Highlights
- जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय पोलो के जुनूनी खिलाडी थे
- महारानी मरुधर कंवर महाराजा को कहती कि जयपुर के घोड़ो में इतनी रफ्तार नही है जो जोधपुर के घोड़ो को पीछे छोड़ सके
- उस दौर में जोधपुर पोलो टीम की दुनियाभर मे तूती बोलती थी
- जयपुर के महाराजा जोधपुर को चैलेंज भी नही कर सकते थे क्योंकि यह भूल इससे पहले पटियाला के महाराजा भूपेन्द्र सिंह कर चुके थे.
जयपुर और जोधपुर के बीच पोलो का किस्सा
जयपुर के सवाई मानसिंह द्वितीय पोलो के जुनूनी खिलाड़ी थे. उस दौर में उनकी पोलो स्टिक की चतुराई के आगे कोई आसपास भी नही ठहरता था. लंदन में जब वो पोलो खेलने जाते तो रहीश से भी रहीश लोग उनका खेल देखने आते और दुनियाभर में उनके खेल की तारीफे होती थी.
लेकिन जिससे तारीफ मिलनी चाहिए थी वहां से केवल उलाहना मिलता. महारानी मरुधर कंवर महाराजा को कहती कि जयपुर के घोड़ो में इतनी रफ्तार नही है ,जो जोधपुर के घोड़ो को पीछे छोड़ सके.
महाराजा को यह बात अंदर ही अंदर बहुटी कचोटती. महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय की ससुराल जोधपुर रियासत में थी और महारानी सा जोधपुर की राजकुमारी थी.
पोलो में जोधपुर का रुतबा ऐसा था
उस दौर में जोधपुर पोलो टीम की पूरे विश्व मे तूती बोलती थी. छह बार की चैंपियन जोधपुर टीम को मैदान में मात देना लगभग असंभव था. जब महाराजा सरप्रताप के नेतृत्व में जोधपुर टीम लंदन पोलो खेलने गई तो गोरों को उन्ही की धरती पर चेलेंज करके मात दे दी. सरप्रताप इस अपराजित टीम के कभी कप्तान हुआ करते थे. महाराजा सरदार सिंह भी विश्वस्तर के खिलाड़ी हुए साथ ही प्रमुख ठिकानो के ठाकुर जिनमे दलपत सिंह,धौकल सिंह,पृथ्वी सिंह बेड़ा सहित सरप्रताप के कुंवर हणुत सिंह ने इस खेल में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई.
जयपुर के महाराजा खुद तो गजब के खिलाड़ी थे लेकिन टीम को अपने जैसी नही बना सके. इसके लिए महाराजा ने दूसरा उपाय खोज लिया.
महाराजा ने दहेज़ में मांग लिए पोलो के घोड़े
जब महाराजा सवाई मानसिंह जोधपुर बारात लेकर गये तो कुंवर कलेवा में ससुराल पक्ष से पोलो टीम के लिए कुछ प्रशिक्षित घोड़े और कुछ प्रशिक्षक मांग लिए. जोधपुर के महाराजा ने भी अपने कुंवर साब को निराश नही किया और मांग पूरी कर दी.
जोधपुर से कुछ घोड़े और प्रशिक्षक जयपुर भेजे गए युद्ध स्तर पर तैयारियां की गई नए सिरे से टीम बनाई गई प्रमुख ठिकाने के ठाकुर और कुंवर टीम में शामिल हुए.
कोई सैकड़ो मैच खेले गए लेकिन जयपुर जोधपुर को पोलो में नही हरा सका. दिन में जयपुर के महाराजा अपने ससुराल वालो को हराने के लिए मैदान में पसीना बहाते और जब हारकर लौटते तो भोजन करते वक्त महारानी का उलाहना सुनते. महारानी अपने पीहर वालो की तारीफ करते नही थकती और महाराजा चुपचाप सुनते जाते.
दोनों ही रियासतो के राजाओ और ठिकानो के ठाकुरो पर पोलो का ऐसा भूत सवार हुआ कि रोज मैच खेले जाने लगे. जयपुर महाराजा को उनकी ससुराल में पोलो खेलने का न्यौता भेजा जाता जंवाई सा का खेल देखने पूरा जोधपुर उमड़ पड़ता लेकिन यह कसक महाराजा के मन मे हमेशा रही कि वह ससुराल से कभी जीतकर नही लौट सके.
जयपुर महाराजा जोधपुर को चैलेंज भी नही कर सकते थे क्योंकि यह भूल इससे पहले पटियाला के महाराजा भूपेन्द्र सिंह कर चुके थे.
बात केवल खेल की थी लेकिन पटियाला के महाराजा ने मूंछे खींच ली
हुआ यूं था कि जोधपुर के साथ उस वक्त पटियाला टीम का नाम भी पोलो की बेहतरीन टीम में गिना जाता था. पटियाला दरबार भूपेन्द्र सिंह एक जुनूनी और बेहद आत्ममुग्ध महाराजा थे तो उन्होंने आवेश में जोधपुर को चैलेंज कर दिया. तभी दिल्ली में पचार हजार दर्शकों की मौजूदगी में जोधपुर और पटियाला के बीच एक मूंछो के सवाल का मैच खेला गया. मैच से पहले ही पटियाला के महाराजा मूंछ खींच चुके थे.
शुरुआत में पटियाला ही भारी रहा लेकिन अंत मे हणुत सिंह ने चमत्कारिक प्रदर्शन करते हुए पटियाला को करारी शिकस्त दे दी. पटियाला के महाराजा उस हार को पचा नही पाए और उन्होंने मैदान में ही अपनी पोलो स्टिक तोड़ डाली साथ ही घोड़ो को खोलकर दौड़ा ददिया. वह भी इस घोषणा के साथ कि अब भविष्य में पटियाला कभी पोलो नही खेलेगा.
तभी 1932 में जयपुर के महाराजा की दूसरी शादी जोधपुर की राजकुमारी किशोर कंवर से हुई. महाराजा एक बार फिर बारात लेकर जोधपुर पहुंचे और अबकि बार महाराजा ने कंवर कलेवा में पूरी जोधपुर टीम ही मांग ली. एक बार फिर जोधपुर के ने जंवाई सा को निराश नही किया और हणुत सिंह के नेतृत्व में पूरी टीम जयपुर भेज दी.
फिर पोलो में जयपुर को कोई नहीं रोक सका
उसके बाद जयपुर पोलो टीम ने पोलो का हर मैदान फतह किया. लंदन में जाकर ना जाने कितनी ही बार अंग्रेजो को हराया. जयपुर महाराजा सवाई मानसिंह के नेतृत्व में ही भारत ने पोलो का विश्वकप जीता.
उसके बाद भी पोलो में जोधपुर का वह रुतबा कायम रहा लेकिन विश्वस्तर पर जयपुर की टीम ने एक अलग ही ख्याति अर्जित की.
जयपुर महाराजा के जीवन मे पोलो रम गया सा गया. उनका पूरा जीवन ही पोलो के इर्द गिर्द रहा और उन्होंने जीवन की अंतिम सांस भी पोलो के मैदान में गोल दागते हुए ली.
जयपुर का पोलो विश्व में विख्यात हुआ लेकिन जोधपुर में पोलो का पराभव शुरू हो गया. जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह के कुंवर शिवराज सिंह पोलो खलते हुए बुरी तरह जख्मी हो गए और जोधपुर में पोलो को जैसे नजर ही लग गई. लेकिन वक्त ने फिर करवट बदली और जोधपुर राजपरिवार की प्रियरंजिनी राजे ने महिला पोलो टीम बनाकर जोधपुर को फिर से पोलो के पुराने दिन लौटाए.
जयपुर राजपरिवार के पूर्व सदस्य पद्मनाभ सिंह भी पोलो के अंतरास्ट्रीय स्तर के खिलाडी है. वही सामाजिक जीवन में सक्रिय रहे लोकेन्द्र सिंह कालवी के बेटे भवानी सिंह कालवी की पोलो स्टिक के चर्चे भी मशहूर है. राजस्थान के खेल मंत्री अशोक चांदना भी एक बेहतरीन पोलो खिलाडी है.
सवाई मान सिंह द्वितीय ने जयपुर में पोलो की ऐसी परम्परा डाली की उनके बाद जयपुर राजपरिवार का लगभग हर सदस्य पोलो का बेहतरीन खिलाड़ी हुआ है.