की सुरक्षा का सवाल है।

केंद्र और सुप्रीम कोर्ट से अपील

अशोक गहलोत ने केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट से अरावली की नई परिभाषा पर दोबारा विचार करने की गुहार लगाई। उन्होंने कहा कि अरावली के महत्व को मीटर या फीते से नहीं, बल्कि पर्यावरण में इसके अमूल्य योगदान से मापा जाना चाहिए।

उन्होंने सभी से मिलकर अरावली को बचाने और आने वाली नस्लों के लिए एक हरा-भरा भविष्य सुनिश्चित करने का आह्वान किया।

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